Wednesday, September 11, 2019

आस्तेय

🌼🌻अस्तेय🌻🌼

🌺अस्तेय प्रतिष्ठायां सर्वरत्नोपस्थानम्🌺

योग के प्रथम अंग ‍यम के तीसरे उपांग अस्तेय का जीवन में अत्यधिक महत्व है। अस्तेय को साधने से व्यक्ति के व्यक्तित्व में निखार आ जाता है साथ ही वह शारीरिक और मानसिक रोग से स्वत: ही छूट जाता है। किसी भी व्यक्ति की वस्तु या विचार को चोरी कर स्वयं का बनाने या मानने से आपकी स्वयं की पहचान (आइडेंटी) समाप्त होती है और आप स्वयं अपुरुष कहलाते हैं।अस्तेय को अचौर्य भी कहते हैं अर्थात चोरी की भावना नहीं रखना, न ही मन में चुराने का विचार लाना ही अस्तेय है। प्रत्येक व्यक्ति चोर है। किसी के जैसा होने का भाव रखना भी चोरी है। किसी से प्रेरित होकर उसके जैसा होना भी चोरी है।हमने देखा है कि कोई भी व्यक्ति नेता, अभिनेता, गुरु आदि को अपना आदर्श मानकर उसके पदचिन्हों पर चलने लगता है। हमारी सारी शिक्षा प्रणाली भी यही सिखाती है कि महान व्यक्तियों का अनुसरण करो। जबकि योग कहता है कि अनुसरण दूसरी आत्महत्या है। आजकल के युवा तो पूर्णत: नकलची हो चले हैं। फिल्में देखकर, नेता को सुनकर या किसी भी फैशन को जानकर उनमें ही बहने लगते हैं, खुद की अकल का इस्तेमाल शायद ही करते होंगे। योग कहता है कि धन, भूमि, संपत्ति, नारी, विचार, विद्या और व्यक्तित्व आदि किसी भी ऐसी वस्तु जिसे आपने पुरुषार्थ (खुद के दम पर) से अर्जित नहीं किया उसको लेने के विचार मात्र से ही अस्तेय खंडित होता है। इस भावना से चित्त में जो असर होता है उससे मानसिक प्रगति में बाधा उत्पन्न होती है। मन रोगग्रस्त हो जाता है और आत्मिक विकास रुक जाता है।शरीर, मन के साथ ही आत्मा अर्थात स्वयं की मौलिकता के महत्व को समझना जरूरी है। प्रकृति या परमात्मा ने प्रत्येक व्यक्ति को भिन्न बनाया है। इसका उदाहण है कि प्रत्येक व्यक्ति का अंगूठा दुनिया के किसी दूसरे व्यक्ति से नहीं मिलता। यह इस बाद की सूचना है कि प्रत्येक व्यक्ति स्वयं जैसा होने के लिए स्वतंत्र है।

🌻🌼अस्तेय के लाभ : यदि आपमें चोरी की भावना नहीं है तो आप स्वयं के विचार अर्जित करेंगे और स्वयं द्वारा अर्जित वस्तु को प्राप्त कर सच्चा संतोष और सुख पाएंगे। यह भाव कि सब कुछ मेरे कर्म द्वारा ही अर्जित है- आपमें आत्मविश्वास का विकास करता है। यह आत्मविश्वास अपको मानसिक रूप से सुदृड़ बनाता है।किसी भी विचार और वस्तु का संग्रह करने की प्रवृत्ति छोड़ने से व्यक्ति के शरीर से संकुचन हट जाता है जिसके कारण शरीर शांति को महसूस करता है। इससे मन खुला और शांत बनता है। छोड़ने और त्यागने की प्रवृत्ति के चलते मृत्युकाल में शरीर के किसी भी प्रकार के कष्ट नहीं होते। कितनी ही महान वस्तु हो या कितना ही महान विचार हो, लेकिन आपकी आत्मा से महान कुछ भी नहीं।
-डॉ मुकेश ओझा
ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार

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