Monday, November 4, 2024

विवाह

#विवाह__के__आठ__भेद

(१) ब्राह्म, (२) दैव, (३) आर्ष, (४) प्राजापत्य,
(५) आसुर, (६) गान्धर्व, (७) राक्षस और
(८) अत्यन्त अधम पैशाच।

#आठों__के__गुण__दोष

जिस वर्णका जो विवाह धर्मसे युक्त है, जिस
विवाहके जो इष्ट और अनिष्ट फल हैं और उनउन विवाहोंसे उत्पन्न संततिमें जो गुण या दोष आते
हैं, वे बातें बतायी जा रही हैं-ब्राह्मणके लिये ब्राह्म,
दैव, आर्ष, प्राजापत्य, आसुर और गान्धर्व-ये छः
विवाह विहित हैं। 

क्षत्रियके लिये अन्तवाले आसुर,
गान्धर्व, पैशाच और राक्षस-ये चार विवाह विहित
हैं।

 वैश्यके लिये आसुर, गान्धर्व और पैशाच-ये तीन
विवाह विहित हैं। इन विवाहोंमें ब्राह्मणके लिये ब्राह्म,
दैव, प्राजापत्य एवं आर्ष-ये चार विवाह प्रशस्त हैं।

क्षत्रियके लिये एक राक्षस-विवाह अधिक प्रशस्त माना
गया है। 

वैश्य और शूद्रके लिये आसुर विवाहको
प्रशस्त माना गया है। अन्तवाले जो पाँच प्रकारके
[प्राजापत्य, आसुर, गान्धर्व, राक्षस और पैशाच] विवाह
हैं, इनमेंसे तीन प्रकारके [प्राजापत्य, गान्धर्व और
राक्षस] विवाह धर्मयुक्त हैं 

और आसुर एवं पैशाचये दो विवाह अधर्मयुक्त हैं। अतः आसुर एवं पैशाचइन दो विवाहोंको कभी नहीं करना चाहिये। क्षत्रियोंके
लिये पैशाच तथा राक्षस-विवाह पृथक्-पृथक् या मिश्रित अच्छे कहे गये हैं। 
विवाहोंके लक्षण

(१) #ब्राह्य_विवाहका_लक्षण-वेदविद् और
आचारवान् वरको अपने यहाँ स्वयं बुलाकर सत्कारपूर्वक
वस्त्र और भूषणसे अलंकृत कर उसे कन्या प्रदान
करना 'ब्राह्म विवाह' है।

(२) #दैव_विवाहका_लक्षण-ज्योतिष्टोम आदि
यज्ञके प्रारम्भ हो जानेपर विधिसे कर्म करनेवाले
ऋत्विक्को अलंकृत कर उसे कन्यादान करना 'दैव
विवाह' कहलाता है।

(३) #आर्ष_विवाह_का_लक्षण-कन्याको देनेके
१-ब्राह्मो दैवस्तथैवार्षः प्राजापत्यस्तथासुरः । गान्धर्वो
२-अद्भिरेव द्विजाप्रयाणां कन्यादानं विशिष्यते । इतरेषां
लिये वरसे दो गायें लेकर शास्त्रोक्त-विधिसे कन्यादान करना 'आर्ष विवाह' कहलाता है।

(४) #प्राजापत्य_विवाहका_लक्षण-'वधू और
वर तुम दोनों एक साथ मिलकर धर्मकी रक्षा करो'
| ऐसा कहकर और वरका पूजन कर उसे जो कन्या प्रदान
की जाती है उसे 'प्राजापत्य विवाह' कहा जाता है।

(५) #आसुर_विवाहका_लक्षण-कन्याके पिता,
| चाचा या कन्या आदिको शक्तिके अनुसार धन देकर
अपनी इच्छासे उस कन्याको स्वीकार करना 'आसुर
विवाह' कहलाता है।

(६) #गान्धर्व_विवाहका_लक्षण-कन्या और
पुरुषका परस्पर प्रेमसे जो आलिंगन आदिरूप संयोग
| है, उसे 'गान्धर्व विवाह' कहते हैं।

(७) #राक्षस_विवाहका_लक्षण-बलात् कन्याका
हरण करना 'राक्षस विवाह' है। [इस हरणमें यदि
पिता आदि उपेक्षा कर जाये तब मार-पीटकी आवश्यकता
नहीं पड़ती। किंतु यदि कन्यापक्षके लोग युद्ध करनेके
लिये उद्यत हो जाये तो उनका हनन अपेक्षित है।
इस तरह कन्यापक्षके लोगोंको मारकर या उनका
अंग-भंग कर गृह आदि तोड़कर चिल्लाती-रोती हुई
कन्याका हरण करना 'राक्षस विवाह' कहा जाता है।]

(८) #पैशाच_विवाहका_लक्षण-जो कन्या सोयी हो, मदिराके नशे में हो और अपनी शील-रक्षाकी उपेक्षा करती हो, उसके साथ अंग-संग करना 'पैशाच विवाह' कहा जाता है, जो अति निन्दित है। 
ब्राह्मणके लिये जल लेकर संकल्पके साथ कन्यादान करना प्रशस्त है। अन्य वर्गों का कन्या-दान परस्पर | इच्छाके अनुसार वचनमात्रसे भी हो सकता है और जलपूर्वक भी ॥

!! नारायण  !!

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