रक्षासूत्र का मंत्र है-
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।
येन=जिसके द्वारा बद्धो= प्रतिबद्ध हुए, बली राजा= राजा बलि, दानवेन्द्रो=दानवों के राजा, महाबल: = महाबलशाली,
तेन= उसी प्रतिबद्धता के सूत्र द्वारा त्वाम=तुम्हे अनुबध्नामि= मैं भी उसी रक्षा सूत्र मे बनाता हूँ, रक्षे=हे रक्षा सूत्र, मा चल=स्थिर रहो मा चल=स्थिर रहो, चलायमान मत रहो।
इस मंत्र का सामान्यत: अर्थ यह है कि रक्षा सूत्र बांधते समय ब्राह्मणया पुरोहत अपने यजमान को कहता है कि जिस रक्षासूत्र से दानवों के महापराक्रमी राजा बलि धर्म के बंधन में बांधे गए थे अर्थात् धर्म में प्रयुक्त किए गये थे, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं, यानी धर्म के लिए प्रतिबद्ध करता हूं। इसके बाद पुरोहित रक्षा सूत्र से कहता है कि हे रक्षे तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना। इस प्रकार रक्षा सूत्र का उद्देश्य ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को धर्म के लिए प्रेरित एवं प्रयुक्त करना है।
इस श्लोक अंतिम चरण पूरी तरह गलत है और पूरी तरह अर्थ का अनर्थ किया गया है।
ReplyDeleteरक्षे माचल मात्र के स्थान पर रक्षेयम् चलमाचल:! हैं जिसका अर्थ है यह (रक्षा सूत्र) चल व अचल दोनों स्थितियों में तुम्हारी रक्षा करे।
थोड़ा संस्कृत पढ लिया होता तो प्रलाप करने नहीं आते। रक्षेयम् उत्तम पुरुष है, रक्षे मध्यम पुरुष। जिसको रक्षासूत्र बांध रहे उसके लिए मध्यम पुरुष धातुरूप का प्रयोग करेंगे या उत्तम पुरुष?
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