आज पुनः मेरे विचार कुछ इस प्रकार निकल पड़े।
मैं ध्यान को छोड़ विचारों के साथ निकल पड़ा और मेरे विचार मूर्तरूप धारण कर लिए -
अपने सपनों को पंख लगा कर उड़ने दो
तुम अपने विचारों को सदभाव में बहने दो
यह जीवन एक खेल है इसे केवल खेल खेल में रहने दो
मत कसो इस जीवन को विभिन्न प्रकार के पाखण्डों में इसे वैदिक सभ्यता में ढलने दो
एक बार झाक कर देखो अपने अन्तः चेतना मे इसे परमात्म रंग में रंगने दो
लाभ हानी सफलता असफलताओं को त्यागकर साक्षी भाव मे रहने दो
पक्षीयों के चहचहाहट और तारों के टिमटिमाहट में रहने दो
मत करों अपने आप की तुलना किसी और से क्योंकि तुम अद्वितीय हो अद्वितीय ही रहोगे
तुम अपने आप को केवल अपने ही रंग में रहने दो।
- डॉ मुकेश ओझा
।।मनुर्भव।।
Saturday, April 28, 2018
अपने सपनों को पंख लगा कर उड़ने दो
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment