🚩🚩🚩🚩🚩 वेद विज्ञानं 🚩🚩🚩🚩🚩
मुझसे अगर पूछा जाए कि वेद विहीन स्रष्टि का क्या स्वरुप होगा ..वैदिक उपासनाकाण्ड , कर्मकांड , ज्ञानकाण्ड को ताक पर रख दीजिए , और वेद विहीन विकास को उदभाषित करें , क्या होगा ? ,............... ..तो उत्तर है
नरक और नारकीय प्राणियों के अतिरिक्त विश्व कुछ नहीं बचेगा , संभावित विश्व का अर्थ होगा नरक व् नारकीय प्राणी .....विश्व में जो कुछ चमत्कृति है वह वेद विज्ञानं के कारण है ....वेदोक्त कर्मकाण्ड का आलम्बन लें , वेदोक्त उपासना काण्ड का आलम्बन लें तो जीवन में उस दिव्यता का संचार होता है कि आधिदैविक द्रष्टि से व्यक्ति वायु , अग्नि , यम , कुबेर आदि जो दिक्पाल है यहाँ तक कि ब्रह्मा तक के शरीर को प्राप्त करता है जीवन को प्राप्त करता है ..........जीवन में दिव्यता का आधान वेदोक्त उपासना काण्ड , कर्म काण्ड की तिलांजलि देकर संभव ही नहीं है !
अगर कोई भौतिकवादी कहता है कि हम आत्मा को अमर नहीं मानते , परलोक को नहीं मानते , हम देहात्मवादी है शरीर को ही आत्मा मानते है केवल हम भौतिक उत्कर्ष के ही पक्षधर है .....उनको भगवती भू देवी ने क्या सन्देश दिया है श्रीमद भागवत चतुर्थस्कंध अध्याय १८ श्लोक ३,४,५ >>> सुनीए ......भूदेवी ने कहा डंके की चोट से ....वैदिक महर्षियों के द्वारा चिरपरिचित और प्रयुक्त कृषि , भोजन , वस्त्र , आवास , शिक्षा , स्वास्थ्य , उत्सव , रक्षा , सेवा , न्याय और विवाह आदि जितने प्रकल्प है उनको त्याग देने पर , उपेक्षा कर देने पर भौतिक उत्कर्ष भी संभव नहीं है !
हाथ कंगन को आरसी क्या द्रष्टान्त लीजिए >>>> पुरे विश्व ने लगभग सौ वर्ष या उससे भी अधिक समय से भौतिक ढंग से विकास को परिभाषित किया लेकिन विकास के गर्भ से विनाश निकल रहा है या नहीं ?
अब इसकी व्याख्या सुन लीजिए >>> पृथ्वी , पानी , प्रकाश , पवन , आस्तिक , नास्तिक , वैदिक , अवैदिक , उभयसम्मत उर्जा के चार स्त्रोत्र है , वर्तमान में जो पुरे विश्व को परिभाषित किया गया है उसके फलस्वरूप पृथ्वी , पानी , पवन , प्रकाश सभी विकृत , क्षुब्ध व् कुपित हो रहे है या नहीं .....अब थोडा विचार कीजिए .........
आपके और हमारे जीवन में जब अन्न व् जल का दूषित संघात होता है तो कफ नामक रोग की प्राप्ति होती है , तेज जब दूषित होता है तो पित्त नामक रोग की प्राप्ति होती है , वायु के कुपित होने से वात नामक रोग की प्राप्ति होती है , जब यह सभी कुपित हो जाते है तो सन्निपात नामक रोग की प्राप्ति होती है !
गिने चुने ऐसे चिकित्सक या डॉक्टर होते है जो सन्निपात को दूर कर सके , और समाष्टि सन्निपात को जन्म देना आजकल विकास का परिणाम है या नहीं , इसका अर्थ क्या है ? पृथ्वी विकृत , दूषित व् कुपित बनाई जा चुकी है विकास के नाम पर इसी प्रकार वायु , जल , तेज को भी दूषित , विकृत और कुपित बनाया जा चूका है विकास के नाम पर ........इसलिए समष्टि सन्निपात को जन्म दिया है आधुनिक विकासशील देशो ने , विकास की वर्तमान वेद विरुद्ध परिभाषा ने समष्टि सन्निपात को जन्म दिया है ......इसलिए वेद की उपेक्षा के कारण वेद को ताक पर रख कर विकास को उदभाषित किया गया उसका परिणाम है पृथ्वी कुपित , पानी कुपित , तेज कुपित , पवन कुपित , दूषित , तथा क्षुब्ध है !
इसलिए हमने संकेत किया वेद विज्ञानं की और से पुरे विश्व को चुनौती है , चाहे उधर ओबामा जी हो या इधर मोदी जी ....ध्यान पूर्वक सुने >>>>>>>>> .वैदिक द्रष्टि से विकास को उदभाषित न करके आधुनिक विज्ञानं की द्रष्टि से वेद विहीन विज्ञानं की द्रष्टि से विकास को परिभाषित कीजिए ....उसके गर्भ से विनाश निकल आएगा !
इसलिए विकास का प्रारूप या स्वरुप वेदों के आधार पर निर्धारित करने की आवश्यकता है , विकास के लिए वेदों की और से पहली शर्त क्या है ?
१. पृथ्वी , पानी , प्रकाश , और पवन को दूषित , कुपित और विकृत किये बिना विकास को कर सकते हो तो कीजिए !
२. गौवंश , गंगा इत्यादि सब हित्प्रद व् सनातन मान बिंदु है उनको विकृत , दूषित , कुपित और विलुप्त किये बिना आप विकास को क्रियान्वित कीजिए ........पूरा विश्व असमर्थ है !
३. हम विकास के पक्षधर है लेकिन महंगाई नाम की कोई चीज न हो और विकास चरम पर हो , इस ढंग से विकास को परिभाषित कीजिए .......पुरे विश्व की मेधाशक्ति ठप्प .....महंगाई के बगैर यह लोग विकास को परिभाषित ही नहीं कर सकते , सामानांतर रखते है , विकास होगा तो महंगाई होगी , महंगाई होगी तो विकास होगा ?
इसलिए वेद विज्ञानं का चमत्कार देखिए ...सुनिए >>> विकास चरम पर हो और महंगाई नाम की कोई चीज न हो !
४. चौथी शर्त क्या है आजकल का पूरा विश्व , भौतिकवादियो का बनाया हुआ मस्तिष्क , विकास को परिभाषित करते समय नास्तिकता को ताक पर रख दें ...संभव नहीं , देहात्मवाद , शरीर को आत्मा मानकर सारी विकास की परियोजनाए है या नहीं है , इसका अर्थ बौद्धिक धरातल पर अत्यंत लुंज पुंज आधुनिक विज्ञानं की चपेट में आकर बना दिए गए !
एक कूप माण्डुक होता है , उसके लिए स्रष्टि का क्षेत्रफल कुए के अन्दर का ही हिस्सा होता है , कहने के लिए हम विकसित हो रहे है , लेकिन शरीर को आत्मा मानकर जितना विकास क्रियान्वित किया जा रहा है इसलिए हमने विश्वस्तर से
एक समस्या रखी है क्या >>>>>>>>
वेद विज्ञान विहीन विकास विनाश में हेतु है , और वैदिक द्रष्टि से यदि हम विकास को परिभाषित करेंगे तो पृथ्वी , पानी , प्रकाश और पवन को विकृत , दूषित कुपित किये बिना हमारे यहाँ विकास की परिभाषा क्रियान्वित होगी , गौवंश आदि सभी मानबिंदु सभी सुरक्षित रहेंगे और विकास की परिभाषा क्रियान्वित हो जाएगी , महंगाई नाम की कोई चीज नहीं रहेगी और वेद विज्ञान का आलम्बन लेकर विकास चरम पर होगा , इसी प्रकार नास्तिकता , देहात्म्वाद नामक कोई वाद नहीं होगा और विकास चरम पर होगा !!
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