Thursday, May 31, 2018

नक्षत्रों का शरीर के अंगों पर स्थान

नक्षत्रों का शरीर के अंगों पर स्थान
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नक्षत्रों को शरीरांगो पर विभाजित करने में विद्वानों में एक से अधिक मत रहे है !

१.शास्त्रीय मत से नक्षत्र पुरुष का विचार :

शरीर के अंगो पर सभी नक्षत्रों का कोई क्रम नहीं है !
"वामनपुराणानुसार " इनका विभाजन निम्नलिखित है !

क्रम. नक्षत्र - शरीरांग
१. अश्विनी - दोनों घुटने
२. भरणी - सिर
३. कृतिका - कटिप्रदेश
४. रोहिणी - दोनों टांगे
५. मृगशिरा - दोनों नेत्र
६. आर्द्रा - बाल
७. पुनर्वसु - अंगुलियाँ
८. पुष्य - मुख
९. आश्लेषा - नख
१०. मघा - नाक
११. पूर्वा फाल्गुनी - गुप्तांग
१२. उत्तरा फाल्गुनी- गुप्तांग
१३. हस्त - दोनों हाथ
१४. चित्रा - मस्तक
१५. स्वाति - दांत
१६. विशाखा - दोनों भुजाएं
१७. अनुराधा - ह्रदय, वक्षस्थल
१८. ज्येष्ठा - जिव्हा
१९. मूल - दोनों पैर
२०. पूर्वा षाढा - दोनों जांघें
२१. उत्तरा षाढा - दोनों जांघें
२२. श्रवण - दोनों कान
२३. धनिष्ठा - पीठ
२४. शतभिषा - ठोड़ी के दोनों पार्श्व
२५. पूर्वा भाद्रपद - बगल
२६. उत्तरा भाद्रपद - बगल
२७. रेवती - दोनों कांख

नोट : -

i. शरीर में निशान और चोट का निश्चय करने में इसका उपयोग होता है ! क्रूर का बुरे ग्रह कुंडली में जिस नक्षत्र में गये हो उसी अंग पर घाव या निशान पैदा कर देते है !

ii. सूर्य चन्द्रमा के नक्षत्रानुसार उस अंग में चिन्ह आदि जन्मजात होता है या बना देता है !

iii. दशा-अन्तर्दशा में भी लग्ने वाली चोट का निर्धारण इसी से किया जाता है !

iv. जो नक्षत्र पापयुक्त हो, निर्बल ग्रह से युक्त हो वही अंग पीड़ित, शिथिल या दोषयुक्त होता है !

२. जन्म नक्षत्र से नक्षत्र पुरुष विचार :

जातक के जन्म नक्षत्र से प्रारम्भ करके १,१,३,१,१,४,३,५,१,४,३ नक्षत्रों को सारणी के अनुसार स्थापित कर लें ! जिन नक्षत्रों पर पाप प्रभाव, क्रूर दृष्टि, नीच-शत्रु ग्रह होगा उन्ही नक्षत्रों के अंगो पर चोट व अन्य निशान उस ग्रह की दशा अन्तर्दशा में मिलेंगे ! यह विचार महर्षि पराशर ने बताया है !

अंग - नक्षत्र

मुख - जन्म नक्षत्र

वाम नेत्र - १

माथा - ३

छाती (दायीं) - १

गला (दक्षिण भाग) - १

दायाँ हाथ - ४

दायाँ पैर - ३

छाती (बायीं) - ५

गला (वाम bhag) - १

बांया हाथ - ४

दायाँ पैर - ३

३. पाराशरीय मत :

पराशर ने प्रश्न विचार हेतु अलग नक्षत्र पुरुष का वर्णन किया है !

क्रम. नक्षत्र - शरीरांग
१. अश्विनी - सर
२. भरणी - माथा
३. कृतिका - भौंहें

४. रोहिणी - आँखें
५. मृगशिरा - नाक
६. आर्द्रा - कान
७. पुनर्वसु - गाल
८. पुष्य - होंठ
९. आश्लेषा - ठुड्डी
१०. मघा - गला

११. पूर्वा फाल्गुनी - कंधे
१२. उत्तरा फाल्गुनी- ह्रदय
१३. हस्त - बगलें
१४. चित्रा - छाती
१५. स्वाति - पेट
१६. विशाखा - नाभि

१७. अनुराधा - कमर
१८. ज्येष्ठा - जांघ
१९. मूल - नितम्ब
२०. पूर्वा षाढा - लिंग
२१. उत्तरा षाढा - अंडकोष

२२. श्रवण - पेडू
२३. धनिष्ठा - जंघा
२४. शतभिषा - घुटने
२५. पूर्वा भाद्रपद - पिंडली
२६. उत्तरा भाद्रपद - टखने
२७. रेवती - पैर

* ज्येष्ठा को जांघों के उपरी हिस्से अर्थात कमर के नीचे के आधे भाग में व धनिष्ठा को शेष जांघें समझे !
                                -डॉ मुकेश ओझा
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मनुर्भव 🌱🌷🌱🌷🌱🌷🌱🌷मनुर्भव

शिव वास कब एवं किस तिथि पर कहाँ रहता है?-

*शिव वास कब  एवं किस तिथि पर कहाँ रहता है?- रूद्राभिषेक कब करना फल दाई होता है?*

1. प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी, अमावस्या तथा शुक्लपक्ष की द्वितीया व नवमी के दिन भगवान शिव माता गौरी के साथ होते हैं, इस तिथिमें रुद्राभिषेक करने से सुख-समृद्धि उपलब्ध होती है।

2. कृष्णपक्ष की चतुर्थी, एकादशी तथा शुक्लपक्ष की पंचमी व द्वादशी तिथियों में भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर होते हैं और उनकी अनुकंपा से परिवार मेंआनंद-मंगल होता है।

3. कृष्णपक्ष की पंचमी, द्वादशी तथा शुक्लपक्ष की षष्ठी व त्रयोदशी तिथियों में महादेव नंदी पर सवार होकर संपूर्ण विश्व में भ्रमण करते है।अत: इन तिथियों में रुद्राभिषेक करने पर अभीष्ट सिद्ध होता है।

4. कृष्णपक्ष की सप्तमी, चतुर्दशी तथा शुक्लपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी, पूर्णिमा में भगवान महाकाल श्मशान में समाधिस्थ रहते हैं।

अतएव इन तिथियों में किसी कामना की पूर्ति के लिए किए जाने वाले रुद्राभिषेक में आवाहन करने पर भगवान शिव की साधना भंग होती है, जिससे अभिषेककर्ता पर विपत्ति आ सकती है।

5. कृष्णपक्ष की द्वितीया, नवमी तथा शुक्लपक्ष की तृतीया व दशमी में महादेव देवताओं की सभा में उनकी समस्याएं सुनते हैं।
इन तिथियों में सकाम अनुष्ठान करने पर संताप या दुख मिलता है।

6. कृष्णपक्ष की तृतीया, दशमी तथा शुक्लपक्ष की चतुर्थी व एकादशी में सदाशिव क्रीडारत रहते हैं।
इन तिथियों में सकाम रुद्रार्चन संतान को कष्ट प्रदान करते है।

7. कृष्णपक्ष की षष्ठी, त्रयोदशी तथा शुक्लपक्ष की सप्तमी व चतुर्दशी में रुद्रदेव भोजन करते हैं।
इन तिथियों में सांसारिक कामना से किया गया रुद्राभिषेक पीडा देते हैं।
                  -डॉ मुकेश ओझा
                 सम्पर्क सूत्र-  8808634026

Wednesday, May 30, 2018

उत्तमा वेदपाठी च...

उत्तमा वेदपाठी च
विज्ञान पाठक मध्यमा
अधमा वाइबिल द्रष्टा च
कुरान द्रष्टाधमाधमा।।
-डॉ मुकेश ओझा
अर्थ- वेदों में सर्वोत्तम ज्ञान हैं। अतः वेद को पढ़ना मानवता का सर्वोत्तम गुण माना गया है। अतः वेद पढ़ने वाला उत्तम श्रेणी का मानव कहलाता है।
विज्ञान पढ़ने वाला मध्यम ज्ञान को प्राप्त करता है अतः विज्ञान पढ़ने वाला मध्यम मानव के श्रेणी में आता है।
एवं वाईबिल को देखने वाला अधम श्रेणी का मानव कहलाता है तथा कुरान को देखने वाला अधमो में भी अधम होता है।
🌱🌷🌱🌷🌱🌷🌱🌷🌱मनुर्भव🌱🌷🌱🌷🌱🌷🌱🌷

उत्तमा सहजावस्था, मध्यमा ध्यान धारणा। अधमा मूर्तिपूजा च, तीर्थयात्राधमाधमा।

उत्तमा सहजावस्था,मध्यमा ध्यान धारणा।
अधमा मूर्तिपूजा च,तीर्थयात्राधमाधमा।।

यहाँ जीवन को पूर्ण आनंद से भरने के लिए या जीवन के पूर्णता को स्वीकारने के लिए चार अवस्थाओं को बताया गया है। उन चारों अवस्थाओं को उत्तम, मध्यम, अधम, एवं अधमाधम के रूप मे स्वीकार करने का निर्देश भी दिया गया है।
जीवन को समझने के लिए या सम्पूर्ण रूप से धारण करने के लिए जो सर्वोत्तम उपाय है वह है। सहजावस्था अर्थात साक्षी भाव इसलिए इसे उत्तम कहा गया है। इस अवस्था को भगवान कृष्ण, राम, स्वीकार किये।
उसके बाद जीवन को आनंद पूर्वक धारण करने का जो उपाय है वह धारणा ध्यान से सम्भव है। और इस अवस्था मे प्रयास रहता है अतः इसे मध्यम कहा गया है। इस अवस्था से जीवन को आनंद से भरने वाले योगी होते हैं।
जीवन को आनंदित करने के लिए जो तीसरा उपाय है वह है- मूर्ति पूजा  इसे अधम इसलिए कहा गया  क्योंकि मूर्ति पूजा के द्वारा हम धारणा ध्यान को उपलब्ध होते है पुनः सहजावस्था (साक्षी भाव )को यह एक कठिन प्रक्रिया हो जाता है और भ्रमित होने का भी भय होता है। इस अवस्था को रामकृष्ण परमहंश ने स्वीकार किया था यदि "तोता पूरी" बाबा नहीं मिले होते तो रामकृष्ण आत्म साक्षात्कार कभी नहीं कर पाते।

चतुर्थ उपाय है तीर्थ यात्रा के भ्रमण द्वारा जीवन को आनंद से भरा जाय यह मार्ग सबसे कठिन एवं धीरे धीरे घटित होने वाला मार्ग है। तीर्थ यात्रा कर आप मूर्ति पूजा करते है तदनन्तर धारणा ध्यान को उपलब्ध होते है और अन्त में साक्षी भाव को उपलब्ध होते हैं। इसलिए तीर्थ यात्रा को अधमाधम उपाय कहा गया है।

यहाँ एक बात ध्यान में लेने योग्य है कि आप जिस उपाय से जीवन को उपलब्ध हो जाय उसे स्वीकार करना चाहिए। क्योंकि विभिन्न प्रकार के मानव अपने स्वभाव के अनुसार ही कर्म कर आनन्दित  हो सकते है। यदि आप प्रत्यक्ष रूप से साक्षी भाव को उपलब्ध हो जाते हैं तो सबसे अच्छा नहीं तो तीर्थ यात्रा से ही प्रयास करना चाहिए।
                        -डॉ मुकेश ओझा
                         🌱मनुर्भव🌱

Tuesday, May 29, 2018

मैं ब्राह्मण हूँ पुनः ब्राह्मण बन दिखाता हूँ

मै मौन था तुम सोचे मै निर्बल हूँ।
मै! तुम दिन दुःखी के लिए आरक्षण स्वीकार किया।
तुम समझे मैं मूर्ख हूँ।
अब तुम हमारे साथ हमारे देवी देवताओं का अपमान करने लगे।
हमारे धर्म ग्रंथ जलाने लगे।
और तुम हमारे ही टुकड़े पर पल कर हमें ही गरियाने लगें।
विश्व जिस वेद का गुण गान कर रहा तुम उसे अपशब्द बोलने लगें।
तो लो अब मैं भी सुनाता हूँ।
क्रोध का अग्नि जलाता हूँ।
तुम्हें तुम्हारे करनी का फल दिलाता हूँ सभ्यता का पाठ पढाता हूँ।
पुनः दरिद्र बनाता हूँ धूल तुम्हें चटाता हूँ।
संस्कार अब मैं सिखाता हूँ,
त्रिशूल अपना दिखाता हूँ  परशु अपना चमकाता हूँ।
मैं ब्राह्मण हूँ पुनः ब्राह्मण बन दिखाता हूँ।
                              -डॉ मुकेश ओझा
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Monday, May 28, 2018

यह धुप किसके लिए यह छाव किसके लिए ...

यह धुप किसके लिए यह छाव किसके लिए
और सनसनाती यह हवा है किसके लिए
वृक्ष किसके लिए यह जल किसके लिए
और यह इठलाती नदियाँ हैं किसके लिए
सोचता हूँ मैं इस प्रकृति का कण-कण है किसके लिए।
फल किसके लिए फुल किसके लिए
और मदमस्त यह फिजा है किसके लिए
दिन-रात किसके लिए ऋतु किसके लिए
और आसमान के ये अद्भुत नजारे किसके लिए।
हे मानव! तनिक यह विचारों तुम स्वयं हो किसके लिए।
                 -डॉ मुकेश ओझा
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मैं तुमको कब तक छोड़ु ...

मैं तुमको कब तक छोड़ु
सूरज चाँद सितारों में
घर खेत खलियानों में
धूप छाँव अंधीयारों में
वेद बाईबिल कुरानों में
मंदिर मस्जिद गिरजाद्वारों में
तुम तो बसते हो मेरे हृदय के उजालो मे।
ज्ञान के सितारों में अमन के विचारों मे।
- डॉ मुकेश ओझा
।। मनुर्भव ।।
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Tuesday, May 15, 2018

मैं बनारस हूँ

मै काल हूँ मै ही कालातीत हूँ
मै भूत भविष्य वर्तमान हूँ
मै मृत्यु के लिए प्रसिद्ध हूँ
मै मोक्षदायी हूँ
मै शिव का नृत्य हूँ
मै श्मशान क्षेत्र हूँ
मै गंगा कि कल कल ध्वनि हूँ
मै भैरव का हूँकार हूँ
मै वेद का ऋचा और ज्ञानीयों का ज्ञान हूँ
मै दशाश्वमेघ, मणिकर्णिका और अस्सी घाट हूँ

बनारस एक दुर्लभ शहर है...!!!
मेरा जन्म् महाश्मशान ,
मगर मै जिंदा शहर बनारस हूँ ।
-डॉ मुकेश ओझा