#कोश-मूलो हि दण्डः ८.१.४७
यह वाक्य कौटिल्य के अर्थशास्त्र का है, इसमें कहा गया है कि देश को सम्पन्न बनाने के लिए दण्ड व्यवस्था सुदृढ़ रखना चाहिए।
जिस देश का दण्ड व्यवस्था जितना अधिक सुदृढ़ और मजबूत है वह देश उतना ही धनी और सम्पन्न है। उदाहरण- अमेरिका, जर्मनी, जापान आदि।
और जिस देश का दण्ड व्यवस्था जितना कमजोर है वह देश उतना ही कमजोर है। उदाहरण- बंगलादेश, पाकिस्तान आदि।
दण्ड-अभावे च ध्रुवः कोश-विनाशः ८.१.४३
यदि किसी भी देश या समाज में दण्ड व्यवस्था सुदृढ़ नहीं है तो उस देश या समाज का धन नष्ट हो जाएगा और वह देश व समाज विघटीत होकर समाप्त हो जाएगा।
देश आजाद हुआ तब देश कि अर्थ व्यवस्था सामान्य था जिसके फलस्वरूप एक डाॅलर एक रुपये के बराबर था। परन्तु देश के आजादी के बाद जैसे ही भारतीय संविधान लागू हुआ भारत का दण्ड व्यवस्था चरमरा गया और दण्ड व्यवस्था नष्ट होने से अर्थ व्यवस्था भी कमजोर होने लगा और आज हालत यह है कि एक डाॅलर 73 रुपये के बराबर हो गया है। जिसके कारण देश में चारों तरफ एक भय एक असंतोष कि स्थिति उत्पन्न हो गई है जो अभी और बढ़ेगी। जब तक दण्ड व्यवस्था सुदृढ़ नहीं होता तब तक अर्थ व्यवस्था को सुदृढ़ नहीं किया जा सकता।
इस समय भारत का दण्ड व्यवस्था उत्तम नहीं है। अतः भारत आर्थिक आधार पर भी मजबूत नहीं है, और भारत में सर्वत्र असंतोष की स्थिति है। चोर उचक्को का बोल बाला है, जिसके फलस्वरूप चोर उच्चके ही देश शीर्ष पदों पर स्थापित हो चूके हैं। और नेताओं में तो कहना मुश्किल है कि कौन चोर-उच्चका नहीं है।
-डॉ मुकेश ओझा
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