Monday, June 1, 2020

नक्षत्रों का शरीर के अंगों पर स्थान

नक्षत्रों का शरीर के अंगों पर स्थान
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नक्षत्रों को शरीरांगो पर विभाजित करने में विद्वानों में एक से अधिक मत रहे है !

१.शास्त्रीय मत से नक्षत्र पुरुष का विचार : 

शरीर के अंगो पर सभी नक्षत्रों का कोई क्रम नहीं है !
"वामनपुराणानुसार " इनका विभाजन निम्नलिखित है !

क्रम. नक्षत्र - शरीरांग
१. अश्विनी - दोनों घुटने 
२. भरणी - सिर 
३. कृतिका - कटिप्रदेश 
४. रोहिणी - दोनों टांगे 
५. मृगशिरा - दोनों नेत्र 
६. आर्द्रा - बाल 
७. पुनर्वसु - अंगुलियाँ 
८. पुष्य - मुख 
९. आश्लेषा - नख 
१०. मघा - नाक
११. पूर्वा फाल्गुनी - गुप्तांग 
१२. उत्तरा फाल्गुनी- गुप्तांग 
१३. हस्त - दोनों हाथ 
१४. चित्रा - मस्तक 
१५. स्वाति - दांत 
१६. विशाखा - दोनों भुजाएं 
१७. अनुराधा - ह्रदय, वक्षस्थल 
१८. ज्येष्ठा - जिव्हा 
१९. मूल - दोनों पैर 
२०. पूर्वा षाढा - दोनों जांघें 
२१. उत्तरा षाढा - दोनों जांघें 
२२. श्रवण - दोनों कान 
२३. धनिष्ठा - पीठ 
२४. शतभिषा - ठोड़ी के दोनों पार्श्व 
२५. पूर्वा भाद्रपद - बगल 
२६. उत्तरा भाद्रपद - बगल 
२७. रेवती - दोनों कांख 

नोट : - 

i. शरीर में निशान और चोट का निश्चय करने में इसका उपयोग होता है ! क्रूर का बुरे ग्रह कुंडली में जिस नक्षत्र में गये हो उसी अंग पर घाव या निशान पैदा कर देते है !

ii. सूर्य चन्द्रमा के नक्षत्रानुसार उस अंग में चिन्ह आदि जन्मजात होता है या बना देता है ! 

iii. दशा-अन्तर्दशा में भी लग्ने वाली चोट का निर्धारण इसी से किया जाता है ! 

iv. जो नक्षत्र पापयुक्त हो, निर्बल ग्रह से युक्त हो वही अंग पीड़ित, शिथिल या दोषयुक्त होता है ! 

२. जन्म नक्षत्र से नक्षत्र पुरुष विचार : 

जातक के जन्म नक्षत्र से प्रारम्भ करके १,१,३,१,१,४,३,५,१,४,३ नक्षत्रों को सारणी के अनुसार स्थापित कर लें ! जिन नक्षत्रों पर पाप प्रभाव, क्रूर दृष्टि, नीच-शत्रु ग्रह होगा उन्ही नक्षत्रों के अंगो पर चोट व अन्य निशान उस ग्रह की दशा अन्तर्दशा में मिलेंगे ! यह विचार महर्षि पराशर ने बताया है ! 

अंग - नक्षत्र 

मुख - जन्म नक्षत्र 

वाम नेत्र - १

माथा - ३ 

छाती (दायीं) - १ 

गला (दक्षिण भाग) - १ 

दायाँ हाथ - ४ 

दायाँ पैर - ३ 

छाती (बायीं) - ५ 

गला (वाम bhag) - १ 

बांया हाथ - ४ 

दायाँ पैर - ३ 

३. पाराशरीय मत : 

पराशर ने प्रश्न विचार हेतु अलग नक्षत्र पुरुष का वर्णन किया है ! 

क्रम. नक्षत्र - शरीरांग
१. अश्विनी - सर 
२. भरणी - माथा 
३. कृतिका - भौंहें 

४. रोहिणी - आँखें 
५. मृगशिरा - नाक 
६. आर्द्रा - कान 
७. पुनर्वसु - गाल 
८. पुष्य - होंठ 
९. आश्लेषा - ठुड्डी 
१०. मघा - गला 

११. पूर्वा फाल्गुनी - कंधे 
१२. उत्तरा फाल्गुनी- ह्रदय 
१३. हस्त - बगलें 
१४. चित्रा - छाती 
१५. स्वाति - पेट 
१६. विशाखा - नाभि 

१७. अनुराधा - कमर 
१८. ज्येष्ठा - जांघ 
१९. मूल - नितम्ब 
२०. पूर्वा षाढा - लिंग 
२१. उत्तरा षाढा - अंडकोष 

२२. श्रवण - पेडू 
२३. धनिष्ठा - जंघा 
२४. शतभिषा - घुटने 
२५. पूर्वा भाद्रपद - पिंडली 
२६. उत्तरा भाद्रपद - टखने 
२७. रेवती - पैर 

* ज्येष्ठा को जांघों के उपरी हिस्से अर्थात कमर के नीचे के आधे भाग में व धनिष्ठा को शेष जांघें समझे !
-डाॅ.मुकेश ओझा
ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार

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