Monday, November 29, 2021

हिन्दु समाज के विवाह संस्कार में पति-पत्नी की प्रतिज्ञाएँ।

हिन्दु समाज के विवाह संस्कार में पति-पत्नी की प्रतिज्ञाएँ।
किसी भी महत्त्वपूर्ण पद ग्रहण के साथ शपथ ग्रहण समारोह भी अनिवार्य रूप से जुड़ा रहता है। हिन्दु समाज के विवाह संस्कार में कन्यादान, पाणिग्रहण एवं ग्रन्थि-बन्धन हो जाने के साथ वर-वधू द्वारा और समाज द्वारा दाम्पत्य सूत्र में बँधने की स्वीकारोक्ति हो जाती है। इसके पश्चात् अग्नि एवं देव-शक्तियों की साक्षी में दोनों को एक संयुक्त इकाई के रूप में ढालने का क्रम चलता है। इस बीच उन्हें अपने कर्त्तव्यधर्म का महत्त्व भली प्रकार समझना और उसके पालन का संकल्प लेना चाहिए। इस दिशा में पहला उत्तरदायित्व वर का होता है। अस्तु, पहले वर तथा बाद में वधू को प्रतिज्ञाएँ करायीं जाती हैं।

क्रिया और भावना- वर-वधू स्वयं प्रतिज्ञाएँ पढ़ें, यदि सम्भव न हो, तो आचार्य एक-एक करके ये प्रतिज्ञाएँ व्याख्या सहित समझाएँ।

वर की प्रतिज्ञाएँ

धर्मपत्नीं मिलित्वैव ह्येकं जीवनामावयोः। 
अद्यारम्भ यतो मे त्वमर्द्धांगिनीति घोषिता।।१॥ 

आज से धर्मपत्नी को अर्द्धांगिनी घोषित करते हुए, उसके साथ अपने व्यक्तित्व को मिलाकर एक नये जीवन की सृष्टि करता हूँ। अपने शरीर के अंगों की तरह धर्मपत्नी का ध्यान रखूँगा। 

स्वीकरोमि सुखेन त्वां गृहलक्ष्मीमहन्ततः। 
मन्त्रयित्वा विधास्यामि सुकार्याणि त्वया सह॥२॥ 

मैं प्रसन्नतापूर्वक तुम्हें गृहलक्ष्मी का महान अधिकार सौंपता हूँ और जीवन के सत्कार्यों को तुम्हारे साथ परामर्श करके करूँगा। 

रूप-स्वास्थ्य-स्वभावान्तु गुणदोषादीन् सर्वत:। रोगाज्ञान-विकारांश्च तव विस्मृत्य चेतसः॥३॥
 
मैं तुम्हारे रूप, स्वास्थ्य, स्वभावगत गुणदोष एवं अज्ञानजनित विकारों को चित्त में नहीं रखूँगा, उनके कारण असन्तोष व्यक्त नहीं करूँगा। स्नेहपूर्वक सुधारने या सहन करते हुए आत्मीयता बनाये रखूँगा। 

सहचरो भविष्यामि पूर्णस्नेहः प्रदास्यते। 
सत्यता मम निष्ठा च यस्याधारं भविष्यति॥४॥ 

पत्नी का मित्र बनकर रहूँगा और पूरा-पूरा स्नेह देता रहूँगा। इस वचन का पालन मेरी पूरी निष्ठा और सत्य के आधार पर करूँगा। 

यथा पवित्रचित्तेन पातिव्रत्य त्वया धृतम्। 
तथैव पालयिष्यामि पत्नीव्रतमहं ध्रुवम्॥५॥ 

जिस प्रकार तुमने पवित्र चित्त से पतिव्रत धर्म को धारण किया है, उसी दृढ़ता से स्वयं पत्नीव्रत धर्म का पालन करूँगा। 

गृहस्यार्थव्यवस्थायां मन्त्रयित्वा त्वया सह। 
सञ्चालनं करिष्यामि गृहस्थोचित-जीवनम्॥६॥ 

गृह की अर्थव्यवस्था में तुम्हारे साथ सलाह करके गृहस्थोचित जीवन का सञ्चालन करूँगा। अर्थात् आय और व्यय का क्रम तुम्हारी सहमति से करने की गृहस्थोचित जीवनचर्या अपनाऊँगा। 

समृद्धि-सुख-शान्तीनां रक्षणाय तथा तव। 
व्यवस्थां वै करिष्यामि स्वशक्तिवैभवादिभि:॥७॥ 

तुम्हारी सुख-शान्ति तथा समृद्धि-सुरक्षा की व्यवस्था करने में अपनी शक्ति, वैभव और साधन आदि को लगाकर व्यवस्था करता रहूँगा। 

यत्नशीलो भविष्यामि सन्मार्गं सेवितुं सदा। 
आवयोर्मतभेदांश्च दोषान्संशोध्य शान्तितः॥८॥ 

अपनी ओर से मधुर भाषण और श्रेष्ठ व्यवहार बनाये रखने का पूरा-पूरा प्रयतन करूँगा। हम दोनों के मतभेदों और दोषों का सुधार शान्ति के साथ करूँगा। 

भवत्यामसमर्थायां विमुखायां च कर्मणि।
विश्वासं सहयोगं च मम प्राप्स्यसि त्वं सदा॥९॥ 

आप के असमर्थ या अपने कर्त्तव्य से विमुख हो जाने पर भी तुम मेरे विश्वास और सहयोग को  सदा प्राप्त करती रहोगी।

कन्या की प्रतिज्ञाएँ

स्वजीवनं मेलयित्वा भवतः खलु जीवने। 
भूत्वा चार्धाङ्गिनी नित्यं निवत्स्यामि गृहे सदा॥१॥ 

अपने जीवन को आपके के साथ संयुक्त करके नये जीवन की सृष्टि करूँगी। इस प्रकार घर में सदा, सच्चे अर्थों में अर्द्धांगिनी बनकर रहूँगी। 

‍शिष्टतापूवर्कं सर्वै: परिवारजनैः सह। 
औदार्येण विधास्यामि व्यवहारं च कोमलम्॥२॥ 

पति के परिवार के सभी परिजनों के साथ शिष्टता बरतूँगी। उनकी उदारतापूवर्क सेवा करूँगी और मधुर व्यवहार करूँगी। 

त्यक्त्वालस्यं करिष्यामि गृहकार्ये परिश्रमम्। 
भतुर्हर्षं हि ज्ञास्यामि स्वीयामेव प्रसन्नताम्॥३॥ 

आलस्य को छोड़कर परिश्रमपूवर्क गृह कार्य करूँगी। इस प्रकार अपनी प्रसन्नता से पति के हर्ष के लिए समुचित योगदान करूँगी। 

श्रद्धया पालयिष्यामि धर्मं पातिव्रतं परम्।
सर्वदैवानुकूल्येन पत्युरादेशपालिका॥४॥ 

श्रद्धापूर्वक पतिव्रत धर्म का पालन करूँगी, पति के आदेश का सदैव उनके अनूकूल रहकर पालन करूँगी। 

सुश्रूषणपरा स्वच्छा मधुर-प्रियभाषिणी। 
प्रतिजाने भविष्यामि सततं सुखदायिनी॥५॥ 

मैं प्रतिज्ञापूर्वक सेवापरायणा, स्वच्छ तथा मधुर और प्रियभाषणी का अभ्यास बनाये रखूँगी। निरन्तर सुख देने वाली बनकर रहूँगी। ‍

मितव्ययेन गाहर्स्थ्य-सञ्चालने हि नित्यदा। 
प्रयतिष्ये च सोत्साहं तवाहमनुगामिनी॥६॥ 

गृहस्थी का सञ्चालन करने के लिए सदा मितव्ययी बनकर व्यर्थ व्यय न करके  आचरण करूँगी। मैं उत्साहपूर्वक आपके अनुशासन का पालन का प्रयत्न करूँगी। ‍

देवस्वरूपो नारीणां भर्त्ता भवति मानवः। 
मत्वेति त्वां भजिष्यामि नियता जीवनावधिम्॥७॥ 

नारी के लिए पति, देव स्वरूप होता है- यह मानकर मतभेद भुलाकर, सेवा करते हुए जीवन की सम्पूर्ण अवधि में भर सक्रिय रहूँगी। 

पूज्यास्तव पितरो ये श्रद्धया परमा हि मे।
सेवया तोषयिष्यामि तान्सदा विनयेन च॥८॥ 

जो आपके पूज्य और श्रद्धा पात्र हैं, उन्हें परम श्रद्धा और सेवा द्वारा और विनय द्वारा सदैव सन्तुष्ट रखूँगी। 

विकासाय सुसंस्कारैः सूत्रैः सद्भाववर्द्धिभि:।
परिवारसदस्यानां कौशलं विकसाम्यहम्॥९॥ 

परिवार के सदस्यों में सुसंस्कारों के विकास तथा उन्हें सद्भावना के सूत्रों में बाँधे रहने का कौशल अपने अन्दर विकसित करूँगी।

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