Sunday, June 24, 2018

वाक्य परिचय

धातुएँ तीन प्रकार की होती हैं।

१) आत्मने पदी
२) परस्मै पदी
३) उभय पदी।

आत्मने पदी धातुएँ:-
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•• जहाँ " क वर्ग " के अंतिम अक्षर की " इत्संज्ञा " हो तथा

•• जहाँ क्रियाफल की प्राप्ति स्वयं को हो वहाँ " आत्मने पदी " धातु होती है।

•• कर्मवाच्य और भाववाच्य में सभी धातुएँ " आत्मनेपदी " होती हैं।

इनमें " त, आताम, झ " आदि प्रत्यय लगते हैं।

परस्मैपदी धातुएँ :-
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•• यह " कर्ता " अर्थ में होती है और

•• क्रियाफल की प्राप्ति दूसरों को होती है।

•• यदि भाववाच्य  या कर्मवाच्य में होगी तो " आत्मने पदी "होगी।

इसमें " तिप, तस, झि " प्रत्यय लगते हैं।

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आत्मने पदी के अलावा सभी धातुएँ परस्मैपदी होती हैं। इसलिए आत्मने पदी पर अधिक ध्यान देना होता है। ताकि परस्मैपदी अपने आप याद हो जाएँ ।
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उभयपदी धातुएँ :-
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•• जहाँ " च वर्ग " के अंतिम अक्षर की " इत्संज्ञा " होती है।

>>>>> इसी प्रकार " सकर्मक " और "अकर्मक " धातुओं का अंतर समझना भी आवश्यक है।

सकर्मक धातुएँ :-
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•• जहाँ धातुओं से पहले कर्म संभव हो। अर्थात् जहाँ " को " लगे वहाँ " सकर्मक धातु " होगी।

जैसे : - स: ग्रंथं पठति ।

इसका अर्थ होगा " वह ग्रंथ को " पढ़ता है। अत: यह " सकर्मक " धातु है।

अकर्मक धातुएँ :-
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•• जहाँ धातुओं से पहले कर्म संभव नहीं होता। अथवा " को " नहीं लगता। वह " अकर्मक " धातुएँ होती हैं।

जैसे :- स: शेते ।

इसका अर्थ होगा

~~ वह सोता है।

•• यहाँ " को " नहीं लगता । " को " लगाने पर अटपटा लगता है। अत: यहाँ " अकर्मक " धातु होगी।

Saturday, June 16, 2018

जीवन को खुशियों से भरने के लिए एवं उन्नति के उपाय

*अपने जीवन को खुशियों से भरने के लिए एवं उन्नति के पथ पर बढ़ने के लिए अपने जीवन में एवं अपने बच्चों मे यह आदत डाले...
* *1:* मंदिर घुमाने लेकर जाइये !
*2:* तिलक लगाने की आदत डालें !
*3:* देवी देवताओं की कहानियां सुनायें !
*4:* संकट आये तो नारायण नारायण बोलें !
*5:* गलती होने पर हे राम बोलने की आदत डालें !
*6:* गायत्री मंत्र, हनुमान चालीसा व महामृत्युन्जय मंत्र जैसे पवित्र वैदिक मंत्रों को याद करायें !
*7:* अकबर, हुमांयू, सिकन्दर के बदले शिवाजी, महाराणा प्रताप जैसे शूरवीरों की कहानियां सुनायें !
*8:* घर मे छोटे बच्चों से जय श्री कृष्णा, राधे राधे, हरी बोल, जय माता दी, राम राम कहिये, और उनसे भी जवाब मे राम राम बुलवाने की आदत डालिये !
*9:* बाहर जाते समय bye न कहे बच्चो से जय श्री कृष्णा या जय श्रीराम या राम राम कहने का अभ्यास करें।

*अपने धर्म का ज्ञान हमको ही देना है ! कोई और नहीं आयेगा यह सब सिखाने को*
निवेदन- डॉ मुकेश ओझा
🌼🌸🌼मनुर्भव🌼🌹🌼
*🕉🚩जय श्री कृष्ण 🚩🕉*

आपका वस्त्र, भाषा और आपका पसंद बताता है आप चेतना के किस ऊँचाई पर स्थित हैं।

🌱     आपका वस्त्र, भाषा और आपका पसंद बताता है आप चेतना के किस ऊँचाई पर स्थित हैं।
ढीले ढालें वस्त्र आपके शांत चित्त एवं उच्च चेतना को इंगित करता है। आप ध्यान देंगे जब आप ढीले वस्त्र जैसे धोती कुर्ता एवं महिलाएं साड़ी  पहनती हैं तो अपने व्यवहार में एक सौम्यता होता हैं। 
और जब आप चुस्त दुरुस्त वस्त्र पहनते हैं तो एक अस्थिरता गर्मजोशी वाला व्यवहार करते हैं।
इसलिए भारत में राजा महाराजा गुरु एवं शिष्य के लिए ढिले वस्त्र हुआ करता था। और सेवक एवं सैनिकों के लिए चुस्त दुरुस्त वस्त्र हुआ करता था।
जैसे जैसे आप चेतना के शिखर पर चढ़ते जाएँगे आपको भी थे वस्त्र ही पसंद आएँगे।
- डॉ मुकेश ओझा
पुनः शेष विषयों पर चर्चा अगले लेख में करेंगे।
नमो नमः

Wednesday, June 6, 2018

यः सर्वगुणसम्पूर्णः ।सर्वदोषविवर्जितः ।।प्रियतां प्रीत एवालं ।विष्णुर्मे परमः सुहृत्

यः सर्वगुणसम्पूर्णः ।
सर्वदोषविवर्जितः ।।
प्रियतां प्रीत एवालं ।
विष्णुर्मे परमः सुहृत् ।।

पदच्छेदः पदपरिचयशास्त्रं च ।👉
👉


यः - दकारान्तपुल्लिङ्गस्य यद् शब्दस्य प्रथमाविभक्तेः एकवचनान्तं पदमिदम् ।

सर्वगुणसम्पूर्णः - अकारान्तपुल्लिङ्गस्य सर्वगुणसम्पूर्णशब्दस्य प्रथमाविभक्तेः एकवचनान्तं पदमिदम् ।

सर्वाणि च तानि गुणानि सर्वगुणानि ।
सम्यक् पूर्णः सम्पूर्णः ।
सर्वगुणैः सम्पूर्णः सर्वगुणसम्पूर्णः ।

सर्वदोषविवर्जितः - अकारान्तपुल्लिङ्गस्य सर्वदोषविवर्जितशब्दस्य प्रथमाविभक्तेः एकवचनान्तं पदमिदम् ।

सर्वाः च ते दोषाः च सर्वदोषाः ।
विशेषेण वर्जितः विवर्जितः ।
सर्वदोषेभ्यः विवर्जितः सर्वदोषविवर्जितः ।

प्रियताम् - नकारान्तपुल्लिङ्गस्य (या तकारान्तमपि वर्तते) प्रियन् शब्दस्य षष्ठीविभक्तेः बहुवचनान्तं पदमिदम् ।

प्रीतः - अकारान्तपुल्लिङ्गस्य प्रीत शब्दस्य प्रथमाविभक्तेः एकवचनान्तं पदमिदम् ।

एव + अलम् - अव्यये ।

विष्णुः - उकारान्तपुल्लिङ्गस्य विष्णुशब्दस्य प्रथमाविभक्तेः एकवचनान्तं पदमिदम् ।

मे - त्रिषुलिङ्गेषु समस्य दकारान्तस्यअस्मद् शब्दस्य षष्ठीविभक्तेः एकवचनान्तं पदमिदम् ।

परमः - अकारान्तपुल्लिङ्गस्य परम शब्दस्य प्रथमाविभक्तेःएकवचनान्तं पदमिदम् ।

सुहृत् - तकारान्तपुल्लिङ्गस्य सुहृत् शब्दस्य प्रथमाविभक्तेः एकवचनान्तं पदमिदम् ।

अन्वयः -👉
👉
यः सर्वगुणसम्पूर्णः, सर्वदोषविवर्जितः प्रियतां अलं प्रीतः एव सः विष्णुः मे परमः सुहृत् अस्ति ।

यः - जो श्रीमन्महाविष्णु जी

सर्वगुणसम्पूर्णः - आनंदादि समस्त सद्गुणों से परिपूर्ण,

सर्वदोषविवर्जितः - दुःख आदि समस्त दोषों से वर्जित

च - तथा

प्रियताम् - प्रेम करने वाले भक्तों के

अलम् - अच्छे

प्रीतः - प्रेमी हैं

सः - वह

विष्णुः एव - श्रीमन्महाविष्णु जी ही

मे - मेरे

परमः - उत्तम

सुहृत् - मित्र

अस्ति - हैं ।

विवरण:-👉
👉
श्रीमन्महाविष्णु जी समस्त सद्गुणों के आकर हैं । और सामान्य मनुष्य या प्राणियों के जैसे दुःख, पीडा जैसे दोष इन से परे रहते हैं । जो भी इन के भक्त बन कर इन को प्रेम करते हैं, उन भक्तों के प्रेम से भी अत्यधिक प्रेम ये प्रदान करते हैं । ऐसे श्रीमन्महाविष्णु जी ही मेरे परम या श्रेष्ठ मित्र हैं ।

।।मनुर्भव।।