उत्तमा सहजावस्था,मध्यमा ध्यान धारणा।
अधमा मूर्तिपूजा च,तीर्थयात्राधमाधमा।।
यहाँ जीवन को पूर्ण आनंद से भरने के लिए या जीवन के पूर्णता को स्वीकारने के लिए चार अवस्थाओं को बताया गया है। उन चारों अवस्थाओं को उत्तम, मध्यम, अधम, एवं अधमाधम के रूप मे स्वीकार करने का निर्देश भी दिया गया है।
जीवन को समझने के लिए या सम्पूर्ण रूप से धारण करने के लिए जो सर्वोत्तम उपाय है वह है। सहजावस्था अर्थात साक्षी भाव इसलिए इसे उत्तम कहा गया है। इस अवस्था को भगवान कृष्ण, राम, स्वीकार किये।
उसके बाद जीवन को आनंद पूर्वक धारण करने का जो उपाय है वह धारणा ध्यान से सम्भव है। और इस अवस्था मे प्रयास रहता है अतः इसे मध्यम कहा गया है। इस अवस्था से जीवन को आनंद से भरने वाले योगी होते हैं।
जीवन को आनंदित करने के लिए जो तीसरा उपाय है वह है- मूर्ति पूजा इसे अधम इसलिए कहा गया क्योंकि मूर्ति पूजा के द्वारा हम धारणा ध्यान को उपलब्ध होते है पुनः सहजावस्था (साक्षी भाव )को यह एक कठिन प्रक्रिया हो जाता है और भ्रमित होने का भी भय होता है। इस अवस्था को रामकृष्ण परमहंश ने स्वीकार किया था यदि "तोता पूरी" बाबा नहीं मिले होते तो रामकृष्ण आत्म साक्षात्कार कभी नहीं कर पाते।
चतुर्थ उपाय है तीर्थ यात्रा के भ्रमण द्वारा जीवन को आनंद से भरा जाय यह मार्ग सबसे कठिन एवं धीरे धीरे घटित होने वाला मार्ग है। तीर्थ यात्रा कर आप मूर्ति पूजा करते है तदनन्तर धारणा ध्यान को उपलब्ध होते है और अन्त में साक्षी भाव को उपलब्ध होते हैं। इसलिए तीर्थ यात्रा को अधमाधम उपाय कहा गया है।
यहाँ एक बात ध्यान में लेने योग्य है कि आप जिस उपाय से जीवन को उपलब्ध हो जाय उसे स्वीकार करना चाहिए। क्योंकि विभिन्न प्रकार के मानव अपने स्वभाव के अनुसार ही कर्म कर आनन्दित हो सकते है। यदि आप प्रत्यक्ष रूप से साक्षी भाव को उपलब्ध हो जाते हैं तो सबसे अच्छा नहीं तो तीर्थ यात्रा से ही प्रयास करना चाहिए।
-डॉ मुकेश ओझा
🌱मनुर्भव🌱
उत्तमोब्रह्म सदभावो, मध्यमो ध्यान धारणा।
ReplyDeleteअधमो स्तुति अर्चना च मूर्ति पूजाधमोधमा।।