Tuesday, January 22, 2019

संतान प्राप्ति व संतानहीन योग

संतान प्राप्ति व संतानहीन योग।

ज्योतिषीय विश्लेषण के लिए  हमारे शास्त्रों मे कई  सूत्र दिए हैं।

कुछ प्रमुख सूत्र इस प्रकार से  हैं।

ज्योतिषीय नियम हैं जो घटना के समय बताने  में सहायक होते हैं .

लग्न और लग्नेश को देखा  जाता  है।

घटना का संबंध किस भाव से है

भाव का स्वामी कौन  है ।

भाव का कारक ग्रह कौन है।

भाव में कौन कौन से ग्रह हैं।

भाव पर किस  ग्रह की दृष्टि।

कौन से ग्रह महादशा ,अंतर्दशा, प्रत्यंतर्दशा, सूक्ष्म एवं प्राण दशा चल रही है।

भाव को प्रभावित करने वाले ग्रहों की गोचर स्थिति भी देखना चाहिये।

इन सभी का अध्ययन करने   से किसी भी घटना का समय जाना जा सकता है।

संतान प्राप्ति  का समय :

संतान प्राप्ति के समय को जानने के लिए पंचम भाव, पंचमेश अर्थात पंचम भाव का स्वामी, पंचम कारक गुरु, पंचम भाव में स्थित ग्रह, पंचम भाव और पंचमेश पर दृष्टियों पर ध्यान देना चाहिए।   जातक का विवाह हो चुका हो और संतान अभी तक नहीं हुई हो , संतान का समय निकाला जा सकता है।

पंचम भाव जिन शुभ ग्रहों से प्रभावित हो उन ग्रहों की दशा-अंतर्दशा और गोचर के शुभ रहते संतान की प्राप्ति होती है।

गोचर में जब ग्रह पंचम भाव पर या पंचमेश पर या पंचम भाव में बैठे ग्रहों के भावों पर गोचर करता है तब संतान सुख की प्राप्ति का समय होता है।यदि गुरु गोचरवश पंचम, एकादश, नवम या लग्न में भ्रमण करे तो भी संतान लाभ की संभावना होती है। जब गोचरवश लग्नेश, पंचमेश तथा सप्तमेश एक ही राशि में भ्रमण करे तो संतान लाभ होता है।

  संतान कब (साधारण योग):

पंचमेश यदि पंचम भाव में स्थित हो या लग्नेश के निकट हो, तो विवाह के पश्चात् संतान शीघ्र होती है दूरस्थ हो तो मध्यावस्था में, अति दूर हो तो वृद्धावस्था में संतान प्राप्ति होती है। यदि पंचमेश केंद्र (1, 4, 7, 10) में हो तो यौवन के आरंभ में, पणफर(2, 5, 8, 11) में हो तो युवावस्था में और आपोक्लिम( 3, 6, 9, 12)में हो तो अधिक अवस्था में संतान प्राप्ति होती है।

पुत्र और पुत्री प्राप्ति का समय कैसे जानें?

  संतान प्राप्ति के समय के निर्धारण में यह भी जाना जा सकता है कि पुत्र की प्राप्ति होगी या पुत्री की। यह ग्रह महादशा, अंतर्दशा और गोचर पर निर्भर करता है। यदि पंचम भाव को प्रभावित करने वाले ग्रह पुरुष कारक हों तो संतान पुत्र और यदि स्त्री कारक हों तो पुत्री होगी।पुरुष ग्रह की महादशा तथा पुरुष ग्रह की ही अंतर्दशा चल रही हो एवं कुंडली में गुरु की स्थिति अच्छी हो तो निश्चय ही पुत्र की प्राप्ति होती है। विपरीत स्थितियों में कन्या जन्म की संभावनाएं होती हैं।

जन्म कुंडली में संतान योग जन्म कुंडली में संतान विचारने के लिए पंचम भाव का अहम रोल होता है। पंचम भाव से संतान का विचार करना चाहिए। दूसरे संतान का विचार करना हो तो सप्तम भाव से करना चाहिए। तीसरी संतान के बारे में जानना हो तो अपनी जन्म कुंडली के भाग्य स्थान से विचार करना चाहिए भाग्य स्थान यानि नवम भाव से करें।

१   पंचम भाव का स्वामी स्वग्रही हो

२.पंचम भाव पर पाप ग्रहों की दॄष्टि ना होकर शुभ ग्रहों की दॄष्टि हो अथवा स्वयं चतु सप्तम भाव को देखता हो.

३.पंचम भाव का स्वामी कोई नीच ग्रह ना हो यदि  भावपंचम में कोई उच्च ग्रह हो तो अति सुंदर योग होता है.

४.पंचम भाव में कोई पाप ग्रह ना होकर शुभ ग्रह विद्यमान हों और षष्ठेश या अष्टमेश की उपस्थिति  भावपंचम में नही होनी चाहिये.

५. पंचम भाव का स्वामी को षष्ठ, अष्टम एवम द्वादश भाव में नहीं होना चाहिये. पंचम भाव के स्वामी के साथ कोई पाप ग्रह भी नही होना चाहिये साथ ही स्वयं पंचमभाव का स्वामी नीच का नही होना चाहिये.

६. पंचम भाव का स्वामी उच्च राशिगत होकर केंद्र त्रिकोण में हो.

७ पति एवम पत्नी दोनों की कुंडलियों का अध्ययन करना चाहिए |

८ सप्तमांश लग्न का स्वामी जन्म कुंडली में :बलवान ,शुभ स्थान ,सप्तमांश लग्न भी शुभ ग्रहों से युक्त  |

८  एकादश भाव में शुभ ग्रह बलवान हो |

संतान सुख मे परेशानी के योग :

ऊपर बताये गये  ग्रह निर्बल पाप ग्रह अस्त ,शत्रु –नीच राशि  में लग्न से 6,8 12 वें भाव में स्थित हों , तो संतान प्राप्ति में बाधा आती है |

पंचम भाव: राशि ( वृष ,सिंह कन्या ,वृश्चिक ) हो  तो कठिनता से संतान होती है |

निःसंतान योग

पंचम भाव में क्रूर, पापी ग्रहों की मौज़ूदगी

पंचम भाव में बृहस्पति की मौजूदगी

पंचम भाव पर क्रूर, पापी ग्रहों की दृष्टि

पंचमेश का षष्ठम, अष्टम या द्वादश में जाना

पंचमेश की पापी, क्रूर ग्रहों से युति या दृष्टि संबंध

पंचम भाव, पंचमेश व संतान कारक बृहस्पति तीनों ही पीड़ित हों

नवमांश कुण्डली में भी पंचमेश का शत्रु, नीच आदि राशियों में स्थित होना

पंचम भाव व पंचमेश को कोई भी शुभ ग्रह न देख रहे हों संतानहीनता की स्थिति बन जाती है !!

Sunday, January 13, 2019

मै तीर्थ राज प्रयाग हूँ।

मै तीर्थ राज प्रयाग हूँ।
मै देवताओं का धाम हूँ
अक्षयवट, सरस्वती नदी का एक मात्र पहचान हूँ
ब्रह्मा के द्वारा प्रथम यज्ञ का साक्षी हूँ
पाणिनी के अष्टाध्यायी का प्रदाता हूँ
समुद्र मंथन के अमृत का प्राप्त करता हूँ
भारद्वाज ऋषि के तपस्या से तप्त हूँ
पंडित मदन मोहन मालवीय का प्रदाता हूँ
मैं भारत का गौरव, ज्ञान राशि का प्रतीक हूँ
मैं सृष्टि का आदि मध्य और अंत हूँ
मै तीर्थ राज प्रयाग हूँ।

Saturday, January 12, 2019

कुंभ क्षेत्र प्रयागराज का अनुभव

प्रिय आत्मन!
यदि आप कुंभ क्षेत्र प्रयागराज मे आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करना चाह रहें हैं तो आपके लिए हमारा अनुभव काम आ सकता है।
सर्व प्रथम कुंभ क्षेत्र में कम से कम साधनों का प्रयोग करें। जैसे
1-  सम्पूर्ण कुंभ क्षेत्र को घूमने के लिए लगभग 10-15 किलो मीटर भ्रमण करना पड़ता है। इसके लिए आप किसी प्रकार के वाहन का प्रयोग न करें टहलते हुए करें। हाँ साथ में एक छोटा थैला लें जिसमें पीने का पानी और कुछ अल्पाहार हो।
2- अत्यधिक भोजन से बचें।
3- भ्रमण करते वक्त साक्षी भाव को न छोड़े। अर्थात साक्षी भाव से भ्रमण करें।
4- अपने मन में कोई भी गलत भावना न आने दें। जो आत्मा को मलिन करता है।
5- निंदा से बचें। न तो आप किसी का निंदा करें और न ही किसी का निंदा सुनें।
6- प्रतिदिन कम से कम दश छोटे बड़े साधु संत संन्यासीयों का दर्शन करें।
7- प्रत्येक कार्य करते वक्त यह ध्यान में रखें कि आपके जीवन का उद्देश्य क्या है?
  यह तो सुझाव था।
परन्तु जो महसूस होता है उसे शब्दों द्वारा कहना कठिन है। आप स्वयं आएँ और अनुभव करें। हाँ जो मित्र नहीं आ सकते वे भी अपने आस पास किसी नदी में स्नान जरूर करें और उपरोक्त बातों का पालन करें। फायदा परमात्मा घटित हो जाय आपके जीवन में।

डाॅ.मुकेश ओझा
ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार

Saturday, January 5, 2019

विचार

आप अपने विचारों को रोंके नहीं।
आपके अनन्त विभिन्न रंगो के विचार ही आपको जीवन के सर्वोत्तम  ऊचाई पर पहूँचाने मे सहायक सिद्ध होंगे।अपने विचारों का सार्थक उपयोग करें।
और विचारों के सार्थक उपयोग करने का एक मात्र उपाय है - ध्यान।

प्रार्थना एक तरफा संवाद है।

#प्रार्थना
प्रार्थना एक तरफा संवाद है।
वही प्रार्थना कर सकता है, जो प्रत्युत्तर न मांगता हो।
प्रार्थना में यही तो एक खास बात है:
क्योंकि प्रार्थना मे उत्तर थोड़े ही आएगा। आप कहोगे:
हे प्रभु! और वहां से कोई नहीं बोलेगा, कि हां जी,कहिए क्या आज्ञा है? क्या बात है। कोई उत्तर कभी न आएगा। अगर आपने उत्तर की आकांक्षा रखी तो प्रार्थना असंभव हो जाएगी।

प्रार्थना वही कर सकता है जो उत्तर मांगता ही नहीं, जो कहता है: मुझे तो प्रार्थना करने में ही उत्तर मिल गया।  मुझे जो कहना था मैं कहा और मुझे संतुष्टि मिलती गई, मुझे वह मिल गया जो मुझे चाहिए।

प्रार्थना में बड़ा बल होता है, आपने ध्यान दिया आप प्रार्थना करते हैं और आपका मन स्थिर होने लगता है। धीरज बधने लगता है। और एक अदृश्य शक्ति महसूस होने लगता है।
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-डॉ मुकेश ओझा
ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार
।।मनुर्भव।।