Friday, May 28, 2021

#भगवान्_का_बुद्धावतार_और_कितने_बुद्ध? #क्या_नाम?

#भगवान्_का_बुद्धावतार_और_कितने_बुद्ध? #क्या_नाम?

बुद्ध को लेकर समाज और विद्वानों के बीच अनेकों मत व धारणाएं प्रचलित हैं, यथा-

१) बुद्ध भगवान् विष्णु के अवतार हैं।

२) बुद्ध किसी के अवतार नहीं हैं, स्वतन्त्र हैं।

३) गौतम ही एकमात्र बुद्ध हैं और उन्होंने ही बौद्ध धर्म चलाया।

४) गौतम से पूर्ववर्ती अजिनपुत्र बुद्ध भी थे और वही भगवान् विष्णु के अवतार हैं।

५) गौतम बुद्ध, अजिनपुत्र महात्मा बुद्ध, ये सभी भगवान् विष्णु के ही अवतार हैं एवं बुद्ध अनेकों हुए हैं और आगे भी होंगे।

बुद्ध का शाब्दिक अर्थ है, जागृत होना, सतर्क होना तथा जितेन्द्रिय होना | वस्तुतः बुद्ध एक व्यक्तिविशेष का परिचायक न होकर ज्ञान की उच्चतम स्थितिविशेष का परिचायक है | वर्तमान समय में बुद्ध शब्द का व्यापक रूप में प्रयोग राजकुमार सिद्धार्थ के परिव्राजक रूप के लिए प्रसिद है |

भारतीय संस्कृति अथवा ज्ञान परंपरा में आस्तिक दर्शन और नास्तिक दर्शन की व्यवस्था हमारे यहाँ की गयी है, क्योंकि बिना अन्धकार के प्रकाश महत्ता नहीं प्रतिपादित हो सकती और अज्ञान के बिना ज्ञान का महत्त्व कैसे प्रतिपादित होगा ? आस्तिक दर्शन में जैसे पूर्व मीमांसा, उत्तर मीमांसा, सांख्य, योग, न्याय तथा वैशेषिक दर्शन का नाम आता है उसी प्रकार नास्तिक दर्शन में बौद्ध, जैन तथा चार्वाक दर्शन का स्थान है|

पुराणों के अनुसार युगाधारित अवतारों में जैसे वेदव्यास का कार्य है, वेदों का विभाजन, पुराणों का संकलन, तथा ग्रंथों का संरक्षण करना वैसे ही बुद्ध का कार्य है, समाज में जो लोग धर्म के नाम पर पाखंड तथा पशुहिंसा आदि करें, ऐसी आसुरी सम्पदा से युक्त पुरुषों को मायामय उपदेश के द्वारा सनातन से विमुख करना, जैसे किसी फोड़े को शरीर से काट कर इसीलिए अलग कर दिया जाता है कि वह अन्य अंगों को क्षति न पहुंचा सके |

भारतीय ज्ञान मनीषा में अनेकों बुद्धों का आगमन हो चुका है, तथा अनेकों बुद्ध आयेंगे| बुद्ध एक नहीं हुए हैं | प्रवीण, निपुण, अभिज्ञ, कुशल, मैत्रेय, गौतम, कश्यप, शक्र, अर्यमा, शाक्यसिंह, क्रतुभुक, कृती, सुखी, शशांक, निष्णात, सत्व, शिक्षित, सर्वग्य, सुनत, रुरु, मारजित्, बुद्ध, प्रबुद्ध आदि कई बुद्धों एवं बोधिसत्वों का वर्णन विभिन्न प्राचीन गर्न्थों  उपलब्ध होता है |

बौद्धावतार का क्या कारण है तथा उनका वर्णन कहां कहां मिलता है-

मिश्रदेशोद्भवाम्लेच्छाः काश्यपेनैव शासिताः।....

शिखासूत्रं समाधाय पठित्वा वेदमुत्तमम् |

यज्ञैश्च पूजयामासुर्देवदेवं शचीपतिम्॥....

अहं लोकहितार्थाय जनिष्यामि कलौयुगे।.....

कीकटे देशमागत्य ते सुरा जज्ञिरे क्रमात् |

वेदनिन्दां पुरस्कृत्य बौद्धशास्त्रमचीकरन् ॥....

वेदनिन्दाप्रभावेण ते सुराः कुष्ठिनोऽभवन् ।......

विष्णुदेवमुपागम्य तुष्टुवुर्बौद्धरूपिणम् ।

हरिर्योगबलेनैव तेषां कुष्ठमनाशयत्॥

(भविष्यपुराण, प्रतिसर्गपर्व, खण्ड - ०४, अध्याय - २०)

कलियुग के आने पर मिस्र देश में उत्पन्न कश्यप गोत्रीय म्लेच्छों ने शिखा रख कर तथा जनेऊ धारण करके स्वयं को ब्राह्मण घोषित कर दिया तथा स्वयं भी वेदपाठ करते हुए देवताओं का पूजन करने तथा कराने लगे | इससे त्रस्त होकर देवताओं ने देवराज इंद्र के समक्ष जाकर समाधान हेतु निवेदन किया | देवराज ने उनकी प्रार्थना पर उन असुर म्लेच्छों को मोहित करने के लिए बौद्धमार्ग का विस्तार करके वेदों कि निंदापरक ग्रंथों को लिखने के लिए बारहों आदित्य के साथ कीकट में अवतार लिया | वेदनिन्दा करने के कारण उन्हें कुष्ठ हो गया अतः वे समस्त देवगण बुद्धरूपधारी विष्णु जी के पास गए जिन्होंने अपने योगबल से उनका रोगनाश किया |

श्रीमद्भागवत के अनुसार असुरों को मोहित करने के लिए बुद्ध का अवतार हुआ था | सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य आदि का उपदेश देने के कारण उन्हें अधार्मिक तो नहीं कहा जा सकता, परन्तु वेद तथा ईश्वर निंदक होने के कारण वे धार्मिक भी नहीं कहलाये | अतः उन्हें उपधार्मिक कहा गया है |

“ततः कलौ सम्प्रवृत्ते सम्मोहाय सुरद्विषाम् |

बुद्धो नाम्नाजिन सुतः, कीकटेषु भविष्यति” | १.३.

तथा

 “धर्मद्विषां निगमवर्त्मनि निष्ठितानां......

वेषं विधाय बहुभाष्यत औपधर्म्यं”|| २.७.३७

श्रीधर स्वामी ने कीकट का अर्थ मगध का मध्य या गया अर्थ किया है। शक्तिसंगम तन्त्र के अनुसार नालंदा के गृद्धकूट से मिर्जापुर के चुनार के पास चरणाद्रि पर्वत (नैनागढ किला) तक कीकट है-
 

चरणाद्रिं समारभ्य गृध्रकूटान्तकं शिवे ।

तावत् कीकटदेशः स्यात् तदन्तर्मगधो भवेत्॥

(शक्तिसंगम तन्त्र)

अजिनपुत्र बुद्ध के अवतार के समय वाराणसी में महाराज किकी का शासन था और वे कीकट के भी राजा थे। पुराणों में शंकराचार्य जी के आगमन से बहुत पूर्व से ही विष्णु भगवान के बौद्धावतार की बात कही गयी है | ऐसे प्रमाण देवीभागवत, विष्णु पुराण, स्कन्द पुराण, नृसिंह पुराण आदि में भी प्राप्य हैं | विभिन्न पुराणों में वैष्णव दशावतार में बुद्ध का वर्णन किया गया है। यथा-

मत्स्यः कूर्मो वराहश्च नारसिंहोऽथ वामनः॥

रामो रामश्च कृष्णश्च बुद्धः कल्की च ते दश॥

(भविष्यपुराण, उत्तरपर्व, अध्याय - १९०, श्लोक - ०६)

मत्स्यः कूर्मो वराहश्च नृसिंहो वामनस्तथा।

रामो रामश्च कृष्णश्च बुद्धः कल्की ततः स्मृतः।

एते दशावताराश्च पृथिव्यां परिकीर्तिताः॥

(पद्मपुराण, उत्तरखण्ड, अध्याय - ७१, श्लोक - २७)
 

दैत्यानां नाशनार्थाय विष्णुना बुद्धरूपिणा।

बौद्धशास्त्रमसत्प्रोक्तं नग्ननीलपटादिकम्॥

(पद्मपुराण, उत्तरखण्ड, अध्याय - २३६, श्लोक - ०६)

भविता सञ्जयश्चापि वीरो राजा रणञ्जयात्।

सञ्जयस्य सुतः शाक्यः शाक्याच्छुद्धोदनोऽभवत्॥

शुद्धोदनस्य भविता शाक्यार्थे राहुलः स्मृतः।

प्रसेनजित्ततो भाव्यः क्षुद्रको भविता ततः॥

(वायुपुराण, उत्तरार्ध, अध्याय - ३७, श्लोक - २८४-२८५)

स्कन्द पुराण में धर्मराज युधिष्ठिर को अवतारों का वर्णन करते हुए ऋषि मार्कण्डेय कहते हैं-

मत्स्यः कूर्मो वराहश्च नरसिंहोऽथ वामनः।

रामो रामश्च कृष्णश्च बुद्धः कल्किश्च ते दश ॥

तथा बुद्धत्वमपरं नवमं प्राप्स्यतेऽच्युतः ।

शान्तिमान्देवदेवेशो मधुहन्ता मधुप्रियः ॥

तेन बुद्धस्वरूपेण देवेन परमेष्ठिना ।

भविष्यति जगत्सर्वं मोहितं सचराचरम् ॥

(स्कन्दपुराण, अवन्तीखण्ड-रेवाखण्ड, अध्याय - १५१, श्लोक - ०४ एवं २१-२२)

शान्तात्मा लम्बकर्णश्च गौराङ्गश्चाम्बरावृतः।

ऊर्ध्वपद्मस्थितो बुद्धो वरदाभयदायकः॥

(अग्नि पुराण, दशावतारप्रतिमालक्षण, अध्याय - ४९, श्लोक - ०८)

विष्णुधर्मोत्तरपुराण में भगवान् विष्णु ने बुद्ध अवतार लेने की भविष्यवाणी भी करते हुये कहते हैं कि मेरे द्वारा बुद्धरूप से कलियुग में (उप) धर्म का प्रवचन किया जाएगा एवं फिर विष्णुयशा के पुत्र (कल्कि) के रूप में म्लेच्छ राजाओं का वध किया जाएगा। यथा-

मया बुद्धेन वक्तव्या धर्माः कलियुगे पुनः।

हन्तव्या म्लेच्छराजानस्तथा विष्णुयशात्मना॥

(विष्णुधर्मोत्तरपुराण, खण्ड - ०३, अध्याय - ३५१, श्लोक - ५४)

भगवान् बुद्ध पतन और उत्थान दोनों कराते है, इसका एक संकेतात्मक वर्णन देखें -

बुद्धं प्रतीदं ब्रह्मैव केवलं शान्तमव्ययम्।

अबुद्धं प्रति बुद्ध्यैतद्भासुरं भुवनान्वितम्॥

सर्गस्तु सर्गशब्दार्थतया बुद्धो नयत्यधः।

स ब्रह्मशब्दार्थतया बुद्धः श्रेयो भवत्यलम्॥

(योगवासिष्ठ महारामायण, स्थितिप्रकरण, सर्ग - ०३, श्लोक - १६ एवं २३)

बृहत्पाराशर होराशास्त्र के अनुसार अजन्मा परमात्मा जीवों को उनका कर्मफल देने के लिए भी भगवान् जनार्दन ग्रहरूप से आते हैं। दैत्यों के बल का नाश करने के लिए, एवं देवताओं के बल को बढ़ाने के लिए, धर्म की स्थापना के लिए क्रम से शुभ ग्रहों का निर्माण हुआ है। श्रीरामावतार सूर्य हैं, चन्द्रमा श्रीकृष्ण हैं। नृसिंह मङ्गल एवं बुद्धावतार बुध हैं। वामन बृहस्पति हैं एवं परशुरामावतार शुक्र हैं। कूर्मावतार शनि और वाराह राहु हैं। केतु मत्स्यावतार हैं और भी अन्य जो आकाशीय पिंड हैं, उनमें परमात्मा का ही अंश है। यथा-

दैत्यानां बलनाशाय देवानां बलबृद्धये।

धर्मसंस्थापनार्थाय ग्रहाज्जाताः शुभाः क्रमात्‌॥

रामोऽवतारः सूर्यस्य चन्द्रस्य यदुनायकः।

नृसिंहो भूमिपुत्रस्य बुद्धः सोमसुतस्य च॥

वामनो विबुधेज्यस्य भार्गवो भार्गवस्य च।

कूर्मो भास्करपुत्रस्य सैंहिकेयस्य सूकरः॥

केतोर्मीनावतारश्च ये चान्ये तेऽपि खेटजाः।

परात्मांशोऽधिको येषु ते सर्वे खेचराभिधः॥

(बृहत्पाराशर होराशास्त्र, अध्याय ०२, श्लोक - ०२-०७)

भगवान् बुद्ध की जन्मतिथि-

कुछ विद्वान् बुद्धावतार विजयादशमी के दिन मानते हैं तो शक्तिसंगम तन्त्र के छिन्नमस्ताखण्ड में वर्णित श्लोक के आधार पर कुछ कहते हैं कि शुक्लपक्ष की दशमी में जब विशाखा नक्षत्र और रविवार था तब दिन के छः घड़ी बीतने पर बुद्धावतार हुआ। ज्योतिष गणना के अनुसार शुक्ल दशमी और विशाखा का योग आषाढ़ के महीने में बहुधा बनता है।

शुद्धा च दशमी देवि रविवारेण संयुता।

शुक्लयोगे विशाखायां दिवा नाड़ी च षट् तदा।

बुद्धोऽवतीर्णो देवेशि ततः कलियुगे शृणु॥

(शक्तिसंगम तन्त्र, छिन्नमस्ताखण्ड, षष्ठ पटल, श्लोक - ६६)

कुछ विद्वान् वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को बुद्ध की जयन्ती मनाते हैं| प्रधानतया सिद्दार्थ पुत्र गौतम बुद्ध की वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को जयन्ती मनायी जाती है|

प्रधान बौद्ध ग्रंथ ललितविस्तर सूत्र के अनुसार बौद्धशास्त्र के समूहों में (दीपङ्कर बुद्ध से गौतम बुद्ध तक और भविष्य के मैत्रेय बुद्ध को मिलाकर) पच्चीस बुद्ध दिखते हैं। उनमें शुद्धोदन की औरस सन्तान, जो मायादेवी के गर्भ से उत्पन्न हुई, जिनकी शाक्यसिंह, सर्वार्थसिद्ध (सिद्धार्थ), अर्कबन्धु और गौतम, इन चार नामों से प्रसिद्धि हुई| कपिलवस्तु में कलियुग के २४८६ (दो हज़ार, चार सौ छियासी) वर्ष बीतने पर शुक्रवार को देवताओं से द्रोह करने वाले (असुरों) को मोहित करने के लिए साक्षात् विवेक की मूर्ति, इच्छानुसार शरीर को धारण करके उत्पन्न हुए। ललितविस्तर सूत्र उक्त वचन यथा--

इह खलु बौद्धशास्त्रसमूहेषु सम्प्रोक्ताः पञ्चविंशतिर्बुद्धा दृश्यन्ते। तेषां शुद्धोदनौरसात् मायादेवीगर्भजातः शाक्यसिंहसर्वार्थसिद्धार्कबन्धुगौतमेति नामचतुष्टयेन प्रसिद्धोऽन्तिमतमः लोकविश्रुतो बुद्धः कपिलवस्तुनगरे कलेश्चतुःशतषडशीत्यधिकद्विसहस्रमितेषु गतेष्वब्देषु शुक्रवासरे सुरद्विषां सम्मोहनाय साक्षाद् विवेकमूर्त्तिः स्वेच्छाविग्रहेण प्रादुर्बभूव। (ललितविस्तर सूत्र)

ललितविस्तर सूत्र के अनुसार बुद्ध के २५ अवतारों का सामान्य परिचय निम्नवत है-

१-      सुमेध बुद्ध , कुल- ब्राह्मण, निवास- अमरावती|

२-      दीपङ्कर बुद्ध, जन्मस्थान- रम्यवती, कुल- क्षत्रिय, माता एवं पिता - सुमेधा एवं सुदेव, पटरानी – पद्मा, पुत्र – वृषभस्कन्ध|

३-      कौण्डिन्य बुद्ध, जन्मस्थान – रम्यवती, कुल – क्षत्रिय, माता एवं पिता - सुजाता एवं सुनन्द, पटरानी - रुचि देवी, पुत्र – विजितसेन|

४-      मङ्गल बुद्ध, जन्मस्थान - उत्तर नगर, कुल – क्षत्रिय, माता एवं पिता - उत्तर एवं उत्तरा, पटरानी - यशस्वी (यशस्विनी), पुत्र – शिवल|

५-      सुमन बुद्ध, जन्मस्थान - मेखल नगर, कुल – क्षत्रिय, माता एवं पिता - सुदत्त एवं सिरिमा, पटरानी – अवतंसिका, पुत्र – अनुपम|

६-      रेवत बुद्ध, जन्मस्थान – सुधान्यवती, कुल – क्षत्रिय, माता एवं पिता - विपुला एवं विपुल, पटरानी – सुदर्शना, पुत्र – वरुण|

७-      शोभित बुद्ध, जन्मस्थान – सुधर्मनगर, कुल – क्षत्रिय, माता एवं पिता - सुधर्मा एवं सुधर्म, पटरानी – मणिला, पुत्र – सिंह|

८-      अनोमदर्शी बुद्ध, जन्मस्थान – चन्द्रवती, कुल – क्षत्रिय, माता एवं पिता - यशोधरा एवं यशस्वी, पटरानी – सिरिमा, पुत्र – उपवाण|

९-      पद्म बुद्ध, जन्मस्थान – चम्पकनगर, कुल – क्षत्रिय, माता एवं पिता - असमा एवं अस, पटरानी – उत्तरा, पुत्र – रम्य|

१०-  नारद बुद्ध, जन्मस्थान - धन्यवती नगर, कुल – क्षत्रिय, माता एवं पिता - अनोमा एवं सुदेव, पटरानी – विजितसेना, पुत्र – नन्दोत्तर|

११-  पद्मोत्तर बुद्ध, जन्मस्थान – हंसवती, कुल – क्षत्रिय, माता एवं पिता - सुजाता एवं आनन्द, पटरानी – वसुदत्ता, पुत्र – उत्तम|

१२-  सुमेध बुद्ध, जन्मस्थान - सुदर्शन नगर, कुल – क्षत्रिय, माता एवं पिता - सुदत्ता एवं सुदत्त, पटरानी – सुमना, पुत्र – पुनर्वसु|

१३-  सुजात बुद्ध, जन्मस्थान - सुमङ्गल नगर, कुल – क्षत्रिय, माता एवं पिता - प्रभावती एवं उद्गत, पटरानी – श्रीनन्दा, पुत्र – उपसेन|

१४-  प्रियदर्शी बुद्ध, जन्मस्थान - सुधन्य नगर, कुल – क्षत्रिय, माता एवं पिता - चन्द्रा एवं सुदत्त, पटरानी – विमला, पुत्र – काञ्चनावेल|

१५-  अर्थदर्शी बुद्ध, जन्मस्थान - शोभन नगर, कुल – क्षत्रिय, माता एवं पिता - सुदर्शना एवं सागर, पटरानी – विशाखा, पुत्र – शैल|

१६-  धर्मदर्शी बुद्ध, जन्मस्थान - शरण नगर, कुल – क्षत्रिय, माता एवं पिता - सुनन्दा एवं शरण, पटरानी – विचिकोली, पुत्र – पुण्यवर्द्धन|

१७-  सिद्धार्थ बुद्ध (प्राचीन), जन्मस्थान - वैभार नगर, कुल – क्षत्रिय, माता एवं पिता - सुस्पर्शा एवं उदयन, पटरानी – सौमनस्या, पुत्र – अनुपम|

१८-  तिष्य बुद्ध, जन्मस्थान - क्षेमक नगर, कुल – क्षत्रिय, माता एवं पिता - पद्मा एवं जनसन्ध, पटरानी – सुभद्रा, पुत्र – आनन्द|

१९-  पुष्य बुद्ध, जन्मस्थान - काशिका नगरी, कुल – क्षत्रिय, माता एवं पिता - सिरिमा एवं जयसेन, पटरानी - कृशा गौतमी, पुत्र – अनुपम|

२०-  विपश्यी बुद्ध, जन्मस्थान - बन्धुमती नगरी, कुल – क्षत्रिय, माता एवं पिता - बन्धुमती एवं बन्धुमान्, पटरानी – सुदर्शना, पुत्र – समवृत्तस्कंध|

२१-  शिखी बुद्ध, जन्मस्थान – अरुणवती, कुल – क्षत्रिय, माता एवं पिता - प्रभावती एवं अरुण, पटरानी – सर्वकामा, पुत्र – अतुल|

२२-  विश्वम्भू बुद्ध, जन्मस्थान – अनोमनगर, कुल – क्षत्रिय, माता एवं पिता - यशस्वी (यशस्विनी) एवं सुप्रतीत, पटरानी – सुचित्रा, पुत्र – शूर्पबुद्ध|

२३-  ककुसन्ध बुद्ध, जन्मस्थान - क्षेमवती नगरी, कुल – ब्राह्मण, माता एवं पिता - विशाखा एवं अग्निदत्त, पटरानी – रोचिनी, पुत्र – उत्तर|

२४-  कोणागमन बुद्ध, जन्मस्थान – शोभवती, कुल – ब्राह्मण, माता एवं पिता - उत्तरा एवं यज्ञदत्त, पटरानी – रुचिगात्रा, पुत्र – स्वस्तिज|

२५-  काश्यप बुद्ध, जन्मस्थान - कीकट , कुल – ब्राह्मण, माता एवं पिता - धनवती एवं ब्रह्मदत्त (अजन), पटरानी – सुनन्दा, पुत्र – विजितसेन|

२६-  गौतम बुद्ध, जन्मस्थान – कपिलवस्तु, कुल – क्षत्रिय, माता एवं पिता - मायादेवी एवं शुद्धोदन, पटरानी - भद्रकञ्चना यशोधरा, पुत्र – राहुल|

उपर्युक्त विवेचनों व प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि अनेकों बुद्धों का अवतार अथवा जन्म हुआ है| सिद्दार्थ गौतम बुद्ध से पूर्व में भी बुद्ध हुये हैं, जिनका उल्लेख पुराणों, तन्त्रों व बौद्ध साहित्यों में उल्लेख मिलता है| सिद्दार्थ गौतम बुद्ध से पूर्व में भी दर्शन, चिन्तन व उपासना के रूप में एक बौद्द परम्परा सनातन या आस्तिक दर्शन के समानान्तर विद्यमान रही है, जिसका व्यापक रूप में प्रभाव समाज मे कुछ काल पर्यन्त तक ही रहता रहा है| वर्तमान में जो बौद्ध धर्म का स्वरुप है उके प्रतिष्ठापक निश्चित रूप से शुद्धोदन के पुत्र व राहुल के पिता गौतम बुद्ध ही हैं| यदि शुद्धोदन के पुत्र गौतम बुद्ध को भगवान् का अवतार न भी माना जाय तब भी पौराणिक प्रमाणों के आधार पर भगवान् के बुद्धावतार को तो सनातनियों को स्वीकार करना ही होगा| इस विषय मे अभी भी बहुत कुछ अनुसन्धेय है|

अत: निष्कर्ष रूप में हम सनातनियों को पौराणिक बुद्धावतार को स्वीकार करने में कोइ आपत्ति नहीं होनी चाहिये| भगवान् बुद्ध अथवा तथागत बुद्ध सभी के जीवन में प्रेम, सत्य, अहिंसा, सदाचार आदि का संचार करते हुये सभी का मङ्गल करें, इसी भावना के साथ भगवान् बुद्धके जयन्ती की शुभकामनायें|
साभार सहायक सामग्री संकलन- भगवतानंद जी का लेख

1 comment:

  1. साई बाबा के बारे में भी बताइये

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