Saturday, February 29, 2020

कुछ प्रश्न स्वयं से

मेरी इच्छा है कि? 
मुझे जो भाषा सबसे ज्यादा पसंद है ।
मुझे इन्हें इकट्ठा करने में मजा आता है।
यदि मेरी कोई तीन इच्छाएँ पूरी होती हो तो वह होंगी।
चित्रकार जो मुझे बहुत पसंद है।
आप किसे एक महत्वपूर्ण खोज मानते हैं।
मेरी पसंदीदा एडवेंचर वाली गतिविधि।
वो लेखक जिन्हें पढ़कर मेरा जीवन बदल गया...
जीवन का वह निश्चय जिसे मैं अभी तक पूरा नहीं कर पाया।
नये वर्ष का वह निश्चय जिसे मैं अभी तक पूरा नहीं कर पाया।

मेरी समस्त इच्छाएँ विसर्जित हो जाएँ।
मै साक्षी हो जाऊँ।
मौन की भाषा
मै साक्षी हो जाऊँ
परमात्मा 
स्वयं का खोज
ध्यान 
🕊. वेद
जिसके लेखक का नाम - परमात्मा है।
🐣. ओशो
🌻. मैथली शरण गुप्त

#साक्षी_भाव
-डॉ मुकेश ओझा

Wednesday, February 19, 2020

प्राचीन शिव मंदिर का वैज्ञानिक और भौगोलिक विश्लेषण

भारत में ऐसे शिव मंदिर हैं जो केदारनाथ से लेकर रामेश्वरम तक एक सीधी रेखा में बनाये गये हैं।
आश्चर्य है कि हमारे पूर्वजों के पास ऐसा कैसा विज्ञान और तकनीक था जिसे हम आज तक समझ ही नहीं पाये?

उत्तराखंड का केदारनाथ, तेलंगाना का कालेश्वरम, आंध्रप्रदेश का कालहस्ती, तमिलनाडू का एकंबरेश्वर, चिदंबरम और अंततः
रामेश्वरम मंदिरों को 79° E 41’54” Longitude के भौगोलिक सीधी रेखा में बनाया गया है।
यह सारे मंदिर प्रकृति के 5 तत्वों में लिंग की अभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसे हम आम भाषा में पंच भूत कहते है।पंच भूत यानी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष।
इन्ही पाँच तत्वों के आधार पर इन पाँच शिव लिंगों को प्रतिष्ठापित किया है।
●जल का प्रतिनिधित्व तिरुवनैकवल मंदिर में है,
●अग्नि का प्रतिनिधित्व तिरुवन्नमलई में है,
●वायु का प्रतिनिधित्व कालहस्ती में है,
●पृथ्वी का प्रतिनिधित्व कांचीपुरम में है
●अतरिक्ष या आकाश का प्रतिनिधित्व चिदंबरम मंदिर में है!

वास्तु-विज्ञान-वेद का अद्भुत समागम को दर्शाते हैं ये पाँच मंदिर।
भौगॊलिक रूप से भी इन मंदिरों में विशेषता पायी जाती है। 
इन पाँच मंदिरों को योग विज्ञान के अनुसार बनाया गया था,और एक दूसरे के साथ एक निश्चित भौगोलिक संरेखण में रखा गया है।
इस के पीछे निश्चित ही कॊई विज्ञान होगा जो मनुष्य के शरीर पर प्रभाव करता होगा।
इन मंदिरों का करीब चार हज़ार वर्ष पूर्व निर्माण किया गया था जब उन स्थानों के अक्षांश और देशांतर को मापने के लिए कोई उपग्रह तकनीक उपलब्ध ही नहीं था।
तो फिर कैसे इतने सटीक रूप से पाँच मंदिरों को प्रतिष्ठापित किया गया था? 
उत्तर भगवान ही जाने।केदारनाथ और रामेश्वरम के बीच 2383 किमी की दूरी है। 
लेकिन ये सारे मंदिर लगभग एक ही समानांतर रेखा में पड़ते हैं।आखिर हज़ारों वर्ष पूर्व किस तकनीक का उपयॊग कर इन मंदिरों को समानांतर रेखा में बनाया गया है यह आज तक रहस्य ही है।
श्रीकालहस्ती मंदिर में टिमटिमाते दीपक से पता चलता है कि वह वायु लिंग है।
तिरूवनिक्का मंदिर के अंदरूनी पठार में जल वसंत से पता चलता है कि यह जल लिंग है।
अन्नामलाई पहाड़ी पर विशाल दीपक से पता चलता है कि
वह अग्नि लिंग है।
कंचिपुरम के रेत के स्वयंभू लिंग से पता चलता है कि वह पृथ्वी लिंग है...
और चिदंबरम की निराकार अवस्था से भगवान के निराकारता यानी आकाश तत्व का पता लगता है।

अब यह आश्चर्य की बात नहीं तो और क्या है कि ब्रह्मांड के पाँच तत्वों का प्रतिनिधित्व करनेवाले पाँच लिंगो को एक समान रेखा में सदियों पूर्व ही प्रतिष्ठापित किया गया है।
हमें हमारे पूर्वजों के ज्ञान और बुद्धिमत्ता पर गर्व होना चाहिए कि उनके पास ऐसा विज्ञान और तकनीक था जिसे आधुनिक विज्ञान भी नहीं भेद पाया है।माना जाता है कि केवल यह पाँच मंदिर ही नहीं अपितु इसी रेखा में अनेक मंदिर होगें जो केदारनाथ से रामेश्वरम तक सीधी रेखा में पड़ते हैं।
इस रेखा को “शिव शक्ति अक्श रेखा” भी कहा जाता है।
संभवतः यह सारे मंदिर कैलाश को ध्यानन में रखते हुए बनाया गया हो जो 81.3119° E में पड़ता है!? 
उत्तर शिवजी ही जाने। 
कमाल की बात है
महाकाल से शिव ज्योतिर्लिंगों के बीच कैसा सम्बन्ध है...
उज्जैन से शेष ज्योतिर्लिंगों की दूरी भी है रोचक-
●उज्जैन से काशी विश्वनाथ- 999 किमी
●उज्जैन से,मल्लिकार्जुन- 999 किमी
●उज्जैन से केदारनाथ- 888 किमी
●उज्जैन से त्रयंबकेश्वर- 555 किमी
●उज्जैन से सोमनाथ- 777 किमी
●उज्जैन से ओंकारेश्वर- 111 किमी
●उज्जैन से भीमाशंकर- 666 किमी
●उज्जैन से घृष्णेश्वर - 555 किमी
●उज्जैन से बैजनाथ- 999 किमी
●उज्जैन से रामेश्वरम- 1999 किमी

उज्जैन पृथ्वी का केंद्र माना जाता है।
इसलिए उज्जैन में सूर्य की गणना और ज्योतिष गणना के लिए मानव निर्मित यंत्र भी बनाये गये हैं करीब 2050 वर्ष पहले।और जब करीब 100 साल पहले पृथ्वी पर काल्पनिक रेखा (कर्क)अंग्रेज वैज्ञानिक द्वारा बनायीं गयी तो उनका मध्य भाग उज्जैन ही निकला।
आज भी वैज्ञानिक उज्जैन ही आते हैं सूर्य और अन्तरिक्ष की जानकारी के लिये।।

Sunday, February 9, 2020

सूर्य की गति

क्या आप जानते हैं?  सूर्य में भी दो तरह की गतियाँ है।
सूर्य का परिक्रमण और सूर्य का अक्ष भ्रमण
सूर्य के गति का वर्णन वेदों में भी वर्णित है- 
ॐ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेश्शयन्नमृतम्मर्त्यञ्च हिरण्येन सवितारथेन देवो याति भुवनानि पश्यन।।

सूर्य अपने अक्ष पर परिभ्रमण करते हुए आकाश गंगा की परिक्रमा करता है।

सूर्य का परिक्रमण
जिस प्रकार पृथ्वी और अन्य ग्रह सूरज की परिक्रमा करते हैं उसी प्रकार सूरज भी आकाश गंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है। सूर्य सौरमण्डल का प्रधान है। यह हमारी मंदाकिनी दुग्धमेखला (आकाश गंगा) के केन्द्र से लगभग 30,000 प्रकाशवर्ष की दूरी पर एक कोने में स्थित है। सूर्य दुग्धमेखला मंदाकिनी के केन्द्र के चारों ओर 251 किलोमीटर प्रति सेकेंड की गति से परिक्रमा कर रहा है। इसका परिक्रमण काल 22 से 25 करोड़ वर्ष है। जिसे ब्रह्माण्ड वर्ष / निहारिका वर्ष कहते हैं।

सूर्य का अक्ष भ्रमण

सूर्य के अक्ष भ्रमण का ज्ञान सौर कलंक से कोई भी कर सकता है । आईए हम सौर कलंक एवं सूर्य के अक्ष भ्रमण को समझते है।

सौर कलंक
सूर्य को दूरदर्शी यंत्र से देखने पर इसकी सतह पर छोटे-बड़े धब्बे दिखलाई पड़ते हैं। इन्हें सौर कलंक कहा जाता है। ये कलंक अपने स्थान से सरकते हुए दिखाई पड़ते हैं। इससे वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि सूर्य पूरब से पश्चिम की ओर अपने अक्ष पर एक परिक्रमा करता है। सूर्य की बाहरी परतें भिन्न भिन्न घुर्णन गति दर्शाती है, भूमध्य रेखा ( मध्य भाग ) पर सतह हर 25.4 दिनों में एक बार घूमती है, ध्रुवो के पास यह 36 दिन हैं। यह अजीब व्यवहार इस तथ्य के कारण है कि सूर्य पृथ्वी के जैसे ठोस नहीं है। इसी तरह का प्रभाव गैस ग्रहों में देखा जाता है। सूर्य का केन्द्र एक ठोस पिण्ड के जैसे घुर्णन करता है।

सूर्य पर कुछ सूर्य धब्बो / सौर कलंक (चलते हुए गैसों के खोल) के क्षेत्र होते है जिनका तापमान अन्य क्षेत्रों से कुछ कम लगभग 3800 डिग्री केल्वीन (1500 ºC) होता है। सूर्य धब्बे काफ़ी बड़े हो सकते हैं, इनका व्यास 50000 किलोमीटर हो सकता है। सूर्य धब्बे सूर्य के चुंबकीय क्षेत्रों में परिवर्तन से बनते हैं। सूर्य के धब्बों का एक पूरा चक्र 22 वर्षों का होता है। पहले 11 वर्षों तक यह धब्बा बढ़ता है और बाद के 11 वर्षों तक यह धब्बा घटता है। जब सूर्य की सतह पर धब्बा दिखलाई देता है, उस समय पृथ्वी पर चुम्बकीय झंझावत उत्पन्न होते हैं। इससे चुम्बकीय सुई की दिशा बदल जाती है, एवं रेडियो, टेलीविजन, बिजली चलित मशीनों में गड़बड़ी उत्पन्न हो जाती है। सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र बहुत मज़बूत है (स्थलीय मानकों के द्वारा) और बहुत जटिल है। इसका हेलीयोस्फियर भी कहते है जो प्लूटो के परे तक फैला हुआ है। सूर्य का निरंतर ऊर्जा उत्पादन सतत एक मात्रा में नहीं होता है, ना ही सूर्य धब्बो की गतिविधि। 17वी शताब्दी के उत्तारार्ध में सूर्य धब्बे अपने न्यूनतम पर थे। इसी समय में यूरोप में ठंड अप्रत्याशित रूप से बढ गयी थी। सौर मंडल के जन्म के बाद से सूर्य ऊर्जा का उत्पादन 40% बढ़ गया है।
-डॉ मुकेश ओझा 
ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार 
8840901948

Saturday, February 8, 2020

गोमेद रत्न धारण करने की विधि और मन्त्र

गोमेद रत्न धारण करने की विधि
 सबसे पहले अंगूठी को दूध, फिर गंगा जल, फिर शहद और फिर शक्कर और गाय के घी के घोल में डाल दें। उसके पश्चात् राहु का स्मरण करते हुए धूप जलाएं। और पुष्प, चंदन,रोली, चढ़ाकर प्रणाम करें।
 और राहु के मन्त्र का १०८या यथाशक्ति जप करके रत्न धारण करें।
राहुल का वैदिक मन्त्र- 

 ॐ कयानश्चित्र आ भुवद्वती सदा वृध: सखा कया शचिंष्ठया वृता।।

राहु का नाम मन्त्र- ॐ राहवे नम:

राहुल का बीज मंत्र- ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:

-डॉ मुकेश ओझा

ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार 

8840901948

Friday, February 7, 2020

समय की शुद्धता और मन की पवित्रता

किसी भी कार्य के लिए उस कार्य के अनुरूप समय का होना अति आवश्यक होता है। यदि समय उस कार्य के प्रकृति के अनुरूप हो तभी वह कार्य अपने फल के पूर्णता को प्रदान करता है। परन्तु यदि समय उस कार्य के प्रकृति के अनुरूप न हो तो कार्य के पूर्ण फल प्राप्त नहीं होतीं।
किसी कार्य के फल प्राप्ति मे एक और विशेष कारण होता है और वह है मन की पवित्रता या संकल्प शक्ति।