Saturday, April 28, 2018

अपने सपनों को पंख लगा कर उड़ने दो

आज पुनः मेरे विचार कुछ इस प्रकार निकल पड़े।
मैं ध्यान को छोड़ विचारों के साथ निकल पड़ा और मेरे विचार मूर्तरूप धारण कर लिए -
अपने सपनों को पंख लगा कर उड़ने दो
तुम अपने विचारों को सदभाव में बहने दो
यह जीवन एक खेल है इसे केवल खेल खेल में रहने दो
मत कसो इस जीवन को विभिन्न प्रकार के पाखण्डों में इसे वैदिक सभ्यता में ढलने दो
एक बार झाक कर देखो अपने अन्तः चेतना मे इसे परमात्म रंग में रंगने दो
लाभ हानी सफलता असफलताओं को त्यागकर साक्षी भाव मे रहने दो
पक्षीयों के चहचहाहट और तारों के टिमटिमाहट में रहने दो
मत करों अपने आप की तुलना किसी और से क्योंकि तुम अद्वितीय हो अद्वितीय ही रहोगे
तुम अपने आप को केवल अपने ही रंग में रहने दो।
- डॉ मुकेश ओझा
     ।।मनुर्भव।।

Friday, April 27, 2018

मै देखता हूँ जब तुम्हे सूरज चाँद सितारों मे...

मैं कोई कवि या लेखक नहीं परन्तु आज प्रातः अचानक कुछ विचार आये और एक बहुत ही रोचक रूप मे हमारे मन में गूँज गये यथा-

मै देखता हूँ जब तुम्हे सूरज चाँद सितारों मे।
तब सुकून होता है मूझे हृदय के अंधीयारो में।
मैं सूनता हूँ जब तुम्हें पशु-पक्षी और हवाओं के सरसराहट मे।
तब याद आती है तुम्हारी हृदय के अंधीयारो में।
मै पढता हूँ जब तुम्हें गीता वेद पुराणों में
तब महसूस होते हो तुम हृदय के अंधीयारो में।
जब सोचता हूँ जब तुम्हें अपने विभिन्न विचारों में
तब एक छवि खिंच जाती है हृदय के अंधीयारो में।
जब प्रतिबिंबीत होते हो तुम धूप छाँव अंधीयारों में
तब संगीत प्रतिध्वनी होने लगता है हृदय के अंधीयारो मे।

-डॉ मुकेश ओझा
।। मनुर्भव ।।

Monday, April 23, 2018

१०लकार

🌹 #१०लकार_का_अनमोल_ज्ञान :--🌹

>>> संस्कृत में काल दश भागों में विभाजित है जिनको दश लकार कहा जाता है :--

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०१ ) लट् ---- ल् + अ + ट्
०२ ) लिट् ---- ल् + इ + ट्
०३ ) लुट् ---- ल् + उ + ट्
०४ ) लृट् ---- ल् + ऋ + ट्
०५ ) लेट् ---- ल् + ए + ट्
०६ ) लोट् ---- ल् + ओ + ट्
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०७ ) लङ् ---- ल् + अ + ङ्
०८ ) लिङ्---- ल् + इ + ङ्
०९ ) लुङ्---- ल् + उ + ङ्
१० ) लृङ्---- ल् + ऋ + ङ्

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#इनको_स्मरण_करने_की_विधी_ये_है_कि :-
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ल् में ( अ इ उ ऋ ए ओ ) क्रम से जोड़ दो । और पहले कर्मों में ( ट् ) जोड़ते जाओ ।

फिर बाद में ( ङ् ) जोड़ते जाओ जब तक कि दश लकार पूरे न हो जाएँ ।

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#इन_लकारों_के_काल_ये_हैं :-
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(१) #लट्_लकार = वर्तमान काल ।
जैसे :- राम खेलता है।
       रामः क्रीडति ।
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(२) #लिट् = अनद्यतन परोक्ष भूतकाल । जो अपने साथ न घटित होकर किसी इतिहास का विषय हो ।
जैसे :-
राम ने रावण को मारा था ।
रामः रावणं जघान,,

जघान जघ्नतुः जघ्नुः
जघनिथ जघ्नथुः जघ्न
जघान जघ्निव जघ्निम
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(३) #लुट्_लकार = अनद्यतन भविष्यत काल । जो आज का दिन छोड़ कर आगे होनो वाला हो ।
जैसे :-
राम परसों विद्यालय नहीं जायेगा ।
रामः परश्वं विद्यालयं न गन्ता |
गन्ता गन्तारौ गन्तारः
गन्तासि गन्तास्थः गन्तास्थ
गन्तास्मि गन्तास्वः गन्तास्मः
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(४) #लृट्_लकार = सामान्य भविष्य काल । जो आने वाले किसी भी समय में होने वाला हो ।
जैसे :-
राम यह कार्य करेगा ।
रामः इदम् कार्यम् करिष्यति।
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(५) #लेट्_लकार = यह लकार केवल वेद में प्रयोग होता है ईश्वर के लिए क्योंकि वह किसी काल में बंधा नहीं है ।
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(६) #लोट्_लकार = ये लकार आज्ञा, अनुमति लेना, प्रशंसा करना, प्रार्थना आदि में प्रयोग होता है ।
जैसे :- आप जाओ -भवान् आगच्छतु , वह खेले -सः क्रीडतु , तुम खाओ - त्वं खाद , क्या मैं बोलूँ -किम् अहं वदानि ?
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(७) #लङ्_लकार = अनद्यतन भूत काल । आज का दिन छोड़ कर किसी अन्य दिन जो हुआ हो ।
जैसे :-
आपने उस दिन भोजन पकाया था - भवान् तस्मिन् दिने भोजनं अपचत् ।
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(८) #लिङ्_लकार = इसमें दो प्रकार के लकार होते हैं :--

#आशीर्लिङ्= किसी को आशिर्वाद देना हो ।

जैसे :-
आप जीओ - भवान् जीवेत्।
तुम सुखी रहो।त्वं सुखी भव । आदि

#विधिलिङ् = किसी को विधी बतानी हो ।
जैसे :-
आपको पढ़ना चाहिए - भवान् भठेत्।
मुझे जाना चाहिए - अहं गच्छेयम् ।
आदि ।
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(९) #लुङ्_लकार = सामान्य भूत काल । जो कभी भी बीत चुका हो ।
जैसे :-
*उसने खाना खाया - सः भोजनं अखादीत् ।*
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(१०) #लृङ्_लकार = ऐसा भूत काल जिसका प्रभाव वर्तमान तक हो । जब किसी क्रिया की असिद्धी हो गई हो ।
जैसे :-
यदि वह पढ़ता तो विद्वान बनता । -
यदि सः अपठिष्यत् तु विद्वान् अभविष्यत्।

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इन्हीं लकारों में सभी धातुरूप चलते हैं ।
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🚩जयतु संस्कृतम् ।। जयतु भारतम् ।। जयतु आर्यावर्तम् ।।🚩