सभी बीमारियाँ पहले मस्तिष्क में जन्म लेती हैं।
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जब तक मानसिक पेटर्न उस अनुरूप न बन जाय, तब तक बीमारियाँ शरीर पर प्रकट नहीं होती है। असाध्य मानसिक या शारीरिक रोग की जड़ें सदा ही गहरे अवचेतन मन में होती है। छिपी हुई जडों को उखाडकर रोग को ठीक किया जा सकता है। मनुष्य की देह (सिक्रेशन) सबसे अधिक दवाएँ बनाने का कारखाना है । हमारी देह के उपचार में काम आने वाली सभी दवाओं के केमिकल्स हमारी देह में बनाए जाते है। इन सब दवाओं का निर्माण हमारी सोच एवं भावनाओं पर निर्भर है। नकारात्मक सोच व नकारात्मक भावनाओं से हमारे सिक्रेशन प्रभावित होते हैं । दुनिया के सबसे धीमे मारने वाले भंयकर जहर भी इसी देह में बनते है।
हमारी स्थूल देह के पीछे क्वान्तम भौतिकीय देह है जो कि सूक्ष्म है, अदृश्य है। स्थूल देह का जन्म इसी सूक्ष्म देह की बदौलत है। उसमें परिवर्तन इसी के आधार पर होते हंै।
वातावरण वास्तव में हमारी देह का विस्तार है।जैसे दो तारो व ग्रहो के बीच प्रत्यक्ष सम्बन्ध न होने के उपरान्त वं आपस में भी सम्बंन्धित है। वैसे ही हमारी देह के अणुओं के बीच सम्बन्ध न होने के बावजूद आपस में सम्बन्धित है।
हमारी देह का रूपाकार किसी शिल्प कृति से कम नहीं है।भीतर बैठी प्रज्ञा का यह आवरण मूर्ति के रूप में दिखता है। इसके निश्चित आकार-प्रकार है । इसके साथ ही हमारी देह के परमाणु बहती हुई नदी की तरह है। हमारी देह में कुछ भी स्थाई नहीं है। हमारी कोशिकाओं के प्रत्येक कण बदलते जाते हैं। हमारी रक्त कणिकाएँ नब्बे दिन में बदल जाती हैं। हड्डियों का ठोस ढांचा जिसके चारों ओर शरीर लिपटा रहता है, वह स्वयं भी एक सौ बीस दिन में पूरी तरह बदल जाता है। ( अनित्यता )
मेडिकल सांइस भी अब मानसिक लक्षणॊं की प्रमुखता को मानने लगा है । हाँलाकि यह क्रम बहुत पहले हिपोक्रेट्स से शुरु हुआ था । हिप्पोक्रेट्स से लेकर गैलन और आखिरकार होम्योपैथी के प्रवर्तक डां हैनिमैन ने इन्सान के स्वाभाव का विशेलेषण करने मे बहुत अंह भूमिका निभायी । जहाँ हिप्पोक्रेट्स (400 ई.पू.) का मानना था कि शरीर चार ह्यूमर ( Humor ) अर्थात रक्त,कफ, पीला पित्त और काला पित्त से बना है. Humors का असंतुलन, सभी रोगों का कारण है . वही गैलन Galen (130-200 ई.) ने इस शब्द का इस्तेमाल शारीरिक स्वभाव के लिये किया , जो यह निर्धारित करता है कि शरीर रोग के प्रति किस हद तक संवेदन्शील है ।
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