आवश्यकताएँ तीन प्रकार की होतीं हैं, प्रथम शारीरिक स्तर कि, दूसरा मानसिक स्तर कि, और तीसरा आध्यात्मिक स्तर कि।
शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाने पर ही मानव या जीव मानसिक आवश्यकताओं का खोज प्रारंभ करता है। और मानसिक आवश्यकताओं के पूर्ति होने पर आध्यात्मिक।
परन्तु मानसिक आवश्यकताओं का कोई निश्चित सीमा नहीं अतः वर्तमान परिवेश में लोग मानसिक आवश्यकताओं तक हि सिमट कर रह गये हैं। आध्यात्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति गुरु परंपरा से होता था जो आज समाप्त हो गया है। आजकल जो आध्यात्मिक गुरु हैं, उन्हें स्वयं आत्म ज्ञान नहीं है, अतः वे आत्म ज्ञान कहाँ से प्राप्त कराएँगे, हाँ बर्गला जरूर सकते हैं जो वे बखूबी करते है।
अब रही बात कि क्या! तो हम आत्म ज्ञानी गुरु के अभाव में कभी आत्म ज्ञानी नहीं बन सकते, तो उत्तर है- जरूर बन सकते हैं क्योंकि आत्म ज्ञान के लिए कहा गया है कि-
इस आत्मा को सतत प्राप्त करने की इच्छा ही इसे प्राप्त करने का पर्याप्त साधन वा उपाय है।
नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहुना श्रुतेन ।
यमेवैष वृणुते तेन लभ्यस्तस्यैष आत्मा विवृणुते तनुं स्वाम् ।।
अर्थ – यह आत्मा प्रवचनों से नहीं मिलती है और न ही बौद्धिक क्षमता से अथवा शास्त्रों के श्रवण-अध्ययन से । जो इसकी ही इच्छा करता है उसे यह प्राप्त होता है, उसी के समक्ष यह आत्मा अपना स्वरूप उद्घाटित करती है ।
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अब आत्म ज्ञानी होने का सूत्र तो प्राप्त हो जाने पर आत्म ज्ञान तो सहज हो गया। परन्तु उस मन का क्या करें, जो कभी तृप्त ही नही होता, जितना प्राप्त करता है और उतने कि चाह उसे और लगी रहती है।
अतः मैं बता दूँ कि इसी मन को साधने के लिए भगवान पतंजली ने अष्टाड़्ग योग का निर्माण किया है।
परन्तु वर्तमान परिवेश में अष्टाड़्ग योग को साधना तो और भी कठिन कार्य हो गया है।
अतः इसके लिए मैं आपको एक सरल मार्ग बताता हूँ। अष्टाड़्ग योग में वर्णित आठ मैं से किसी एक का भी यदि आप पालन करने लगते हैं, तो आप आठों को बिना प्रयास के ही साध सकते हैं। या यह कहूँ कि एक के भी सधने से अष्टाड़्ग योग की सिद्धि हो जाती है।
आप अपने स्वभाव के अनुसार किसी को भी साध सकते हैं। वैसे वर्तमान परिवेश में हमारे ख्याल से ध्यान को लगभग सभी आसानी से साध सकते हैं।
इस ध्यान (भावातीत ध्यान) पर मैं अभी स्वयं प्रयास कर रहा हूँ।
अतः मन का निरोध भी हमारे इच्छाशक्ति पर ही निर्भर है।
अब बात आती है शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति का है। यह शारीरिक आवश्यकता कि पूर्ति भौतिक वस्तुओं से ही संभव है। अतः इसके लिए व्यक्ति को कोई नौकरी या व्यवसाय तो करना ही होगा।
अतः यदि आप अच्छा व्यवसाय या नौकरी प्राप्त करना चाहते हैं तो भी आपको मेधावान तो बनना ही पड़ेगा और मेधा वृद्धि कै लिए "ध्यान" से अलग और कोई सही मार्ग नहीं है।
अतः अपने बच्चों के साथ सपरिवार प्रतिदिन 20 मिनट ध्यान का अभ्यास जरूर प्रारंभ कर दें। और शाकाहारी बनें।
-डॉ मुकेश ओझा
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