Friday, April 27, 2018

मै देखता हूँ जब तुम्हे सूरज चाँद सितारों मे...

मैं कोई कवि या लेखक नहीं परन्तु आज प्रातः अचानक कुछ विचार आये और एक बहुत ही रोचक रूप मे हमारे मन में गूँज गये यथा-

मै देखता हूँ जब तुम्हे सूरज चाँद सितारों मे।
तब सुकून होता है मूझे हृदय के अंधीयारो में।
मैं सूनता हूँ जब तुम्हें पशु-पक्षी और हवाओं के सरसराहट मे।
तब याद आती है तुम्हारी हृदय के अंधीयारो में।
मै पढता हूँ जब तुम्हें गीता वेद पुराणों में
तब महसूस होते हो तुम हृदय के अंधीयारो में।
जब सोचता हूँ जब तुम्हें अपने विभिन्न विचारों में
तब एक छवि खिंच जाती है हृदय के अंधीयारो में।
जब प्रतिबिंबीत होते हो तुम धूप छाँव अंधीयारों में
तब संगीत प्रतिध्वनी होने लगता है हृदय के अंधीयारो मे।

-डॉ मुकेश ओझा
।। मनुर्भव ।।

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