Saturday, October 20, 2018

मृत्यु और जीवन

🌾 मृत्यु और जीवन 🌾
मृत्यु , जीवन के अनुपस्थिति का नाम है ।🌻
जहाँ जीवन होता है वहाँ मृत्यु होता ही नहीं।🌻
इस बात को ऐसे समझते हैं।
🍂🍃🍂
जैसे प्रकाश 🌞के अनुपस्थिति
का नाम अंधकार है।🌗
यहाँ मृत्यु को अंधकार 🌑और
जीवन को प्रकाश🌞समझिये।
अतः जैसे जैसे आपको जीवन का ज्ञान होता है।🌹
वैसे वैसे मृत्यु का भय कम होने लगता है।🌝

Sunday, October 14, 2018

भूमि पूजन सामग्री

भूमि पूजन सामग्री

रोली 10 ग्राम
हल्दी पाउडर -50 ग्राम 
मौली 1
पीला सरसों-50 ग्राम 
सात तरह का अनाज (सप्तधान्य) 100 ग्राम 
अक्षत (चावल) 100 ग्राम
सर्वोसधी 1 
महोसधी- 1 
पँचकषाय-1 
पँचरत्न-1
अबीर-50 ग्राम 
अष्टगंन्ध चंदन 
लौंग 5 ग्राम
इलायची 5 ग्राम
सुपारी 11
धूपबत्ती एक 
कपूर 1 पैकट 
रुई 
रूईबती 
कच्चा सुता 
माचिस एक
घी 100 ग्राम
कसोरा बड़ा 2नग छोटा 10 नग 
दीपक 5
केसर 
जनेऊ 10 नग      
गोला गिरी 1 
पंञ्चमेवा 250 ग्राम
शहद शीशी एक
इत्र शीशी एक
दोना  20 
नवग्रह लकडी -1 
हवन पैकट -1 
देवदार धुप 1/2 किलो 
आम की लकडी 3 किलो 
रुमाल(छोटा गमछा शिर पर रखने के लिए ) 1 
तिल 25 ग्राम 
जव 50 ग्राम 
आटा -100 ग्राम 
काला उरद 50 ग्राम 
तिल तेल -50 ग्राम 
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गंगाजल """""""""""
मिट्ठी कलश -1 
चौमुख दिया -1
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धोती गमछा गँजी जांघिया 1 सेट ब्राह्मण के लिए। 
यजमान यजमानी भी नया या स्वच्छ वस्त्र पहने।
####**

नारियल एक 
पानपत्ते 11 नग 
मीठा प्रसाद 
फल 
मिठाई 
लड्डु 
तुलसी मंजरी 
समीपत्र  
बेलपत्र 
आमपता 
दुर्वा  (घास)
दुध 200 ग्राम 
दहि 10 ग्राम 
फूलमाला  3
दूर्वा घास 
ऋतुफल पांच प्रकार के
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पीतल कलश छोटा 1 
ढकन-1 
चांदी का - मछली , कछुआ , वाराह , नाग नागिन , -1
वास्तु यँत्र-1

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बालू 
ईट - 15  
छरी 
गिटी 
गारा 
5 सफेद पत्थर 
खैर की लकडी 1  
रगीनी काटा 1 
लोहार के भांति का चूर्ण 10 ग्राम 
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घर के बर्तन
थाल पांच नग  
लोटा दो नग
बांल्टी दो नग
आसन बैठने के लिए" दरी" चटाई"आदी
गठजोडा के लिऐ "साफी " वा "चुनरी 
बडी परात एक

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ईशान कोण या अभिष्ट कोण  मे 2×2 फिट का खड्डे खोदकर एक दिन पहले रखे उसे गोबर से लीप कर रखे , बगल मे जमीन समतल कर रखे , 

सब सामान एक दिन पहले इकट्ठा कर ले।

-डॉ मुकेश ओझा
ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार

Sunday, October 7, 2018

नियुक्त

निरुक्त नामक वेदांगः--
निरुक्त वेदपुरुष का श्रोत्र है---"निरुक्तं श्रोत्रमुच्यते ।" सम्प्रति उपलब्ध निरुक्त यास्ककृत है । इस निरुक्त का आधार ग्रन्थ निघण्टु है । इसका कर्त्ता भी यास्क ही माने जाते है । इसे वैदिक कोष माना जाता है । निघण्टु में पाँच अध्याय है । इन्हें तीन भागों में बाँटा गया है । इसके आदि के तीन अध्यायों को (1.) "नैघण्टुक-काण्ड" चौथे अध्याय को (2.) "नैगमकाण्ड" (ऐकपदिककाण्ड) और अन्तिम पाँचवे अध्याय को (3.) "देवतकाण्ड" कहा जाता है । इसके प्रथम अध्याय में 17 खण्ड, 407 शब्द, द्वितीय में 22,  452 शब्द, तृतीय में 30, 402 शब्द, चतुर्थ में 3, 281 शब्द और पञ्चमाध्याय में 6 खण्ड, 151 शब्द हैं । इस प्रकार निघण्टु में वेद के कुल 1863 शब्दों का संग्रह है । निघण्टु पर एक ही व्याख्या उपलब्ध होती है--"निघण्टु-निर्वचनम्" । इसके कर्त्ता देवराज यज्वा हैं । इसकी व्याख्या अतीव प्रामाणिक और उपादेय है ।
निरुक्त का महत्त्वः---
व्याकरण और कल्प की तुलना में निरुक्त अधिक महत्त्वपूर्ण है । व्याकरण से केवल शब्द का ज्ञान होता है और कल्प से केवल मन्त्रों के विनियोग का ज्ञान होता है, किन्तु निरुक्त से शब्दों के अर्थ का ज्ञान होता है । अर्थ-ज्ञान के पश्चात् ही यज्ञों में मन्त्रों का विनियोग होता है । अर्थ-ज्ञान के पश्चात् शब्द-ज्ञान सरल हो जाता है ।
निरुक्त का लक्षणः---
आचार्य सायण के अनुसार निरुक्त का लक्षण हैः---"अर्थावबोधे निरपेक्षतया पदजातं यत्रोक्तं तन्निरुक्तम् ।" अर्थः---अर्थ-ज्ञान के विषय में, जहाँ स्वतन्त्र रूप से पदसमूह का कथन किया गया है, वह "निरुक्त" कहलाता है । यास्क ने स्वयमेव निरुक्त और व्याकरण के सम्बन्ध को स्पष्ट किया हैः---"तदिदं विद्यास्थानं व्याकरणस्य कार्त्स्न्यम् ।" (निरुक्त--1.5)
इससे ज्ञात होता है कि व्याकरण और निरुक्त का घनिष्ठ सम्बन्ध है । वस्तुतः निरुक्त के ज्ञान के लिए व्याकरण का ज्ञान होना आवश्यक है । यास्क ने आचार्यों को सावधान किया है कि जिसे व्याकरण न आता हो, उसे निरुक्त न पढायें--"नावैयाकरणाय.....निर्ब्रूयात् ।" (निरुक्त--2.1.4)
निरुक्त का प्रतिपाद्य विषय है---वैदिक शब्दों का निर्वचन । यह निरुक्ति पाँच प्रकार से होती हैः---"वर्णागमो वर्णविपर्ययश्च द्वौ चापरौ वर्णविकारनाशौ । धातोस्तदर्थातिशयेन योगस्तदुच्यते पञ्चविधं निरुक्तम् ।।"
(1.) वर्णागम के द्वारा---शब्द के निर्वचन के समय यदि किसी अन्य वर्ण की आवश्यकता पडे तो उसे ले लेना चाहिए, मूल धातु में वह वर्ण न हो तो भी , जैसे--वार--द्वार ।
(2.) वर्णविपर्यय के द्वारा---शब्द के निर्वचन में वर्णों को आगे या पीछे उद्देश्य के अनुसार कर लेना चाहिए । जैसे--द्योतिष्---ज्योतिष् । कसिता---सिकता ।
(3.) वर्णविकार के द्वारा---मूल शब्दों के उच्चारण में परिवर्तन करके, जैसे---वच--उक्तिः ।
(4.) वर्णनाश के द्वारा---मूल धातु में किसी वर्ण का लोप करके---अस्---स्तः, दा---प्रत्तम्, गम्--गत्वा, राजन्---राजा, गम्--जग्मुः, याचामि--यामि ।
(5.) धातु का अर्थ बढा कर---धातु का उससे भिन्न अर्थ के साथ योग  ।

निरुक्त का परिचयः---
निरुक्त में कुल 14 अध्याय हैं । अन्तिम के दो अध्याय परिशिष्ट माने जाते हैं । निरुक्त के भी तीन ही विभाग किए गए हैंः--

(1.) नैघण्टुक-काण्डः-- निरुक्त के भी प्रारम्भ के तीन अध्यायों को "नैघण्टुक-काण्ड" ही कहा जाता है । इसके प्रथम अध्याय में यास्क ने पद के चार भेद माने हैं--नाम, आख्यात, उपसर्ग और निपात । निरुक्त के द्वितीय और तृतीय अध्यायों में पर्यायवाची शब्दों का निर्वचन किया गया है । इनमें 1341 पद हैं, जिनमें यास्क ने 350 पदों की निरुक्ति की है ।
(2.) नैगमकाण्डः--निरुक्त के चौथे-पाँचवें अध्याय को "नैगमकाण्ड" कहा जाता है । इसे "ऐकपदिक" भी कहते हैं । इन अध्यायों में तीन प्रकार के शब्दों का निर्वचन हुआ हैः--
(क) एक अर्थ में प्रयुक्त अनेक शब्द (पर्यायवाची शब्द), (ख) अनेक अर्थों में प्रयुक्त एक शब्द (अनेकार्थक शब्द), (ग) ऐसे शब्द, जिनकी व्युत्पत्ति (संस्कार) ज्ञात नहीं है (अनवगतसंस्कार शब्द) । इनमें कुल 179 पद हैं ।

(3.) दैवतकाण्डः--निरुक्त के सात से बारह अध्यायों को "दैवतकाण्ड" कहा  जाता है । इस काण्ड में वेद में प्रधान रूप से स्तुति किए गए देवताओं के नामों का निर्वचन है । इनमें कुल 155 पद हैं ।
इस प्रकार 12 अध्यायों में कुल 1675 पद हैं ।

निरुक्त में तीन प्रकार के देवता कहे गए हैं---
(क) पृथिवीस्थानीय देवता---अग्नि । (ख) अन्तरिक्षस्थानीय देवता---इन्द्र या वायु । (ग) द्युस्थानीय देवता--सूर्य ।

(4.) परिशिष्ट--
निरुक्त के तेरहवें और चौदहवें अध्याय को परिशिष्ट माना जाता है । इनमें अग्नि की स्तुति और ब्रह्म की स्तुति है ।

निरुक्त का महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है कि सभी नाम शब्द धातुज हैं--"सर्वाणि नामानि आख्यातजानि ।"

बारह निरुक्तकारः--दुर्गाचार्य ने 14 निरुक्तकारों का उल्लेख किया है--निरुक्तं चतुर्दशप्रभेदनम् । निरुक्त में स्वयं यास्क ने 12 निरुक्तकारों का उल्लेख किया हैः---(1.) अग्रायण, (2.) औपमन्यव, (3.) औदुम्बरायण, (4.) और्णवाभ, (5.) कात्थक्य, (6.) क्रौष्टुभि, (7.) गार्ग्य, (8.) गालव, (9.) तैटीकि, (10.) वार्ष्यायणि, (11.) शाकपूणि, (12.) स्थौलाष्ठीवि । तेरहवें निरुक्तकार स्वयम् आचार्य यास्क हैं । चौदहवाँ निरुक्तकार कौन है, इसका उल्लेख नहीं है ।

वेदार्थ के अनुशीलन के आठ पक्ष---(क) अधिदैवत, (ख) अध्यात्म, (ग) आख्यान-समय, (घ) ऐतिहासिकाः, (ङ) नैदानाः, (च) नैरुक्ताः, (छ) परिव्राजकाः, (ज) याज्ञिकाः ।

टीकाकारः-- निरुक्त पर अनेक व्याख्याएँ लिखी गईं हैं---(1.) दूर्गाचार्यः--इन्होंने निरुक्त पर एक वृत्ति लिखी थी, जिसे दुर्गवृत्ति कहा जाता है । यह विद्वत्तापूर्ण और प्रामाणिक टीका है । इनके बारे में बहुत अल्प जानकारी मिलती है । ये कापिष्ठल शाखाध्यायी वसिष्ठगोत्री ब्राह्मण थे । अनुमान के आधार पर ये गुजरात अथवा काश्मीर के वासी थे । इस वृत्ति की सबसे प्राचीन हस्तलिखित प्रति 1444 वि.सं. की है ।

(2.) स्कन्द महेश्वरः---ये दुर्गाचार्य से प्राचीन टीकाकार हैं । इनकी टीका लाहौर से प्राप्त हुई है । यह टीका अतीव पाण्डित्यपूर्ण है । इन्होंने ऋग्वेद पर एक भाष्य लिखा था । ये गुजरात के  वल्लभी के रहने वाले थे ।

(3.) निरुक्त-निचय--इसके रचयिता वररुचि हैं ।
📘📘📘📘📘📘📘📘📘संस्कृतरसास्वाद: ऑनलाइन शिक्षणम्
by
संस्कृतरसास्वाद:राष्ट्रीय संयोजिका
आँचल गर्ग

Saturday, October 6, 2018

वाराणसी के पाँच नाम कौन कौन से हैं?

1, महाश्मशान क्षेत्र 2, आनंदवन 3, काशी 4, वाराणसी 5, बनारस।
~ॐ~
भोलेनाथ ने जब एक नगर का निर्माण किया तब वह श्मशान था,अतः उसे महाश्मशान क्षेत्र भी कहते हैं। एवं जब उस नगर मे रहने लगे तब वह आनन्दवन बन गया। पृथ्वी के जिस क्षेत्र को भगवान शिव अपने त्रिशूल पर धारण किए वही काशी कहलाया, काशी का विस्तार वरुणा और असी नाम कि दो नदियों के मध्य है अतः वह काशी वाराणसी कहलाया, अब भगवान शिव द्वारा निर्मित इस नगर का रस सदैव बना रहता है अतः इसे बनारस कहते हैं।
जय हो! बाबा विश्वनाथ की हर हर महादेव।
-डॉ मुकेश ओझा
ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार

Friday, October 5, 2018

भ्रष्टाचार, दण्ड नीति और अर्थ व्यवस्था का संबन्ध

#कोश-मूलो हि दण्डः ८.१.४७
यह वाक्य कौटिल्य के अर्थशास्त्र का है, इसमें कहा गया है कि देश को सम्पन्न बनाने के लिए दण्ड व्यवस्था सुदृढ़ रखना चाहिए।
जिस देश का दण्ड व्यवस्था जितना अधिक सुदृढ़ और मजबूत है वह देश उतना ही धनी और सम्पन्न है। उदाहरण-  अमेरिका,  जर्मनी, जापान आदि।
और जिस देश का दण्ड व्यवस्था जितना कमजोर है वह देश उतना ही कमजोर है। उदाहरण-  बंगलादेश, पाकिस्तान आदि।

दण्ड-अभावे च ध्रुवः कोश-विनाशः ८.१.४३
यदि किसी भी देश या समाज में दण्ड व्यवस्था सुदृढ़ नहीं है तो उस देश या समाज का धन नष्ट हो जाएगा और वह देश व समाज विघटीत होकर समाप्त हो जाएगा।

देश आजाद हुआ तब देश कि अर्थ व्यवस्था सामान्य था जिसके फलस्वरूप एक डाॅलर एक रुपये के बराबर था। परन्तु देश के आजादी के बाद जैसे ही भारतीय संविधान लागू हुआ भारत का दण्ड व्यवस्था चरमरा गया और  दण्ड व्यवस्था नष्ट होने से अर्थ व्यवस्था भी कमजोर होने लगा और आज हालत यह है कि एक डाॅलर 73 रुपये के बराबर हो गया है। जिसके कारण देश में चारों तरफ एक भय एक असंतोष कि स्थिति उत्पन्न हो गई है जो अभी और बढ़ेगी।  जब तक दण्ड व्यवस्था सुदृढ़ नहीं होता तब तक अर्थ व्यवस्था को सुदृढ़ नहीं किया जा सकता। 
इस समय भारत का दण्ड व्यवस्था उत्तम नहीं है। अतः भारत आर्थिक आधार पर भी मजबूत नहीं है,  और भारत में सर्वत्र असंतोष की स्थिति है। चोर उचक्को का बोल बाला है, जिसके फलस्वरूप चोर उच्चके ही देश शीर्ष पदों पर स्थापित हो चूके हैं। और नेताओं में तो कहना मुश्किल है कि कौन चोर-उच्चका नहीं है।

-डॉ मुकेश ओझा