Tuesday, December 31, 2019

उत्सव कैसे मनाएँ

उत्सव प्रतिपल होना चाहिये यदि आप वर्ष में कुछ दिन ही उत्सव मनाते हैं अर्थात अन्य दिनों में आप बेहोश होते है। उत्सव का अर्थ है पूर्ण होश में रहना।
और पूर्ण होश में रहने का एक मात्र उपाय है - ध्यान।
और मैं कहता हूँ उत्सव ध्यान में घटित होने वाली घटना है। आप अपने बेहोशी को उत्सव मत समझ लेना।उत्सव में सत्य प्रकट होता है। प्रेम अंकुरित होता है। करुणा का प्रस्फुरण होता है। आप जहाँ हैं यदि वही उसी अवस्था में ध्यान घटित हो गया तो आप उत्सव मनाया सकते है। अन्यथा आप सृष्टि में कहीं भी जाएँगे उत्सव के स्थान पर दुःख और खेद ही प्राप्त होगा।
👉यदि आप नये वर्ष का उत्सव मना रहे हैं तो सावधान! ध्यान को साध कर रखिए कही आपके नकली उत्सव में आपका होश न खो जाय।
- डॉ मुकेश ओझा
ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार
  ।। मनुर्भव ।।

ईसा मसीह का भारत आगमन - ओशो

ओशो का वह प्रवचन, जि‍सपर ति‍लमि‍ला उठी थी अमेरि‍की सरकार और दे दि‍या जहर 
Nothing you will get to read here , just one more religious hypocrisy, and if you read with balanced heart and mind , you may find the religion is stand also upon wavy Ocean like human lives . those did in excellence for community (its for entire human not limited ) their vision was broad not restricted . and in their whole life is just great struggle .. after them whatever religion take place in the name of those souls.. is fully selfish , centralized and Money Oriented . Apart of these quality application-forces have another qualification to apply forcefully their practices on common minds , that is type of mental and physical treatments most cos of religious conflicts and wars plus living is " Under Fear " .... so just read wisely ..

so just read wisely ..and explore Ocean of reality  by own . 

ओशो का अपना अध्ययन  गहरा था , अनेक पुस्तको  के मंथन और स्वयं अपने  बौद्धिक मापदंड के आधार पर  उन्होंने समस्त शास्त्रो की विवेचना की , जो अनेको को  समझ आया (अपने अपने बौद्धिक मापदंड  के आधार पे  ग्राह्य भी हुए  जो कभी सही और कभी गलत समझे गए ) ओशो बिना किसी तथ्य या प्रमाण कि बात नहीं करते | ये ऊपर दिया गया पोस्ट तो मात्र निचोड़ हैं उस प्रवचन का ....जब आप इसको पूरा पढेंगे तो आपको ज्ञात होगा कि ओशो ने लेखको का भी रेफरेंस दिया हैं | उसमे उन्होंने " ’दि सर्पेंट ऑफ पैराडाइंज’’ पुस्तक का भी जिक्र किया हैं , बौद्ध शास्त्रों का रेफरेंस दिया हैं , निकोलस नाटोविच नामक लेखक का जिक्र किया हैं , फ़्रांसिसी इतिहासकार बर्नियर जो कि औरंगजेब के शासन काल में भारत आया था , ओशो ने उसका भी रेफरेंस दिया हैं मित्र  और सबसे बड़ी बात आप स्वयं भी वहा जाके देख सकते हैं क्योकि इस्लाम में कब्रों कि एक दिशा निर्धारित हैं और यह कब्र इस्लाम कि कसौटी पर खरा नहीं उतरती , कब्र पर यहूदी भाषा में ईसा का नाम भी अंकित हैं ..जब आप स्वयं जायेंगे और देखेंगे तो आपको किसी अन्य के रेफरेंस कि जरुरत नहीं पड़ेगी ..आप खुद एक रेफरेंस हो जायेंगे  वैसे ओशो ने ये बात करीब 30 - 35 साल पहले कही थी ...अब तो बहुत से शोधकर्ताओ ने प्रूफ दे दिया हैं कि श्रीनगर में ही ईसा कि कब्र हैं |

वैसे  अंततोगत्वा स्वयं के शोध  और स्वयं के आत्ममंथन से  मिला अमृत  अतुलनीय है।  तो पढ़े और स्वयं विचार करें।   

ओशो का वह प्रवचन, जिससे ईसायत तिलमिला उठी थी और अमेरिका की रोनाल्‍ड रीगन सरकार ने उन्‍हें हाथ-पैर में बेडि़यां डालकर गिरफ्तार किया और फिर मरने के लिए थेलियम नामक धीमा जहर दे दिया था। इतना ही नहीं, वहां बसे रजनीशपुरम को तबाह कर दिया गया था और पूरी दुनिया को यह निर्देश भी दे दिया था कि न तो ओशो को कोई देश आश्रय देगा और न ही उनके विमान को ही लैंडिंग की इजाजत दी जाएगी। ओशो से प्रवचनों की वह श्रृंखला आज भी मार्केट से गायब हैं। पढिए वह चौंकाने वाला सच
ओशो:
जब भी कोई सत्‍य के लिए प्‍यासा होता है, अनायास ही वह भारत में उत्‍सुक हो उठता है। अचानक पूरब की यात्रा पर निकल पड़ता है। और यह केवल आज की ही बात नहीं है। यह उतनी ही प्राचीन बात है, जितने पुराने प्रमाण और उल्‍लेख मौजूद हैं। आज से 2500 वर्ष पूर्व, सत्‍य की खोज में पाइथागोरस भारत आया था। ईसा मसीह भी भारत आए थे। ईसामसीह के 13 से 30 वर्ष की उम्र के बीच का बाइबिल में कोई उल्‍लेख नहीं है। और यही उनकी लगभग पूरी जिंदगी थी, क्‍योंकि 33 वर्ष की उम्र में तो उन्‍हें सूली ही चढ़ा दिया गया था। तेरह से 30 तक 17 सालों का हिसाब बाइबिल से गायब है! इतने समय वे कहां रहे? आखिर बाइाबिल में उन सालों को क्‍यों नहीं रिकार्ड किया गया? उन्‍हें जानबूझ कर छोड़ा गया है, कि ईसायत मौलिक धर्म नहीं है, कि ईसा मसीह जो भी कह रहे हैं वे उसे भारत से लाए हैं।
यह बहुत ही विचारणीय बात है। वे एक यहूदी की तरह जन्‍मे, यहूदी की ही तरह जिए और यहूदी की ही तरह मरे। स्‍मरण रहे कि वे ईसाई नहीं थे, उन्‍होंने तो-ईसा और ईसाई, ये शब्‍द भी नहीं सुने थे। फिर क्‍यों यहूदी उनके इतने खिलाफ थे? यह सोचने जैसी बात है, आखिर क्‍यों ? न तो ईसाईयों के पास इस सवाल का ठीक-ठाक जवाबा है और न ही यहूदियों के पास। क्‍योंकि इस व्‍यक्ति ने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। ईसा उतने ही निर्दोष थे जितनी कि कल्‍पना की जा सकती है।
पर उनका अपराध बहुत सूक्ष्‍म था। पढ़े-लिखे यहूदियों और चतुर रबाईयों ने स्‍पष्‍ट देख लिया था कि वे पूरब से विचार ले रहे हैं, जो कि गैर यहूदी हैं। वे कुछ अजीबोगरीब और विजातीय बातें ले रहे हैं। और यदि इस दृष्टिकोण से देखो तो तुम्‍हें समझ आएगा कि क्‍यों वे बारा-बार कहते हैं- ' अतीत के पैगंबरों ने तुमसे कहा था कि यदि कोई तुम पर क्रोध करे, हिंसा करे तो आंख के बदले में आंख लेने और ईंट का जवाब पत्‍थर से देने को तैयार रहना। लेकिन मैं तुमसे कहता हूं कि अगर कोई तुम्‍हें चोट पहुंचाता है, एक गाल पर चांटा मारता है तो उसे अपना दूसरा गाल भी दिखा देना।' यह पूर्णत: गैर यहूदी बात है। उन्‍होंने ये बातें गौतम बुद्ध और महावीर की देशनाओं से सीखी थीं।
ईसा जब भारत आए थे-तब बौद्ध धर्म बहुत जीवंत था, यद्यपि बुद्ध की मृत्‍यु हो चुकी थी। गौतम बुद्ध के पांच सौ साल बाद जीसस यहां आए थे। पर बुद्ध ने इतना विराट आंदोलन, इतना बड़ा तूफान खड़ा किया था कि तब तक भी पूरा मुल्‍क उसमें डूबा हुआ था। बुद्ध की करुणा, क्षमा और प्रेम के उपदेशों को भारत पिए हुआ था।
जीसस कहते हैं कि अतीत के पैगंबरों द्वारा यह कहा गया था। कौन हैं ये पुराने पैगंबर? वे सभी प्राचीन यहूदी पैगंबर हैं: इजेकिएल, इलिजाह, मोसेस,- कि ईश्‍वर बहुत ही हिंसक है और वह कभी क्षमा नहीं करता है!? यहां तक कि प्राचीन यहूदी पैगंबरों ने ईश्‍वर के मुंह से ये शब्‍द भी कहलवा दिए हैं कि मैं कोई सज्‍जन पुरुष नहीं हूं, तुम्‍हारा चाचा नहीं हूं। मैं बहुत क्रोधी और ईर्ष्‍यालु हूं, और याद रहे जो भी मेरे साथ नहीं है, वे सब मेरे शत्रु हैं। पुराने टेस्‍टामेंट में ईश्‍वर के ये वचन हैं। और ईसा मसीह कहते हैं, मैं तुमसे कहता हूं कि परमात्‍मा प्रेम है। यह ख्‍याल उन्‍हें कहां से आया कि परमात्‍मा प्रेम है? गौतम बुद्ध की शिक्षाओं के सिवाए दुनिया में कहीं भी परमात्‍मा को प्रेम कहने का कोई और उल्‍लेख नहीं है। उन 17 वर्षों में जीसस इजिप्‍त, भारत, लद्दाख और तिब्‍बत की यात्रा करते रहे। यही उनका अपराध था कि वे यहूदी परंपरा में बिल्‍कुल अपरिचित और अजनबी विचारधाराएं ला रहे थे। न केवल अपरिचित बल्कि वे बातें यहूदी धारणाओं के एकदम से विपरीत थीं। तुम्‍हें जानकर आश्‍चर्य होगा कि अंतत: उनकी मृत्‍यु भी भारत में हुई! और ईसाई रिकार्ड्स इस तथ्‍य को नजरअंदाज करते रहे हैं। यदि उनकी बात सच है कि जीसस पुनर्जीवित हुए थे तो फिर पुनर्जीवित होने के बाद उनका क्‍या हुआ? आजकल वे कहां हैं ? क्‍योंकि उनकी मृत्‍यु का तो कोई उल्‍लेख है ही नहीं !
सच्‍चाई यह है कि वे कभी पुनर्जीवित नहीं हुए। वास्‍तव में वे सूली पर कभी मरे ही नहीं थे। क्‍योंकि यहूदियों की सूली आदमी को मारने की सर्वाधिक बेहूदी तरकीब है। उसमें आदमी को मरने में करीब-करीब 48 घंटे लग जाते हैं। चूंकि हाथों में और पैरों में कीलें ठोंक दी जाती हैं तो बूंद-बूंद करके उनसे खून टपकता रहता है। यदि आदमी स्‍वस्‍थ है तो 60 घंटे से भी ज्‍यादा लोग जीवित रहे, ऐसे उल्‍लेख हैं। औसत 48 घंटे तो लग ही जाते हैं। और जीसस को तो सिर्फ छह घंटे बाद ही सूली से उतार दिया गया था। यहूदी सूली पर कोई भी छह घंटे में कभी नहीं मरा है, कोई मर ही नहीं सकता है।
यह एक मिलीभगत थी, जीसस के शिष्‍यों की पोंटियस पॉयलट के साथ। पोंटियस यहूदी नहीं था, वो रोमन वायसराय था। जूडिया उन दिनों रोमन साम्राज्‍य के अधीन था। निर्दोष जीसस की हत्‍या में रोमन वायसराय पोंटियस को कोई रुचि नहीं थी। पोंटियस के दस्‍तखत के बगैर यह हत्‍या नहीं हो सकती थी।पोंटियस को अपराध भाव अनुभव हो रहा था कि वह इस भद्दे और क्रूर नाटक में भाग ले रहा है। चूंकि पूरी यहूदी भीड़ पीछे पड़ी थी कि जीसस को सूली लगनी चाहिए। जीसस वहां एक मुद्दा बन चुका था। पोंटियस पॉयलट दुविधा में था। यदि वह जीसस को छोड़ देता है तो वह पूरी जूडिया को, जो कि यहूदी है, अपना दुश्‍मन बना लेता है। यह कूटनीतिक नहीं होगा। और यदि वह जीसस को सूली दे देता है तो उसे सारे देश का समर्थन तो मिल जाएगा, मगर उसके स्‍वयं के अंत:करण में एक घाव छूट जाएगा कि राजनैतिक परिस्थिति के कारण एक निरपराध व्‍यक्ति की हत्‍या की गई, जिसने कुछ भी गलत नहीं किया था।
तो पोंटियस ने जीसस के शिष्‍यों के साथ मिलकर यह व्‍यवस्‍था की कि शुक्रवार को जितनी संभव हो सके उतनी देर से सूली दी जाए। चूंकि सूर्यास्‍त होते ही शुक्रवार की शाम को यहूदी सब प्रकार का कामधाम बंद कर देते हैं, फिर शनिवार को कुछ भी काम नहीं होता, वह उनका पवित्र दिन है। यद्यपि सूली दी जानी थी शुक्रवार की सुबह, पर उसे स्‍थगित किया जाता रहा। ब्‍यूरोक्रेसी तो किसी भी कार्य में देर लगा सकती है। अत: जीसस को दोपहर के बाद सूली पर चढ़ाया गया और सूर्यास्‍त के पहले ही उन्‍हें जीवित उतार लिया गया। यद्यपि वे बेहोश थे, क्‍योंकि शरीर से रक्‍तस्राव हुआ था और कमजोरी आ गई थी। पवित्र दिन यानि शनिवार के बाद रविवार को यहूदी उन्‍हें पुन: सूली पर चढ़ाने वाले थे। जीसस के देह को जिस गुफा में रखा गया था, वहां का चौकीदार रोमन था न कि यहूदी। इसलिए यह संभव हो सका कि जीसस के शिष्‍यगण उन्‍हें बाहर आसानी से निकाल लाए और फिर जूडिया से बाहर ले गए।
जीसस ने भारत में आना क्‍यों पसंद किया? क्‍योंकि युवावास्‍था में भी वे वर्षों तक भारत में रह चुके थे। उन्‍होंने अध्‍यात्‍म और ब्रह्म का परम स्‍वाद इतनी निकटता से चखा था कि वहीं दोबारा लौटना चाहा। तो जैसे ही वह स्‍वस्‍थ हुए, भारत आए और फिर 112 साल की उम्र तक जिए। कश्‍मीर में अभी भी उनकी कब्र है। उस पर जो लिखा है, वह हिब्रू भाषा में है। स्‍मरण रहे, भारत में कोई यहूदी नहीं रहते हैं। उस शिलालेख पर खुदा है, जोशुआ- यह हिब्रू भाषा में ईसामसीह का नाम है। जीसस जोशुआ का ग्रीक रुपांतरण है। जोशुआ यहां आए- समय, तारीख वगैरह सब दी है। एक महान सदगुरू, जो स्‍वयं को भेड़ों का गड़रिया पुकारते थे, अपने शिष्‍यों के साथ शांतिपूर्वक 112 साल की दीर्घायु तक यहांरहे। इसी वजह से वह स्‍थान भेड़ों के चरवाहे का गांव कहलाने लगा। तुम वहां जा सकते हो, वह शहर अभी भी है-पहलगाम, उसका काश्‍मीरी में वही अर्थ है- गड़रिए का गांव
जीसस यहां रहना चाहते थे ताकि और अधिक आत्मिक विकास कर सकें। एक छोटे से शिष्‍य समूह के साथ वे रहना चाहते थे ताकि वे सभी शांति में, मौन में डूबकर आध्‍यात्मिक प्रगति कर सकें। और उन्‍होंने मरना भी यहीं चाहा, क्‍योंकि यदि तुम जीने की कला जानते हो तो यहां (भारत में)जीवन एक सौंदर्य है और यदि तुम मरने की कला जानते हो तो यहां (भारत में)मरना भी अत्‍यंत अर्थपूर्ण है। केवल भारत में ही मृत्‍यु की कला खोजी गई है, ठीक वैसे ही जैसे जीने की कला खोजी गई है। वस्‍तुत: तो वे एक ही प्रक्रिया के दो अंग हैं।
यहूदियों के पैगंबर मूसा ने भी भारत में ही देह त्‍यागी थी | इससे भी अधिक आश्‍चर्यजनक तथ्‍य यह है कि मूसा (मोजिज) ने भी भारत में ही आकर देह त्‍यागी थी! उनकी और जीसस की समाधियां एक ही स्‍थान में बनी हैं। शायद जीसस ने ही महान सदगुरू मूसा के बगल वाला स्‍थान स्‍वयं के लिए चुना होगा। पर मूसा ने क्‍यों कश्‍मीर में आकर मृत्‍यु में प्रवेश किया?
मूसा ईश्‍वर के देश इजराइल की खोज में यहूदियों को इजिप्‍त के बाहर ले गए थे। उन्‍हें 40 वर्ष लगे, जब इजराइल पहुंचकर उन्‍होंने घोषणा की कि, यही वह जमीन है, परमात्‍मा की जमीन, जिसका वादा किया गया था। और मैं अब वृद्ध हो गया हूं और अवकाश लेना चाहता हूं। हे नई पीढ़ी वालों, अब तुम सम्‍हालो!
मूसा ने जब इजिप्‍त से यात्रा प्रारंभ की थी तब की पीढ़ी लगभग समाप्‍त हो चुकी थी। बूढ़े मरते गए, जवान बूढ़े हो गए और नए बच्‍चे पैदा होते रहे। जिस मूल समूह ने मूसा के साथ यात्रा की शुरुआत की थी, वह बचा ही नहीं था। मूसा करीब-करीब एक अजनबी की भांति अनुभव कर रहे थेा उन्‍होंने युवा लोगों शासन और व्‍यवस्‍था का कार्यभारा सौंपा और इजराइल से विदा हो लिए। यह अजीब बात है कि यहूदी धर्मशास्‍त्रों में भी, उनकी मृत्‍यु के संबंध में , उनका क्‍या हुआ इस बारे में कोई उल्‍लेख नहीं है। हमारे यहां (कश्‍मीर में ) उनकी कब्र है। उस समाधि पर भी जो शिलालेख है, वह हिब्रू भाषा में ही है। और पिछले चार हजार सालों से एक यहूदी परिवार पीढ़ी-दर-पीढ़ी उन दोनों समाधियों की देखभाल कर रहा है।
मूसा भारत क्‍यों आना चाहते थे ? केवल मृत्‍यु के लिए ? हां, कई रहस्‍यों में से एक रहस्‍य यह भी है कि यदि तुम्‍हारी मृत्‍यु एक बुद्धक्षेत्र में हो सके, जहां केवल मानवीय ही नहीं, वरन भगवत्‍ता की ऊर्जा तरंगें हों, तो तुम्‍हारी मृत्‍यु भी एक उत्‍सव और निर्वाण बन जाती है।
सदियों से सारी दुनिया के साधक इस धरती पर आते रहे हैं। यह देश दरिद्र है, उसके पास भेंट देने को कुछ भी नहीं, पर जो संवेदनशील हैं, उनके लिए इससे अधिक समृद्ध कौम इस पृथ्‍वी पर कहीं नहीं हैं। लेकिन वह समृद्धि आंतरिक है।


वैसे इस विषय पर सबसे पहला शोध प्रबंधात्मक पुस्तक कर्नल नोटोविच ने लिखा था (आधुनिक विश्व हेतु) अथक परिश्रम के बाद। सम्पूर्ण विश्व को इसके बारे में उन्होंने बताया। बाद में अनेक व्यक्तियों ने इस पर पुस्तके लिखी होल्जर कर्स्टन परमहंस योगानंद जी मुस्लिम पंथ के कुछ मुस्लिम विद्वानों ने भी पुस्तके लिखी है परन्तु उनकी विश्लेषणात्मक धारा से मैं सहमत नहीं हूँ । 

बाइबिल की या कहे कि Jesus: The Christ की मूल शिक्षाएं क्या हैं तो निम्न पुस्तकों का अध्ययन अवश्य करे , और मुझे लगता है की इसकी प्रमाणिकता पर भी किसी को संदेह नहीं होगा। 
जीसस और भारतीय शास्त्रों की शिक्षाओ में कितना अद्भुत ऐक्य है यह इससे परिलक्षित होता है।

1. The Second Coming of Christ,vol 1 & 2 : Sri Paramahansa Yogananda ji.

2. The Yoga of Jesus: Sri Paramahansa Yogananda ji.

3. The Holy Science : Sri Yukteshvar Giri ji (Spiritual Guru of Sri Paramahansa Yogananda ji)

4. The God Talks to Arjuna: Commentary on Sri Bhagavadgita : Sri Paramahansa Yogananda ji,Vol. 1 & 2. 

5. Jesus Lived in India : Holger Kersten

और भी अन्य पुस्तके है जिनका अध्ययन इस सन्दर्भ में किया जा सकता है।
काफी शोध के बाद इसे भारत सरकार के फिल्म डिवीज़न के सहयोग से बनाया गया हैं ...सभी रेफरेंस आपको इसमें मिल जायेंगे

ज्योतिष ग्रन्थ और लेखक

गणित तथा ज्योतिष

• वेदांग ज्योतिष -- लगध
• बौधायन शुल्बसूत्र -- बौधायन
• मानव शुल्बसूत्र -- मानव
• आपस्तम्ब शुल्बसूत्र -- आपस्तम्ब
• सूर्यप्रज्ञप्ति --
• चन्द्रप्रज्ञप्ति --
• स्थानांग सूत्र --
• भगवती सूत्र --
• अनुयोगद्वार सूत्र
• बख्शाली पाण्डुलिपि
• छन्दशास्त्र -- पिंगल
• लोकविभाग -- सर्वनन्दी
• आर्यभटीय -- आर्यभट प्रथम
• आर्यभट्ट सिद्धांत -- आर्यभट प्रथम
• दशगीतिका -- आर्यभट प्रथम
• पंचसिद्धान्तिका -- वाराहमिहिर
• महाभास्करीय -- भास्कर प्रथम
• आर्यभटीय भाष्य -- भास्कर प्रथम
• लघुभास्करीय -- भास्कर प्रथम
• लघुभास्करीयविवरण -- शंकरनारायण
• यवनजातक -- स्फुजिध्वज
• ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त -- ब्रह्मगुप्त
• करणपद्धति -- पुदुमन सोम्याजिन्
• करणतिलक -- विजय नन्दी
• गणिततिलक -- श्रीपति
• सिद्धान्तशेखर -- श्रीपति
• ध्रुवमानस -- श्रीपति
• महासिद्धान्त -- आर्यभट द्वितीय
• अज्ञात रचना -- जयदेव (गणितज्ञ), उदयदिवाकर की सुन्दरी नामक टीका में इनकी विधि का उल्लेख है।
• पौलिसा सिद्धान्त --
• पितामह सिद्धान्त --
• रोमक सिद्धान्त --
• सिद्धान्त शिरोमणि -- भास्कर द्वितीय
• ग्रहगणित -- भास्कर द्वितीय
• करणकौतूहल -- भास्कर द्वितीय
• बीजपल्लवम् -- कृष्ण दैवज्ञ -- भास्कराचार्य के 'बीजगणित' की टीका
• बुद्धिविलासिनी -- गणेश दैवज्ञ -- भास्कराचार्य के 'लीलावती' की टीका
• गणितसारसंग्रह -- महावीराचार्य
• सारसंग्रह गणितमु (तेलुगु) -- पावुलूरी मल्लन (गणितसारसंग्रह का अनुवाद)
• वासनाभाष्य -- पृथूदक स्वामी -- ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त का भाष्य (८६४ ई)
• पाटीगणित -- श्रीधराचार्य
• पाटीगणितसार या त्रिशतिका -- श्रीधराचार्य
• गणितपञ्चविंशिका -- श्रीधराचार्य
• गणितसार -- श्रीधराचार्य
• नवशतिका -- श्रीधराचार्य
• क्षेत्रसमास -- जयशेखर सूरि (भूगोल/ज्यामिति विषयक जैन ग्रन्थ)
• सद्रत्नमाला -- शंकर वर्मन ; पहले रचित अनेकानेक गणित-ग्रन्थों का सार
• सूर्य सिद्धान्त -- रचनाकार अज्ञात ; वाराहमिहिर ने इस ग्रन्थ का उल्लेख किया है।
• तन्त्रसंग्रह -- नीलकण्ठ सोमयाजिन्
• वशिष्ठ सिद्धान्त --
• वेण्वारोह -- संगमग्राम के माधव
• युक्तिभाषा या 'गणितन्यायसंग्रह' (मलयालम भाषा में) -- ज्येष्ठदेव
• गणितयुक्तिभाषा (संस्कृत में) -- रचनाकार अज्ञात
• युक्तिदीपिका -- शंकर वारियर
• लघुविवृति -- शंकर वारियर
• क्रियाक्रमकरी (लीलावती की टीका) -- शंकर वारियर और नारायण पण्डित ने सम्मिलित रूप से रची है।
• भटदीपिका -- परमेश्वर (गणितज्ञ) -- आर्यभटीय की टीका
• कर्मदीपिका -- परमेश्वर -- महाभास्करीय की टीका
• परमेश्वरी -- परमेश्वर -- लघुभास्करीय की टिका
• विवरण -- परमेश्वर -- सूर्यसिद्धान्त और लीलावती की टीका
• दिग्गणित -- परमेश्वर -- दृक-पद्धति का वर्णन (१४३१ में रचित)
• गोलदीपिका -- परमेश्वर -- गोलीय ज्यामिति एवं खगोल (१४४३ में रचित)
• वाक्यकरण -- परमेश्वर -- अनेकों खगोलीय सारणियों के परिकलन की विधियाँ दी गयी हैं।
• गणितकौमुदी -- नारायण पंडित
• तगिकानि कान्ति -- नीलकान्त
• यंत्रचिंतामणि -- कृपाराम
• मुहर्ततत्व -- कृपाराम
• भारतीय ज्योतिष (मराठी में) -- शंकर बालकृष्ण दीक्षित
• दीर्घवृत्तलक्षण -- सुधाकर द्विवेदी
• गोलीय रेखागणित -- सुधाकर द्विवेदी
• समीकरण मीमांसा -- सुधाकर द्विवेदी
• चलन कलन -- सुधाकर द्विवेदी
• वैदिक गणित -- स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ
• सिद्धान्ततत्वविवेक -- कमलाकर
• रेखागणित -- जगन्नाथ सम्राट
• सिद्धान्तसारकौस्तुभ -- जगन्नाथ सम्राट
• सिद्धान्तसम्राट -- जगन्नाथ सम्राट
• करणकौस्तुभ -- कृष्ण दैवज्ञ छतत

व्याकरण तथा भाषाविज्ञान

• संग्रह -- व्याडि ( दार्शनिक विवेचन का आदि-ग्रन्थ)
• अष्टाध्यायी -- पाणिनि
• महाभाष्य -- पतञ्जलि
• वाक्यपदीय -- भर्तृहरि (लगभग ई. 500, व्याकरणदर्शन का सर्वोत्कृष्ट ग्रंथ)
• त्रिपादी (या, महाभाष्यदीपिका) -- भर्तृहरि (महाभाष्य की टीका)
• काशिकावृत्ति -- जयादित्य तथा वामन (छठी शती)
• वार्तिक -- कात्यायन
• प्रदीप -- कैयट
• सूक्तिरत्नाकर -- शेषनारायण
• भट्टिकाव्य (या, रावणवध) -- भट्टि (सातवीं शती)
• चांद्रव्याकरण -- चंद्रगोमिन्
• कच्चान व्याकरण -- कच्चान (पालि का प्राचीनतम उपलब्ध व्याकरण)
• मुखमत्तदीपनी -- विमलबुद्धि (कच्चान व्याकरण की टीका तथा न्यास, 11वीं सदी)
• काशिकाविवरणपंजिका (या, न्यास) -- जिनेंद्रबुद्धि (लगभग 650 ई., काशिकावृत्ति की टीका)
• शब्दानुशासन -- हेमचन्द्राचार्य
• पदमंजरी -- हरदत्त (ई. 1200, काशिकावृत्ति की टीका)
• सारस्वतप्रक्रिया -- स्वरूपाचार्य अनुभूति
• भागवृत्ति (अनुपलब्ध, काशिका की पद्धति पर लिखित)
• भाषावृत्ति -- पुरुषोत्तमदेव (ग्यारहवीं शताब्दी)
• सिद्धान्तकौमुदी -- भट्टोजि दीक्षित (प्रक्रियाकौमुदी पर आधारित)
• प्रौढमनोरमा -- भट्टोजि दीक्षित (स्वरचित सिद्धान्तकौमुदी की टीका)
• वैयाकरणभूषणकारिका -- भट्टोजि दीक्षित
• शब्दकौस्तुभ -- भट्टोजि दीक्षित (ई. 1600, पाणिनीय सूत्रों की अष्टाध्यायी क्रम से एक अपूर्ण व्याख्या)
• बालमनोरोरमा -- वासुदेव दीक्षित (सिद्धान्तकौमुदी की टीका)
• रूपावतार -- धर्मकीर्ति (ग्यारहवीं शताब्दी)
• मुग्धबोध -- वोपदेव
• प्रक्रियाकौमुदी -- रामचंद्र (ई. 1400)
• मध्यसिद्धान्तकौमुदी -- वरदराज
• लघुसिद्धान्तकौमुदी -- वरदराज
• सारसिद्धान्तकौमुदी -- वरदराज
• प्रक्रियासर्वस्व -- नारायण भट्ट (सोलहवीं शताब्दी)
• प्रसाद -- विट्ठल
• प्रक्रियाप्रकाश -- शेषकृष्ण
• तत्वबोधिनी -- ज्ञानेन्द्र सरस्वती (सिद्धांतकौमुदी की टीका)
• शब्दरत्न -- हरि दीक्षित (प्रौढमनोरमा की टीका)
• मनोरमाकुचमर्दन -- जगन्नाथ पण्डितराज (भट्टोजि दीक्षित के "प्रौढ़मनोरमा" नामक व्याकरण के टीकाग्रंथ का खंडन)
• स्वोपज्ञवृत्ति -- (वाक्यपदीय की टीका)
• वैयाकरणभूषणसार -- कौण्डभट्ट (ई. 1600)
• वैयाकरणसिद्धान्तमंजूषा -- नागेश भट्ट (व्याकरणदर्शनग्रंथ)
• परिभाषेन्दुशेखर -- नागेश भट्ट (इस यशस्वी ग्रंथ पर अनेक टीकाएँ उपलब्ध हैं।)
• लघुशब्देन्दुशेखर -- नागेश भट्ट (सिद्धान्तकौमुदी की व्याख्या)
• बृहच्छब्देन्दुशेखर -- नागेश भट्ट (सिद्धान्तकौमुदी की व्याख्या)
• शब्देन्दुशेखर -- नागेश भट्ट
• वैयाकरणसिद्धान्तलघुमंजूषा -- नागेश भट्ट
• वैयाकरणसिद्धान्तपरमलघुमंजूषा -- नागेश भट्ट
• महाभाष्य-प्रत्याख्यान-संग्रह -- नागेश भट्ट
• उद्योत -- नागेश भट्ट (पतंजलिकृत महाभाष्य पर टीकाग्रंथ)
• स्फोटवाद -- नागेश भट्ट
• स्फोटचंद्रिका -- कृष्णभट्टमौनि
• स्फोटसिद्धि -- भरतमिश्र
• परिभाषावृत्ति -- सीरदेव
• परिभाषावृत्ति -- पुरुषोत्तमदेव
• परिभाषाप्रकाश -- विष्णुशेष
• गदा -- परिभाषेंदुशेखर की टीका
• भैरवी -- परिभाषेंदुशेखर की टीका
• भावार्थदीपिका -- परिभाषेंदुशेखर की टीका
• हरिनामामृतव्याकरण -- जीव गोस्वामी
• परिमल -- अमरचन्द

शब्दकोश

• निघण्टु -- यास्क -- वैदिक शब्दकोश
• निरुक्त -- यास्क -- निघण्टु पर शब्दार्थ कोश
• अमरकोश ('नामलिंगानुशासन' या 'त्रिकांड') -- अमरसिंह
• विश्वप्रकाश
• मेदिनी
• नानार्थार्णवसंक्षेप
• वर्णदेशना
• षडर्थनिर्णयकोश -- 'राक्षस' कवि
• षड्मुखकोश
• लघुशब्देंदुशेखर
• बृहतच्छब्देंदुशेखर
• बालमनोरमा
• प्रौढ़मनोरमा
• बृहत अमरकोश -- राजमुकुट कृत अमरकोश टीका
• बृहानंद अमरकोश -- सर्वदानन्द
• बृहत् हारावली -- भानुदीक्षित
• हारवली
• शब्दार्णवसंक्षेप
• कल्पद्रुकोश
• निघण्टु -- यास्क
• निरुक्त -- यास्क
• धातुपाठ -- पाणिनी
• गणपाठ -- पाणिनी
• अमरकोश -- अमरसिंह
• धन्वन्तरिनिघण्टु -- धन्वन्तरि
• अनेकार्थसमुच्चय -- शाश्वत -- इसी को 'शाश्वतकोश' भी कहते हैं
• अभिधानरत्नमाला -- भट्ठ हलायुध (समय लगभग १० वीं० शताब्धी ई०)
• वैजयंती कोश -- यादवप्रकाश (समय १०५५ से १३३७ के मध्य)
• पाइयलच्छी नाममाला --
• देशीनाममाला -- हेमचंद्र -- (प्राकृत—अपभ्रंश—कोश)
• अभिधानचिंतामणि या 'अभिधानचिंतामणिनाममाला' -- हेमचंद्र -- प्रसिद्ध पर्यायवाची कोश
• लिंगानुशासन -- हेमचंद्र
• यशोविजय -- हेमचंद्र -- 'अभिधानचिंतामणि' पर उनकी स्वविरचित टीका
• व्युत्पत्तिरत्नाकर (देवसागकरणि) --हेमचंद्र -- टीकाग्रन्थ
• सारोद्धार' (वल्लभगणि) -- प्रसिद्ध टीका
• अनेकार्थसंग्रह -- हेमचंद्र
• विश्वप्रकाश - महेश्वर (११११ ई०) -- इसे 'विश्वकोश' भी अधिकतः कहा जाता है।
• शब्दभेदप्रकाश -- महेश्वर -- वस्तुतः विश्वप्रकाश का परिशिष्ट है।
• अनेकार्थ -- मंख पंडित (१२ वीं शती ई०)
• नानार्थसंग्रह -- अजयपाल (लगभग १२ वीं—१३ वी शती के बीच)
• नाममाला -- धनंजय (ई० १२ वी० शताब्दी उत्तरार्ध के आसपास अनुमानित)
• हारावली -- पुरुषोत्तमदेव (समय ११५९ ई० के पूर्व)
• त्रिकांडकोश -- पुरुषोत्तमदेव -- यह अमरसिंह के त्रिकाण्डकोश से अलग है।
• वर्णदेशन -- पुरुषोत्तमदेव
• एकाक्षरकोश -- पुरुषोत्तमदेव
• द्विरूपकोश -- पुरुषोत्तमदेव
• वर्णदेशना -- पुरुषोत्तमदेव
• त्रिकांडकोष -- पुरुषोत्तमदेव
• हारावली -- पुरुषोत्तमदेव
• द्विरूपकोश -- श्रीहर्ष (उपरोक्त ग्रन्थ से अलग ग्रन्थ)
• नानार्थार्णव -- केशवस्वामी (समय १२ वीं या १३ वीं शताब्दी)
• नानार्थशब्दकोश -- मेदिनि -- (लगभग १४ वी शताब्दी के आसापास) ; यह 'मेदिनिकोष' नाम से अधिक विख्यात है।
• अपवर्गनाममाला -- जिनभद्र सुरि -- इसको 'पंचवर्गपरिहारनाममाला भी कहते है।
• शब्दरत्नप्रदीप -- कल्याणमल्ल (समय लगभग १२९५ ई०)
• शब्दरत्नाकर -- महीप (लगभग १३७४ ई०)
• भूरिकप्रयोग -- पद्यगदत्त
• शब्दमाला -- रामेश्वर शर्मा
• नानार्थरत्नमाला -- भास्कर अथवा दंडाधिनाथ (१४ वी शताब्दी के विजयनगर के राजा हरिहरगिरि की राजसभा में थे)
• अभिधानतंत्र -- जटाधर
• अनेकार्थ या नानार्थकमंजरी -- नामांगदसिंह का लघु नानार्थकारी है।
• रूपमंजरीनाममाला -- रूपचंद्र (१६वीं शती)
• शारदीय नाममाला -- हर्षकीर्ति
• शब्दरत्नाकर -- वर्मानभट्ट वाण
• नामसंग्रहमाला -- अप्पय दीक्षित
• नामकोश -- सहजकीर्ति (१६२७)
• पंचचत्व प्रकाश -- सहजकीर्ति (१६४४)
• कल्पद्रुमकोश -- केशव -- 'केशवस्वामी' से ये भिन्न हैं।
• नानार्थर्णव -- केशवस्वामी
• शब्दरत्नावली -- मथुरेश (समय १७वी शताब्दी)
• कोशकल्पतरु -- विश्वनाथ
• नानार्थपदपीठिका -- सुजन
• शब्दलिंगार्थचंद्रिका -- सुजन
• पर्यायपदमंजरी --
• शब्दार्थमंजूषा --
• पर्यायरत्नमाला -- महेश्वर (संभवतः पर्यायवाची कोश 'विश्वप्रकाश' के निर्माता महेश्वर से भिन्न हैं।
• पर्यांयशब्दरत्नाकर -- धनंजय भट्टाचार्य
• विश्विमेदिनी -- सारस्वत भिन्न
• विश्वनिघंटु -- विश्वकवि
• लोकप्रकाश -- क्षेमेंद्र
• अनेकार्थमाला -- महीप
• पर्यामुक्तावली -- हरिचरणसेन
• पंचनत्वप्रकाश -- वेणीप्रसाद
• राघव खांड़ेकर -- केशावतंस
• अनेकार्थध्वनिमंजरी -- महाक्षपणक
• आख्यातचीन्द्रिक -- भट्टमल्ल (क्रियाकोश)
• लिंगानुशासन -- हर्ष
• शब्दभेदप्रकाश -- अनिरुद्ध
• शिवकोश (वैद्यक) -- शिवदत्त वैद्य
• गणितार्थ नाममाला --
• नक्षत्रकोश --
• लैकिकन्यायसाहस्री -- भुवनेश (लौकिक न्याय की सूक्तियाँ)
• लौकिक न्यायसंग्रह -- (लौकिक न्याय की सूक्तियाँ)
• लौकिक न्याय मुक्तावली -- (लौकिक न्याय की सूक्तियाँ)
• लौकिकन्यायकोश -- (लौकिक न्याय की सूक्तियाँ)
• शब्दकल्पद्रुम -- राधाकान्त देव (१८८६-९४)
• वाचस्पत्यम् --

रसविद्या

• आनन्दकन्द
• भावप्रकाश -- भावमिश्र
• कैयदेवनिघण्टु
• मदनपालनिघण्टु
• रसहृदयतन्त्र -- गोविन्द भगवतपाद
• रसकामधेनु
• रसमञ्जरी -- शालिनाथ
• रसप्रकाशसुधाकर
• रसरत्नसमुच्चय -- वाग्भट
• रसरत्नाकर -- नागार्जुन
• रससंकेतकलिका
• रसाध्याय
• रसार्णव -- गोविन्दाचार्य
• रसेन्द्रचिन्तामणि -- सुधाकर रामचन्द्र
• रसेन्द्रचूड़ामणि -- सोमदेव
• राजनिघण्टु
• सार्ङ्गधरसंहिता -- सार्ङ्गधर
• अष्टांगहृदय -- वाग्भट
• अष्टांगसंग्रह -- वाग्भट
• रसेन्द्रमंगल -- नागार्जुन
• रसकौमुदी --
• रससार --
• रसप्रकाश -- यशोधर

आयुर्वेद
• वृहत्त्रयी :
• चरकसंहिता --- चरक
• सुश्रुतसंहिता --- सुश्रुत
• अष्टांगहृदय --- वाग्भट
• लघुत्रयी :
• माधव निदान --- माधवकर
• शार्ङ्गधर संहिता --- शार्ङ्गधर (१३०० ई)
• भावप्रकाश --- भाव मिश्र
• अन्य:
अष्टांगसंग्रह (४०० ई)
कश्यपसंहिता (इसमें कौमारभृत्य (बालचिकित्सा) की विशेष रूप से चर्चा है।)
वंगसेनसंहिता (या चिकित्सासारसंग्रह)--- वंगसेन
निबन्धसंग्रह -- दल्हण (इसमें दल्हण के पूर्व के अनेक आयुर्वेदाचार्यों के मत संकत्लित हैं )
बोवर पाण्डुलिपि (Bower Manuscript)
________________________________________
:* आरोग्य कल्पद्रुम

• अर्क प्रकाशन
• आर्य भिशक
• अष्टांग हृदय
• अष्टांगसंग्रह
• आयुर्वेद कल्पद्रुम
• आयुर्वेद प्रकाश
• आयुर्वेद संग्रह
• भैषज्य रत्नावली
• भारत भैषज्य रत्नाकर
• भाव प्रकाश
• वृहत निघण्टु रत्नाकर
• चरक संहिता
• चरक दत्त
• गद निग्रह
• कुपि पक्व रसायन
• निघण्टु रत्नाकर
• रस चन्दांशु
• रस रज सुन्दर
• रसरत्न समुच्चय
• रसतन्त्रसार व सिद्धप्रयोगसंग्रह
• रसतरंगिणी
• रस योग रत्नाकर
• रस योग संग्रह
• रस प्रदीपिका
• रसेन्द्र सार संग्रह
• रस प्रदिपिका
• सहस्रयोग
• सर्वरोग चिकित्सा रत्न
• सर्वयोग चिकित्सा रत्न
• शार्ङ्गधर संहिता
• सिद्ध भैषज्यमणिमाला
• सिद्ध योग संग्रह
• सुश्रुत संहिता
• वैद्य चिंतामणि
• वैद्यक शब्द सिन्धु
• वैद्यक चिकित्सा सार
• वैद्य जीवन
• बसव रजीयं
• योग रत्नाकर
• योग तरंगिणी
• योग चिंतामणि
• कश्यप संहिता
• भेल संहिता
• विश्वनाथ चिकित्सा
• वृन्द चिकित्सा
• आयुर्वेद चिंतामणि
• आभिनव चिंतामणि
• आयुर्वेद रत्नाकर
• योगरत्न संग्रह
• रसामृत
• द्रव्यगुण निघण्टु
• रसमञ्जरी
• वंगसेनसंहिता
• आयुर्वेदिक सार संग्रह

काव्यशास्त्र
नाट्यशास्त्र -- भरतमुनि
काव्यप्रकाश -- मम्मट
टीकाएँ:

• अलंकारसर्वस्व -- रुय्यक
• संकेत टीका -- माणिक्यचंद्र सूरि (रचनाकाल ११६० ई.)
• दीपिका -- चंडीदास (१३वीं शती)
• काव्यप्रदीप -- गोविंद ठक्कुर (१४वीं शती का अंतभाग)
• सुधासागर या सुबोधिनी -- भीमसेन दीक्षित (रचनाकाल १७२३ ई.)
• दीपिका -- जयंतभट्ट (र.का. १२९४ ई.)
• काव्यप्रकाशदर्पण -- विश्वनाथ कविराज (१४वीं शती)
• विस्तारिका -- परमानंद चक्रवर्ती (१४वीं शती)
• साहित्यदर्पण – विश्वनाथ
• काव्यादर्श – दण्डी
• काव्यमीमांसा -- कविराज राजशेखर (८८०-९२० ई.)
• दशरूपक – धनिक
• ध्वन्यालोक – आनन्दवर्धन
• लोचन -- अभिनव गुप्तपाद (ध्वन्यालोक की टीका)
• काव्यप्रकाशसंकेत -- माणिक्यचंद्र (११५९ ई)
• अलंकारसर्वस्व -- राजानक रुय्यक
• चंद्रालोक –
• अलंकारशेखर -- केशव मिश्र

संगीत

नाट्यशास्त्र -- भरत मुनि
बृहद्देशीय -- मतंग मुनि
नारदीय शिक्षा –
संगीत मकरंद –
सरस्वती हृदयालंकार -- मिथिला के राजा नान्यदेव (11वीं शती)
अभिलषितार्थ चिंतामणि -- सोमेश्वर (12वीं शती)
संगीतचूड़ामणि -- सोमेश्वर के पुत्र प्रतापचक्रवर्ती या जगदेकमल्ल (12वीं शती)
संगीतसुधाकर -- चालुक्यवंशीय सौराष्ट्रनरेश महाराज हरिपाल (1175 ई.)
संगीतरत्नावली -- सोमराज देव या सोमभूपाल (1180)
गीतगोविन्द -- जयदेव (12वीं शती ई.)
पंडिताराध्यचरितम् -- पाल्कुरिकि सोमनाथ (तेलगु में, 1270 ई.)
संगीतरत्नाकर -- शार्ङ्गदेव (तेरहवीं शती)
शृंगारहार -- शाकंभरि के राजा हम्मीर (लगभग 1300 ई.)
संगीत-समय-सार -- जैन आचार्य पार्श्वदेव (लगभग 1300)
संगीतसार -- विद्यारण्य (चौदहवीं शताब्दी)
रागतरंगिणी -- लोचन कवि (पन्द्रहवीं शताब्दी)
संगीतशिरोमणि -- अनेक पण्डितों का योगदान (मलिक सुलतान के आह्वान पर, पन्द्रहवीं शताब्दी)
रसिकप्रिया -- मेवाड़ के महाराणा कुंभ (गीतगोविन्द की टीका, 1431-1469 ई.)
संगीतराज -- महाराणा कुम्भ
मानकुतूहल -- ग्वालियर के राजा मानसिंह तोमर (हिन्दी में, 15वीं शती)
षड्रागचंद्रोदय -- पुण्डरीक विट्ठल (सोलहवीं शताब्दी)
रागमाला -- पुण्डरीक विट्ठल
रागमंजरी -- पुण्डरीक विट्ठल
नर्तननिर्णय -- पुण्डरीक विट्ठल
स्वरमेलकलानिधि -- कर्णाटक संगीत के विद्वान् रामामाला (1550 ई.)
स्वरमेल कलानिधि -- रामामात्य (सोलहवीं शताब्दी)
रागविबोध -- सोमनाथ (1609 ई.)
संगीतसुधा -- तंजोर के राजा रघुनाथ (अपने मंत्री गोविंद दीक्षित की सहायता से 1620 ई. में)
चतुर्दंडीप्रकाशिका -- व्यंकटमखी (सन् 1630 ई.)
संगीतदर्पण -- दामोदर मिश्र (लगभग सन् 1630 ई.)
हृदय प्रकाश -- हृदयनारायण देव (सत्रहवीं शताब्दी)
हृदय कौतुकम् -- हृदयनारायण देव (सत्रहवीं शताब्दी)
संग्रहचूड़ामणि -- गोविंद (1680-1700)
संगीत पारिजात -- अहोबल (१७वीं शती)
संगीत दर्पण -- दामोदर पण्डित
अनूपविलास -- भावभट्ट
अनूपसंगीतरत्नाकार --भावभट्ट
अनुपांकुश --भावभट्ट
संगीतसार -- जयपुर के महाराज प्रतापसिंह (1779-1804 ई.)
अष्टोत्तरशतताललक्षणाम् -- सोमनाथ
रागतत्वविबोध -- श्रीनिवास (18वीं शती)
रागतत्वविबोध: -- श्रीनिवास पण्डित (अठारहवीं शताब्दी)
संगीतसारामृतम् -- तंजोर के मराठा राजा तुलजेन्द्र भोंसले (18वीं शती)
रागलक्षमण् -- तुलजेन्द्र भोंसले
लक्ष्यसंगीतम् -- विष्णु नारायण भातखंडे (संस्कृत ; 1910, १९३४)
अभिनवरागमंजरी -- विष्णु नारायण भातखंडे (संस्कृत ; 1910, १९३४)
हिंदुस्तानी संगीत पद्धति -- विष्णु नारायण भातखंडे (मराठी में)
हिंदुस्तानी संगीत क्रमीक (छह भागों में) -- विष्णु नारायण भातखंडे
संगीत तत्त्वदर्शक -- विष्णु दिगंबर पलुस्कर (20वीं शती)

वास्तुशास्त्र
३५० से भी अधिक ग्रन्थों में स्थापत्य की चर्चा मिलती है। इनमें से प्रमुख ग्रन्थ निम्नलिखित हैं-

अपराजितपृच्छा (रचयिता : भुवनदेवाचार्य ; विश्वकर्मा और उनके पुत्र अपराजित के बीच वार्तालाप)
ईशान-गुरुदेवपद्धति
कामिकागम
कर्णागम (इसमें वास्तु पर लगभग ४० अध्याय हैं। इसमें तालमान का बहुत ही वैज्ञानिक एवं पारिभाषिक विवेचन है।)
मनुष्यालयचंद्रिका (कुल ७ अध्याय, २१० से अधिक श्लोक)
प्रासादमण्डन (कुल ८ अध्याय)
राजवल्लभ (कुल १४ अध्याय)
तंत्रसमुच्चय
वास्तुसौख्यम् (कुल ९ अध्याय)
विश्वकर्मा प्रकाश (कुल १३ अध्याय, लगभग १३७४ श्लोक)
विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र (कुल ८४ अध्याय)
सनत्कुमारवास्तुशास्त्र
वास्तुमण्डन
मयशास्त्र (भित्ति सजाना)
बिम्बमान (चित्रकला)
शुक्रनीति (प्रतिमा, मूर्ति या विग्रह निर्माण)
सुप्रभेदगान Suprabhedagana
विष्णुधर्मोत्तर पुराण
आगम (इनमें भी शिल्प की चर्चा है।)
अग्निपुराण
ब्रह्मपुराण (मुख्यतः वास्तुशास्त्र, कुछ अध्याय कला पर भी)
वास्तुविद्या
प्रतिमालक्षणविधानम्
गार्गेयम्
मानसार शिल्पशास्त्र (कुल ७० अध्याय; ५१०० से अधिक श्लोक; कास्टिंग, मोल्डिंग, कार्विंग, पॉलिशिंग, तथा कला एवं हस्तशिल्प निर्माण के अनेकों अध्याय)
अत्रियम्
प्रतिमा मान लक्षणम् (इसमें टूटीई हुई मूर्तियों को सुधारने आदि पर अध्याय है।)
दशतल न्याग्रोध परिमण्डल
शम्भुद्भाषित प्रतिमालक्षण विवरणम्
मयमतम् (मयासुर द्वारा रचित, कुल ३६ अध्याय, ३३०० से अधिक श्लोक)
बृहत्संहिता (अध्याय ५३-६०, ७७, ७९, ८६)
शिल्परत्नम् (इसके पूर्वभाग में 46 अध्याय कला तथा भवन/नगर-निर्माण पर हैं। उत्तरभाग में ३५ अध्याय मूर्तिकला आदि पर हैं।)
युक्तिकल्पतरु (आभूषण-कला सहित विविध कलाएँ)
शिल्पकलादर्शनम्
समरांगण सूत्रधार (रचयिता ; राजा भोज ; कुल ८४ अध्याय, ८००० से अधिक श्लोक)
वास्तुकर्मप्रकाशम्
मत्स्यपुराणम्
गरुणपुराण
कश्यपशिल्प (कुल ८४ अध्याय तथा ३३०० से अधिक श्लोक)
भविष्यपुराण (मुख्यतः वास्तुशिल्प, कुछ अध्याय कला पर भी)
अलंकारशास्त्र
अर्थशास्त्र (खिडकी एवं दरवाजा आदि सामान्य शिल्प, इसके अलावा सार्वजनिक उपयोग की सुविधाएँ)
चित्रकल्प (आभूषण)
चित्रकर्मशास्त्र
मयशिल्पशास्त्र (तमिल में)
विश्वकर्मा शिल्प (स्तम्भों पर कलाकारी, काष्ठकला)
अगत्स्य (काष्ठ आधारित कलाएँ एवं शिल्प)
मण्डन शिल्पशास्त्र (दीपक आदि)
रत्नशास्त्र (मोती, आभूषण आदि)
रत्नपरीक्षा (आभूषण)
रत्नसंग्रह (आभूषण)
लघुरत्नपरीक्षा (आभूषण आदि)
मणिमहात्म्य (lapidary)
अगस्तिमत (lapidary crafts)
अनंगरंग (काम कलाएँ)
कामसूत्र
रतिरहस्य (कामकलाएँ)
कन्दर्पचूणामणि (कामकलाएँ)
नाट्यशास्त्र (फैशन तथा नाट्यकलाएँ)
नृतरत्नावली (फैशन तथा नाट्यकलाएँ)
संगीतरत्नाकर]] ((फैशन, नृत्य तथा नाट्यकलाएँ)
नलपाक (भोजन, पात्र कलाएँ)
पाकदर्पण (भोजन, पात्र कलाएँ)
पाकविज्ञान (भोजन, पात्र कलाएँ)
पाकार्नव (भोजन, पात्र कलाएँ)
कुट्टनीमतम् (वस्त्र कलाएँ)
कादम्बरी (वस्त्र कला तथा शिल्प पर अध्याय हैं)
समयमात्रिका (वस्त्रकलाएँ)
यन्त्रकोश (संगीत के यंत्र Overview in Bengali Language)
संगीतरत्नाकर (संगीत से सम्बन्धित शिल्प)
चिलपटिकारम् (Cilappatikaaram ; दूसरी शताब्दी में रचित तमिल ग्रन्थ जिसमें संगीत यंत्रों पर अध्याय हैं)
मानसोल्लास (संगीत यन्त्रों से सम्बन्धित कला एवं शिल्प, पाकशास्त्र, वस्त्र, सज्जा आदि)
वास्तुविद्या (मूर्तिकला, चित्रकला, तथा शिल्प)
उपवन विनोद (उद्यान, उपवन भवन निर्माण, घर में लगाये जाने वाले पादप आदि से सम्बन्धित शिल्प)
वास्तुसूत्र (संस्कृत में शिल्पशास्त्र का सबसे प्राचीन ग्रन्थ; ६ अध्याय; छबि रचाना; इसमें बताया गया है कि छबि कलाएँ किस प्रकार हाव-भाव एवं आध्यात्मिक स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति के साधन हैं।)

कृषि

• कृषि पराशर (पराशर)
• कृषि संग्रह
• पराशर तंत्र
• वृक्षायुर्वेद (सुरपाल)
• कश्यपीयकृषिसूक्ति (कश्यप)
• विश्ववल्लभ (चक्रपाणि मिश्र)
• उपवनविनोद (सारंगधर)

नीतिशास्त्र

• कामन्दकीय नीतिसार
• शुक्रनीति
• अर्थशास्त्र (चाणक्य)
• नीतिशतक

सुभाषित संग्रह
रचना संग्रहकर्ता काल
सुभाषितरत्नकोश विद्याकर १२वीं शताब्दी
सुभाषितावली कश्मीर के वल्लभदेव प्रायः ५वीं शताब्दी
सदुक्तिकामृत श्रीधरदास १२०५
सूक्तिमुक्तावली जल्हण १३वीं शताब्दी
सार्ङ्गधर पद्धति सार्ङ्गधर १३६३ ई
पद्यावली अज्ञात -
सूक्तिरत्नहार सूर्यकलिंगारय १४वीं शताब्दी
पद्यवेणी वेणीदत्त -
सुभाषितानिवि वेदान्त देशिक १५वीं शताब्दी
पद्यरचना लक्ष्मण भट्ट १७वीं शताब्दी के आरम्भ में
पद्य अमृत तरंगिणी हरिभास्कर १७वीं शताब्दी का उत्तरार्ध
सूक्तिसौन्दर्य सुन्दरदेव १७वीं शताब्दी का उत्तरार्ध
इतिहास

• महावंश
• दीपवंश (द्वीपवंश)
• राजतरंगिणी -- कल्हण
• द्वितीय राजतरंगिणी - जोनराज
• हर्षचरित -- बाणभट
• विक्रमांकदेवचरित -- बिल्हण -- चालुक्य नरेश विक्रमादित्य षष्ठम के  राज्य के बारे में पर्याप्त सूचना
• कुमारपालचरित -- जयसिंह --
• रामचरित -- सन्ध्याकर नन्दी
• पृथ्वीराजचरित चन्द वरदाई

यांत्रिकी
• यन्त्रसर्वस्व -- ऋषि भारद्वाज
• वैमानिकशास्त्र -- ऋषि भारद्वाज
• समरांगणसूत्रधार -- राजा भोज -- इसके 'यंत्रविधान' नामक ३१वें अध्याय में यंत्रों के बारे में बहुत सारी जानकारी दी गयी है। विमान पर भी जानकारी है।
• यन्त्रार्णव --
• वैशेषिक सूत्रों पर प्रशस्तिपाद भाष्य -- प्रशस्तिपाद -- 'वेग संस्कार' न्यूटन के गति के नियमों जैसे हैं।
भारद्वाज मुनि उनसे पूर्व हुए विमान शास्त्र के आचार्य तथा उनके ग्रंथों के बारे में लिखते हैं-
( १ ) नारायण कृत - विमान चन्द्रिका
( २ ) शौनक कृत न् व्योमयान तंत्र
( ३ ) गर्ग - यन्त्रकल्प
( ४ ) वायस्पतिकृत - यान बिन्दु
( ५ ) चाक्रायणीकृत खेटयान प्रदीपिका
( ६ ) धुण्डीनाथ - व्योमयानार्क प्रकाश
• यंत्रराज
• यंत्रशिरोमणि
कामशास्त्र
• कामसूत्र -- वात्स्यायन
इसकी तीन टीकाएँ प्रसिद्ध हैं-
• (1) जयमंगला प्रणेता का नाम यथार्थत: यशोधर है जिन्होंने HQ (1243-61) के राज्यकाल में इसका निर्माण किया।
• (2) कंदर्पचूडामणि बघेलवंशी राजा रामचंद्र के पुत्र वीरसिंहदेव रचित पद्यबद्ध टीका (रचनाकाल सं. 1633; 1577 ई.)।
• (3) कामसूत्रव्याख्या — भास्कर नरसिंह नामक काशीस्थ विद्वान् द्वारा 1788 ई. में निर्मित टीका। इनमें प्रथम दोनों प्रकाशित और प्रसिद्ध हैं, परंतु अंतिम टीका अभी तक अप्रकाशित है।
पश्चाद्वात्स्यायन काल में रचित ग्रन्थ
• (क) नागरसर्वस्व पद्मश्रीज्ञान कृत :- कलामर्मज्ञ ब्राह्मण विद्वान वासुदेव से संप्रेरित होकर बौद्धभिक्षु पद्मश्रीज्ञान इस ग्रन्थ का प्रणयन किया था। यह ग्रन्थ ३१३ श्लोकों एवं ३८ परिच्छेदों में निबद्ध है। यह ग्रन्थ दामोदर गुप्त के "कुट्टनीमत" का निर्देश करता है और "नाटकलक्षणरत्नकोश" एवं "शार्ङ्गधरपद्धति" में स्वयंनिर्दिष्ट है। इसलिए इनका समय १०वीं शताब्दी का अंत में स्वीकृत है।
• (ख) अंनंगरंग कल्याणमल्ल कृत:- मुस्लिम शासक लोदीवंशावतंश अहमदखान के पुत्र लाडखान के कुतूहलार्थ भूपमुनि के रूप में प्रसिद्ध कलाविदग्ध कल्याणमल्ल ने इस ग्रन्थ का प्रणयन किया था। यह ग्रन्थ ४२० श्लोकों एवं १० स्थलरूप अध्यायों में निबद्ध है।
• (ग) रतिरहस्य कोक्कोक कृत :- यह ग्रन्थ कामसूत्र के पश्चात दूसरा ख्यातिलब्ध ग्रन्थ है। परम्परा कोक्कोक को कश्मीरी स्वीकारती है। कामसूत्र के सांप्रयोगिक, कन्यासंप्ररुक्तक, भार्याधिकारिक, पारदारिक एवं औपनिषदिक अधिकरणों के आधार पर पारिभद्र के पौत्र तथा तेजोक के पुत्र कोक्कोक द्वारा रचित यह ग्रन्थ ५५५ श्लोकों एवं १५ परिच्छेदों में निबद्ध है। इनके समय के बारे में इतना ही कहा जा सकता है कि कोक्कोक ७वीं से १०वीं शताब्दी के मध्य हुए थे। यह कृति जनमानस में इतनी प्रसिद्ध हुई सर्वसाधारण कामशास्त्र के पर्याय के रूप में "कोकशास्त्र" नाम प्रख्यात हो गया।
• (घ) पंचसायक कविशेखर ज्योतिरीश्वर कृत  :- मिथिलानरेश हरिसिंहदेव के सभापण्डित कविशेखर ज्योतिरीश्वर ने प्राचीन कामशास्त्रीय ग्रंथों के आधार ग्रहणकर इस ग्रंथ का प्रणयन किया। ३९६ श्लोकों एवं ७ सायकरूप अध्यायों में निबद्ध यह ग्रन्थ आलोचकों में पर्याप्त लोकप्रिय रहा है। आचार्य ज्योतिरीश्वर का समय चतुर्दश शतक के पूर्वार्ध में स्वीकृत है।
• (ड) रतिमंजरी जयदेव कृत  :- अपने लघुकाय रूप में निर्मित यह ग्रंथ आलोचकों में पर्याप्त लोकप्रिय रहा है। रतिमंजरीकार जयदेव, गीतगोविन्दकार जयदेव से पूर्णतः भिन्न हैं। यह ग्रन्थ डॉ॰ संकर्षण त्रिपाठी द्वारा हिन्दी भाष्य सहित चौखंबा विद्याभवन, वाराणसी से प्रकाशित है।
• (च) स्मरदीपिका मीननाथ कृत  :- २१६ श्लोकों में निबद्ध यह ग्रंथ हिन्दी अनुवाद सहित चौखंबा संस्कृत सीरीज आफिस, वाराणसी से प्रकाशित है।
• (छ) रतिकल्लोलिनी सामराज दीक्षित कृत  :- दाक्षिणात्य बिन्दुपुरन्दरकुलीन ब्राह्मण परिवार में उत्पन्न एवं बुन्देलखण्डनरेश श्रीमदानन्दराय के सभापण्डित आचार्य सामराज दीक्षित द्वारा १९३ श्लोकों में निबद्ध इस ग्रन्थ का प्रणयन संवत १७३८ अर्थात १६८१ ई० में हुआ था। यह ग्रंथ हिन्दी अनुवाद सहित चौखंबा संस्कृत सीरीज आफिस, वाराणसी से प्रकाशित है।
• (ज) पौरूरवसमनसिजसूत्र राजर्षि पुरुरवा कृत  :-यह ग्रंथ हिन्दी अनुवाद सहित चौखंबा संस्कृत सीरीज आफिस, वाराणसी से प्रकाशित है।
• (झ) कादम्बरस्वीकरणसूत्र राजर्षि पुरुरवा कृत  :-यह ग्रंथ हिन्दी अनुवाद सहित चौखंबा संस्कृत सीरीज आफिस, वाराणसी से प्रकाशित है।
• (ट) शृंगारदीपिका या शृंगाररसप्रबन्धदीपिका हरिहर कृत :- २९४ श्लोकों एवं ४ परिच्छेदों में निबद्ध यह ग्रंथ हिन्दी अनुवाद सहित चौखंबा संस्कृत सीरीज आफिस, वाराणसी से प्रकाशित है।
• (ठ) रतिरत्नदीपिका प्रौढदेवराय कृत :- विजयनगर के महाराजा श्री इम्मादी प्रौढदेवराय (1422-48 ई.) प्रणीत ४७६ श्लोकों एवं ७ अध्यायों में निबद्ध यह ग्रंथ हिन्दी अनुवाद सहित चौखंबा संस्कृत सीरीज आफिस, वाराणसी से प्रकाशित है। श्री इम्मादी प्रौढदेवराय का समय पंचदश शतक के पूर्वार्ध में स्वीकृत है।
• (ड) केलिकुतूहलम् पं० मथुराप्रसाद दीक्षित कृत  :- आधुनिक विद्वान् पं० मथुराप्रसाद दीक्षित द्वारा ९४८ श्लोकों एवं १६ तरंगरूप अध्यायों में निबद्ध यह ग्रंथ हिन्दी अनुवाद सहित कृष्णदास अकादमी, वाराणसी से प्रकाशित है।
अन्य
इन बहुश: प्रकाशित ग्रंथों के अतिरिक्त कामशास्त्र की अनेक अप्रकाशित रचनाएँ उपलब्ध हैं -

• तंजोर के राजा शाहजी (1664-1710) की शृंगारमंजरी;
• नित्यानन्दनाथ प्रणीत कामकौतुकम्,
• रतिनाथ चक्रवर्तिन् प्रणीत कामकौमुदी,
• जनार्दनव्यास प्रणीत कामप्रबोध,
• केशव प्रणीत कामप्राभ्ऋत,
• कुम्भकर्णमहीन्द्र (राणा कुम्भा) प्रणीत कामराजरतिसार,
• वरदार्य प्रणीत कामानन्द,
• बुक्क शर्मा प्रणीत कामिनीकलाकोलाहल,
• सबलसिंह प्रणीत कामोल्लास,
• अनंत की कामसमूह,
• माधवसिंहदेव प्रणीत कामोद्दीपनकौमुदी,
• विद्याधर प्रणीत केलिरहस्य,
• कामराज प्रणीत मदनोदयसारसंग्रह,
• दुर्लभकवि प्रणीत मोहनामृत,
• कृष्णदासविप्र प्रणीत योनिमंजरी,
• हरिहरचन्द्रसूनु प्रणीत रतिदर्पण,
• माधवदेवनरेन्द्र प्रणीत रतिसार,
• आचार्य जगद्धर प्रणीत रसिकसर्वस्व

विविध विषय
रचना संग्रहकर्ता विषय
धनुर्वेद - सैन्यविज्ञान
नीतिप्रकाश वैशम्पायन -
अश्वविद्या जयदत्त -
हस्त्रायुर्वेद (हस्ति आयुर्वेद्) पालकण्य हस्तिचिकित्सा
शालिहोत्र संहिता शालिहोत्र
विष्णु धर्महोत्र - -
वैमानिकशास्त्र - वायुयान शास्त्र

काशीखण्डोक्त 524 शिवलिंगों की सूची

   काशीखण्डोक्त 524 शिवलिंगों की सूची में 200 अज्ञात है, जिसके विषय मे पुनः चर्चा करेंगे वर्तमान में 324 शिव लिंग अस्तित्व में है।
आज इन 324 काशी खण्डोक्त शिवलिंगों का ससन्दर्भ नाम एवं स्थान जानते हैं ।
काशीखण्डोक्त काशी के ज्ञात शिव लिंग
   
क्रमांक

शिव लिंग काशीखण्ड-श्लोक वाराणसी में अवस्थिति
1. अगस्तीश्वर 61.177; 100.81 अगस्तकुण्डा मुहल्ला, गोदौलिया, डी 36/11
2. अघोरेश्वर 17.87 कामेश्वर, ए 2/21 वृक्ष तले मढ़ी में
3. आग्नेयेश्वर 17.120 निकटस्थ स्वर्लीनेश्वर, ए 12/2
4. अग्नीधर्मीश्वर 100.63 जागेश्वर मठ में, ईश्वरगंगी,
जे 66/4
5. अग्नीश/अग्नीश्वर
84.73; 79.119;


100.85.19;157.9, 161

अग्नीश्वर घाट के समीप, पटनी टोला, सी के 2/1
6. अग्निवर्णेश्वर 65.14 निकटस्थ स्वर्लीनेश्वर, ए 12/2
7. ऐरावतेश्वर 67.179; 97.134
वृद्धकाल मंदिर परिसर में,

के 52/39

8. ऐश्वर्येश 81.87-8 कचौड़ी गली के 34/60 दुर्मुख विनायक के समक्ष
9. अमरेश 69.118
लोलार्क-कुण्ड, सीढ़ियों पर,

बी 2/20

10. अम्बरीश 77.69 केदार मंदिर परिसर, बी 6/102, संप्रति लुप्त
11. अम्बिकेश्वर 67.219 रत्नेश्वर के समीप, वृद्धकाल मार्ग पर के 53/38
12. अमृतेश/अमृतेश्वर 73.45; 94.1; 100.32.70.53; 94.14-9
स्वर्गद्वारी नीलकण्ठ,

सी के 33/28

13. अंगारकेशान 17.15 ऋणामोचन तालाब के दक्षिण, सम्प्रति लुप्त
14. अंगारकेश्वर 17.12 मुक्तकुण्ड के समीप, सम्प्रति लुप्त
15. अंगारेश अंगारेश्वर 86.103.17.21;84.74
आत्मावीरेश्वर मंदिर दालान में,

सी के 7/158

16. अंगिरसेश अंगिरशेश्वर 97.249.18.20 जंगमबाड़ी रोड, डी 35/79; एवं स्वर्गद्वारी, सी के 10/16
17. अंतकेश्वर 68.69-70; 97.132
वृद्धकाल मंदिर परिसर,

के 52/39

18. आनुसूयेश्वर 97.21
नारद घाट, दत्तात्रेय मठ,

डी 25/11

19. आपस्तम्बेश्वर 97.157
मध्यमेश्वर में बूढ़े बाबा,

के 53/116

20. अप्सरेश्वर 66.3; 100.92 राधाकृष्ण धर्मशाला, सी के 30/1
21. आषाढ़ीश आषाढ़ीश्वर
100.64.55.27;

97.177

काशीपुरा, रानी भवानी कोठी, के 63/53; एवं मच्छरहहा फाटक, गोविन्दपुरा सी के 54/24
22. अश्वतरेश 97.203 गोमठ, ब्रह्मनाल, सी के 8/14 ए
23. आश्विनेयेश्वर 97.44
गंगामहल के निकट,

सी के 2/26

24. अत्रीश्वर 18.14; 97.12 कोदई चौकी, डी 50/33, अब नारद घाट, दत्तात्रेय मठ,
डी 25/11
25. अट्टहास 97.30, 32-3 काश्मीरीमल हवेली, शीतला के निकट सी के 7/92
26. अवधूतेश्वर 97.181
निकटस्थ पशुपतेश्वर,

सी के 13/85

27. अविमुक्त
39.75; 64.116;

73.35

विश्वनाथ मंदिर, सी के 35/19 कचहरी का दक्षिण भाग
28. अविमुक्तेश अविमुक्तेश्वर 39.90-7; 40.1-3.61.117; 100.16.10.93; 39.76; 39.80-6; 55.4; 61.116; 100.47, 94 (1) ज्ञानवापी दक्षिण फाटक-केवल स्थान पूजा; (2) राधाकृष्ण धर्मशाला, ज्ञानवापी सी के 30/1; (3) मणिकर्णिका रोड, सी के 10/22 ए, ब्रह्मनालेश्वर में
29. अविमुक्तेश्वरेश्वर 79.92 विश्वनाथ मंदिर परिसर सी के 35/19 दक्षिणी दिशा
30. अयोगंधेश्वर 69.20 पुष्कर तालाब, असि, मुमुक्षु भवन से पूर्व की ओर
31. बालचन्द्रेश 97.121-3 प्राचीन तालकर्णेश्वर औसानगंज, के 56/114
32. बलीश 97.37
वृद्धकाल मंदिर परिसर,

के 52/39

33. बन्दीश्वर 97.136
बालीश रूप में, वृद्धकाल मंदिर परिसर, के 52/39

34. बाणेश/बाणेश्वर
97.38, 206.33.139;

53.80; 69.92

(1) प्रहलाद घाट पंचाग्नि अखाड़ा, के 11/30; (2) सुखलाल शाह मुहाल सी के 13/17
35. भद्रकर्णेश्वर 69.105 रामेश्वर के समीप, भुईली ग्राम, पँचक्रोशी मार्ग
36. भद्रेश/भद्रेश्वर 97.238.97.47-8
प्राचीन भदऊँ, पटनी टोला,

सी के 2/4

37. भागीरथीश्वर 61.158
स्वर्गद्वारी मणिकर्णिका गली,

सी के 11/11

38. भैरवेश 97.141
काल भैरव का पश्चिमी कोना,

के 32/7

39.
भारभूत/भारभूतेश

/भारभूतेश्वर

74-45.55.27.10.91; 55.13-4; 69.158; 100.64
राजादरवाजा गली, गोबिन्दपुरा

सी के 54/44

40. भारद्वाजेश्वर 65.9 वशिष्ठ-वामदेव मन्दिर परिसर, संकठा घाट, सी के 7/161
41. भस्मगात्र 69.121-2
काशी करवट से दक्षिण,

सी के 31/15

42. भवानीश 10.96 भवानीश्वर रूप में, अन्नपूर्णा मंदिर के समीप, राम मंदिर, डी 8/38
43. भव/भवेश्वर 69.99.69.100 भीमचण्डी के समीप, मंदिर परिसर में
44. भीमेश/भीमेश्वर 69.122.69.119-20; 70.72
भीमेश्वर, काशी करवट,

सी के 31/12

45. भीष्मेश 75.78 (1) त्रिलोचन घाट, तट के पास मढ़ी में (2) विश्वनाथ मन्दिर में, शनैचरेश्वर, सी एच 35/19, वृहस्पति
46. भृंगीश्वर 33.129
धनवन्तरीश्वर, वृद्धकाल मंदिर,

के 52/39

47. भूर्भुवः 69.148
भूतभैरव, के 63/26; (गणाधिप, विलुप्त)

48. भूतधात्रीश 74.51
सुखलाल शाह फाटक,

सी के 13/15

49. भूतीश 97.176 (1) भूतेश्वर, दशाश्वमेध, डी 17/50; (2) काशीपुरा, रानी बेतिया मंदिर, आषाढ़ीश्वर
50. ब्रह्मेश/ब्रह्मेश्वर 10.90; 70.32; 73.46; 74.45; 97.239; 242.52.73, 96, 99; 83.97; 100.81
(1) ब्रह्मा घाट के 22/82;

(2) बालमुकुन्द चौहट्टा, खालिसपुरा,  डी 33/66;

51. ब्रह्मीश 100.89 शकरकंद गली, डी 7/6
52. बृहस्पतीश्वर या विभाण्डेश्वर 10.90; 17.59, 61, 64; 97.95 आत्मावीरेश्वर मंदिर के समक्ष, सिंधिया घाट, सी के 7/133
53. बुधेश्वर 15.48, 50, 67 आत्मावीरेश्वर मंदिर, सी के 7/158
54. चण्डीश/चण्डीश्वर 69.57-8; 73.47.97.169; 100.90 कालिका गली, डी 8/27
55. चन्द्र 86.108 सिंधिया घाट के समीप सिद्धेश्वरी मंदिर में, सी के 7/124
56. चन्द्रेश/चन्द्रेश्वर 10.87; 14.25; 69.107; 100.45, 85.14.38, 41, 46, 49, 56, 59, 66, 69, 76; 15.67; 17.62; 73.33; 79.105; 84.76; 97.38, 116-38] -14-38] 41] 46] 49] 43Mh सिंधिया घाट के समीप, सिद्धेश्वरी मंदिर में, सी के 7/124
57. चतुः समुद्रकूप 97.168
कुँआ में काशीपुरा मार्ग,

के 63/46

58. चतुर्मुखेश चतुर्मुखेश्वर 55.10.55.9
(1) वृद्धकाल में, के 52/39;

(2) प्रयाग लिंग आदि केशव,

ए 37/51

59. चतुर्वक्त्रेश्वर 100.89 शकरकंद गली, डी 7/19
60. छागलेश 53.128 पितृकुण्डा, सी 18/52
61. चित्रगुप्तेश्वर 70.38-9; 97.200, 202; 100.84
मच्छरहट्टा फाटक, सी के 57/77

62.
चित्रांगदेश्वर/

चित्रांगेश

70.43;77.76, 72.97.249
क्षेमेश्वर घाट के समीप, कुमारस्वामी मठ, बी 14/118

63. दाक्षायणीश्वर 67.218
सतीश्वर, वृद्धकाल मार्ग,

के 46/32

64. दक्षेश/दक्षेश्वर 97.131; 100.49; 87.4-5; 89.134, 137- 9; 94.36; 97.129; 100.30 वृद्धकाल कूप से उत्तर, विशाल लिंग; के 52/39
65. दमनेश 97.87 द्वार पर, मढ़ी में मकरेश्वर
66. दण्डी/दण्डीश्वर 69.101.69.103 आदि केशव, ए 37/51
67. दशहरेश्वर 52.95
शीतला मंदिर, दशाश्वमेध घाट,

डी 18/19

68. दशाश्वमेधेश 52.71, 91-2
शीतला मंदिर, दशाश्वमेध घाट,

डी 18/19

69. दत्तात्रेयेश्वर 33.142; 61.13; 97.233 (1) आदि केशव मंदिर द्वार के बाहर, ए 37/51; (2) ब्रह्मा घाट, के 18/48; (3) अगस्तकुण्डा, अगस्तीश्वर मंदिर, डी 36/11
70. देहलिविघ्नेश 57.72 देहली विनायक मंदिर, पँचक्रोशी मार्ग
71. देवादेव 69.11
ढुण्ढीराज गली, संन्यासी मार्ग,

सी के 37/12

72. देवालेश्वर 97.171 सप्तसागर, भूतभैरव, के 63/30
73. देवयानीश्वर 97.227 नकुलीश्वर रूप में, अक्षय वट के जड़ में, सी के 35/20
74. धन्वन्तरीश्वर 97.137 वृद्धकाल मंदिर में, के 52/39
75. धर्मेश/धर्मेश्वर 10.89; 73.33; 81.15, 23, 31, 44-6; 83.101; 86.109; 100.28, 88.69.37; 78.47, 52-3, 55; 79.25; 803; 81.47, 74-7; 100.46 (1) मीरघाट, धर्मकूप, डी 2/21 (2) कामेश्वर से दक्षिण, ए2/9, लुप्त
76. धौतपापेश्वर 33.156 पंचगंगा घाट, दालान में
77.
धुवकुण्ड/धुवेश/

धुवेश्वर

97.234.97.236;      21.128; 97.234 कोदई की चौकी, सनातन धर्म कॉलेज परिसर में, डी 49/10
78. दिलीपेश 97.242 देवनाथपुरा, शिवाला
79. दिवोदासेश्वर 58.214 मीरघाट, धर्मकूप, विश्वभुजा गौरी मन्दिर में, डी 2/15
80. द्रमिचण्डेश्वर 53.124 जैतपुरा, नागकुआँ से दक्षिण, ‘मल्लू हलवाई का मन्दिर’
जे 11/14
81. दुर्वासेश 97.177 कामेश्वर मंदिर परिसर, ए 2/9
82. दुर्वासेश्वर 85.74 रानी बेतिया मंदिर में, आषाढ़ीश्वर के समीप
83. द्वारेश्वर 97.256 दुर्गा मंदिर के दक्षिण, दुर्गाकुण्ड, बी 27/1
84.
गभस्तीश/

गभस्तीश्वर

33.154; 84.61; 97.183, 185-6, 193; 100.50.49.27; 49.77-9 पंचगंगा घाट मंगलागौरी मंदिर परिसर, के 24/34
85. गणाध्यक्ष 69.128-9; 97.58 भटौली ग्राम, पँचक्रोशी मार्ग
86. गन्धर्वेश्वर 66.21-3 नागकुण्ड से पश्चिम (भीरन सागर) कुण्ड के समीप, सम्प्रति लुप्त
87. गणेश्वर गणेश्वरेश्वर 10.88.97.231 चौखण्डी ग्राम, पँचक्रोशी मार्ग
88. गंगेश गंगेश्वर 10.91;97.207; 100.31, 50, 93.19.1, 5-7, 10-1
ज्ञानवापी, पीपल के नीचे,

सी के 35/1

89. गर्गेश 97.87 श्रमोदक कूप से पूर्व, सम्प्रति लुप्त
90. गरुड़ेश गरुडेश्वर 10.88; 83.96 50.142
(1) कामेश्वर, खखोलादित्य के लघु-मंदिर में, ए 2/9;

(2) जंगमबाड़ी, तेलियाना,

डी 31/39 ए

91. गौतमेश्वर 97.238 गोदौलिया, काशी नरेश शिवाला, डी 37/33
92.
घण्टकर्णेश्वर

53.33 कर्णघण्टा, के 60/66
93.
गोकर्ण/गोकर्णेश

/गोकर्णेश्वर

74.45.10.88; 53.81; 97.233.53.82;

100.83

दयालु गली, कोदई की चौकी,

डी 50/34 ए

94. गोप्रेक्ष 100.55; 73.60; 97.9. 11, 13, 21, 24 गोपी गोविन्द मंदिर में, लाल घाट, ए 4/24
95. ग्रहेश 97.201
काल भैरव, दण्डपाणि गली,

के 31/50

96. हलीशेश 97.140
धन्वन्तरीश्वर के निकट,

जे 30/22

97. हनुमदीश्वर 97.43 नीचे की ओर, हनुमान घाट मढ़ी में, बी 5/19
98.
हरिकेशेश

हरिकेशेश्वर

97.233.10.95
जंगमबाड़ी, खारी कुँआ,

डी 7/166

99.
हरिश्चन्द्र

हरिश्चन्द्रेश

हरिश्चन्द्रेश्वर

100.86.97.248.10.95; 61.78; 69.80
(1) संकठा घाट, सी के 7/166; (2) पातालेश्वर के समीप,

डी 32/118

100. हस्तिपालेश्वर 97.133
वृद्धकाल मंदिर परिसर,

के 52/39

101.
हाटकेश

हाटकेश्वर

69.149, 69.151.100.83
(1) दालमण्डी गुदड़ी बाजार,

सी के 43/189

(2) हड़हा सराय, सी के 43/189

102. हेतुकेश 97.174 हड़हा तालाब, सम्प्रति लुप्त
103.
हिरण्यगर्भ

हिरण्यगर्भेश

73.60.100.54 त्रिलोचन घाट के समीप, मढ़ी मे
104. हुण्डेश 66.32
(1) शैलपुत्री, वरणा तट, मढ़िया घाट, ए 40/11;

(2) धूपचण्डी देवी मंदिर, पिछवाड़े में, जे 12/134

105. इन्द्रद्युम्नेश्वर 77.70; 84.68 कूचबिहार, कालीबाड़ी के पिछवाड़े में, बी 13/98
106. इन्द्रेश/इन्द्रेश्वर 10.95; 70.28; 97.117.81.41-3
(1) निकट करकोटकवापी (नाग कूप) सम्प्रति लुप्त; (2) तारकेश्वर के समीप, मणिकर्णिका घाट, पीपल के नीचे

107.
ईशान/ईशानेश/

ईशानेश्वर

10.88; 73.60; 100.55.14.6-7, 9-11; 69.94; 97.214; 100.89.69.93
(1) कोतवालपुरा (सिनेमा के समीप), सी के 37/43

(2) दानेश्वर, प्रह्लाद घाट

108. जैगीषव्यगुहालिंग 97.170 जैगीषव्य गुहा के द्वार पर, जागेश्वर मठ जे 66/3
109. जैगिषव्येश्वर 10.87; 63.80, 85 (1) ईश्वरगंगी, नरहरिपुरा, जे 66/4; (2) सप्तसागर, भूतभैरव के 63/28
110. जललिंग 69.161 मणिकर्णिका के समीप, जलशायी घाट जल में अदृश्य
111. जमदग्नीश्वर 97.141 काल भैरव से पूर्व, के 32/57
112. जम्बुकेश जम्बूकेश्वर 10.87; 73.61; 97.159; 100.60* 65.19 (1) लोहटिया बड़े गणेश में, के 58/103 (2) बड़े गणेश, के 58/103
113. जनकेश 68.70; 97.253
(1) वृद्धकाल, के 52/39;

(2) संकठा मंदिर के अन्दर संकठाजी के समीप, सी के 7/159

114. जाँगलेश 97.258
(1) दुर्गा मंदिर में, दुर्गा कुण्ड,

बी 27/1

(2) मुकुट कुण्डा, नबाबगंज

115. जराहरलिंग 97.204 बागीश्वर, जैतपुरा, जे 6/85
116.
जरासंधेश

जरासंधेश्वर

83.103.97.240; 100.80 त्रिपुरभैरवी, दीवार में डी 5/101 (लुप्तः डी 3/79)
117. जटी, जटीश्वर 69.78 पातालेश्वर नाम से, घर के दरवाजे पर, डी 32/17
118. जयन्त/जयन्तेश 69.72.97.135
(1) मृत्युंजय मंदिर से उत्तर, वृद्धकाल, के 52/39;

(2) भूत भैरव, के 63/27

119. ज्ञानेश/ज्ञानेश्वर 61.141; 73.45.81.47; 84.58 लाहौरी टोला, डी 1/32
120.
ज्येष्ठ/ज्येष्ठेश/

ज्येष्ठेश्वर

73.61* 13.29, 10.87; 65.2, 82.63.10-3, 20/65.1, 37, 44; 66.1-2, 7, 164; 17.166 भूत भैरव, सप्तसागर, काशीपुरा, के 62/44
121. ज्योर्तिरूपेश्वर 73.47; 94.30-1, 34 भूत भैरव, सप्तसागर, काशीपुरा, के 62/44
122. कचेश 97.228
शुक्रेश्वर में लघु-लिंग, कालिका गली, डी 8/20

123. कहोलेश 65.18; 97.256
(1) शुक्रेश्वर में लघु-लिंग, कालिका गली, डी 8/30;

(2) कमच्छा देवी मंदिर से उत्तर कोल्हुआ, बी 21/12

124. काल कालकेश 97.221; 97.201 हनुमान घाट, बी 4/44
125. कालंजरेश्वर 77.71
क्षेमेश्वर घाट, कुमारस्वामी मठ,

बी 14/10

126 कालराज 31.150; 67.164; 69.107; 97.199
दण्डपाणि गली, काल भैरव,

के 31/49

127.
कलशेश

कलशेश्वर

97.201.10.86; 61.193; 84.75; 100.85 कालशेश्वर की ब्रह्मपुरी फाटक, सी के 7/101
128. कालेश/कालेश्वर 10.86; 53.58; 97.129.53.57
(1) वृद्धकाल में, वृद्धकालेश्वर

के 52/39

(2) काल भैरव के समीप, दण्डपाणि मंदिर में, के 31/49

129. कम्बलाश्वतरेश 61.81
गोमठ, काकाराम गली,

सी के 8/18 ए

130. कम्बलेश 97.203 गोमठ, ब्रह्मनाल, सी के 8/14 ए
131. कामेश/कामेश्वर 10.87; 73.34; 85.78; 86.109; 97.96; 100.29.33.122; 69.23; 85.75-6; 97.97; 100.46
(1) मच्छोदरी, कामेश्वर, ए 2/9;

(2) घासी टोला, गली के नुक्कड़ पर, के 30/1

132. कन्दुकेश कन्दुकेश्वर 10.96; 65.38-43, 85; 100.24* 65.37 सप्तसागर, भूतभैरव, के 63/29
133. कपालेश/कपालीश 97.65, 108.69.112 लाट भैरव तालाब, ए 17/123
134.
कपर्दीश

कपर्दीश्वर

10.96; 54.1; 5, 56, 79-80; 55.2; 69.68.69.67
जनसा ग्राम, पँचक्रोशी मार्ग

135.
कपिलेश/

कपिलेश्वर

33.158; 73.157; 97.217.73.158; 83.67; 97.77; 97.82-3
(1) कपिलेश्वर गली, दूध विनायक, के 23/14; (2) निकुम्भ के समीप, गड्ढे में, विश्वनाथ मंदिर में, सी के 35/19

136. करन्धमेश्वर 97.252 निकटस्थ लोलार्क कुण्ड, चामुण्डा, बी 2/17
137. करवीरेश्वर 97.115 लक्ष्मी कुण्ड, डी 52/41
138. कर्कोटकेश्वर कर्कोटकेश 66.23; 97.117.66.26
नाग कुण्ड की सीड़ियों पर,

जे 23/206

139. करुणेश्वर करुणेश 73.45; 94.20-8.97.223; 100.88
(1) लाहौरी टोला, ललिता घाट, फूटे गणेश सी के 34/10;

(2) वर्णेश्वर, ढुण्ढिराज गली,

सी के 36/10

140. कश्यपेश 100.82 जंगमबाड़ी मार्ग, डी 35/79
141.
कात्यायन कात्यायनेश

कात्यायनेश्वर

97.258.68.66.65.12
सिंधिया घाट के समीप, आत्मावीरेश्वर मंदिर में,

सी के 7/158

142. केदार/केदारेश 55.8; 73.33; 77.1-5, 25, 46, 60, 62-7; 86.109; 97.250; 100.27, 45.10.87; 77.9-10
(1) केदार घाट, बी 6/102; हरि-हर रूप

(2) कालिका गली, कालीजी,

डी 8/17

(3) अगस्तकुण्डा, अगस्तेश्वर, डी 36/11;

(4) सिंधिया घाट, बृहस्पतीश्वर में, सी के 7/133

143. कीकसेश्वर 100.83 हड़हा सराय, सी के 48/45
144. किरणेश्वर 33.155 मंगलागौरी, गली में, के 23/83
145. किरातेश 55.8; 69.157-8
(1) भारभूतेश्वर, गुप्तेश्वर के नाम से, सी के 52/15

(2) निकटस्थ जयंतेश्वर, लाली घाट

146. कोटीश/कोटीश्वर 96.63-4.97.62
(1) त्रिलोचन मंदिर में पुनः स्थापित, ए 2/80;

(2) साक्षी विनायक, डी 10/49

147. क्रत्वीश्वर 18.21
(1) कोनिया घाट, वरणा पार, पीपल तले;

(2) ज्ञानविनायक, सीढ़ियों पर सी के 33/36

148. कृष्णेश 97.34
संकठा की दीवार में हरिश्चन्द्रेश्वर के समक्ष, सी के 7/159

149.
कृत्तिवास/

कृत्तिवासस्/

कृत्तिवासेश्वर

24.81; 69.59, 62, 72; 69.3; 100.45.68.67-8; 69.55; 73.32; 86.108; 100.25.10.86; 33.166-7; 68.29, 34-5, 38-45, 49, 60, 84-5
वृद्धकाल मार्ग पर, दारानगर,

के 46/23

150. क्षमेश/क्षमेश्वर 97.249.77.72
क्षेमेश्वर घाट, कुमार स्वामी मठ,

बी 14/12

151. कुबेरेश/कुबेरेश्वर 55.11.13.162-3
(1) विश्वनाथ के प्रागंण में उत्तर के ओर

(2) अन्नपूर्णा मंदिर में, पूर्वोत्तर में

152. कुब्जाम्बरेश्वर 70.60 पितामहेश्वर में, सी के 7/92
153.
कुक्कुटेश

कुक्कुटेश्वर

66.4.53.59; 69.75
(1) राणा महल, वक्रतुण्ड विनायक, डी 21/22

(2) काल भैरव, दण्डपाणि भैरव, के 31/49

(3) दुर्गा मंदिर द्वारा से दक्षिण, दुर्गा कुण्ड, बी 27/1

154. कुण्डेश/कुण्डेश्वर 97.105-6.53.78-9 असि घाट (पुनः स्थापित); लोलार्क कुण्ड के ऊपरी हिस्से में
155. कुन्तीश्वर 97.18-9 कोनिया घाट, वरणा पार
156. कुष्माण्डेश 97.206 स्वर्गद्वारी सी के 10/16
157. लक्ष्मीश 97.113
लक्ष्मी कुण्ड, (सोरहियानाथा),

डी 52/54

158.
लाँगलीश/

लाँगलीश्वर

10.93; 55.21; 97, 214; 100.64, 91.50.20 खोवा बाजार, सी के 28/4
159. लोमशेश 68.67 वृद्धकाल मंदिर में, के 52/59, लोमलेश
160. मदालसेश्वर 97.230; 100.655
मदालसेश्वर, इंग्लिशिया लाईन, कालिका गली, डी 5/133

161.
मध्यमेश/

मध्यमेश्वर

97.149.153-4.10.90; 67.177-8; 73.60; 97.151; 100.54 दारा नगर, मध्यमेश्वर, के 53/63
162. (आदि) महादेव 10.96; 51.21; 55.12; 69.27-35, 117; 73.32; 74.120; 79.99; 86.180; 97.7, 9, 26; 100.45 आदि महादेव, त्रिलोचन, ए 3/92
163.
महाकाल/

महाकालेश/

महाकालेश्वर

69.20; 97.131.97.131.53.29; 100.39, 93
(1) महामृत्युंजय, वृद्धकाल मंदिर, के 52/39

(2) काल भैरव से पूर्व दिशा में, के 32/24

(3) ज्ञानवापी मण्डप के दक्षिण-पूर्व कोने में, पीपल के नीचे

164. महालक्ष्मीश्वर 10.91; 69.124; 97.109
लक्ष्मीकुण्ड, (सोरहियानाथ),

डी 52/54

165. महामुण्डेश्वर 97.69
वागीश्वरी मंदिर, जैतपुरा,

जे 6/63

166. महानादेश्वर 69.22 आदि महादेव, ए 3/92
167. महापशुपतेश 97.213 (नेपाल के) पशुपतिनाथ रूप में, ललिता घाट, डी 1/67
168. महासिद्धीश्वर 97.254
कुरुक्षेत्र के समीप, असि,

बी 2/282

169. महेश/महेश्वर 100.94.41.70; 69.130; 70.30; 73.47; 100.38
(1) तट पर खुले में मणिकर्णिका घाट

(2) ज्ञानवापी मण्डप के दक्षिण-पूर्व कोने में

170.
मालतीश

मालतीश्वर

68.68.97.135
मृत्यंजय मंदिर, वृद्धकाल,

के 52/39

171.
मनः प्रकामेश

मनः प्रकामेश्वर

100.89.100.65 साक्षी विनायक, विश्वनाथ गली, डी 10/50
172. मणिकर्णिका 100.79 मणिकर्णिका का घाट, खुले में
173.
मणिकर्णेश

मणिकर्णिकीश

मणिकर्णिकीश्वर

मणिकर्णीश

मणिकर्णीश्वर

12.97.61.104.61.105.10.92; 73.35; 74.45; 97.204.61.112; 86, 109; 100.46 मणिकर्णीश्वर, गोमठ आश्रम, ब्रह्मनाल सी के 8/12
174. मरीचीश्वर 18.17 नागकुँआ, मरीचि कुण्ड, मीरसागर, डी 25/11
175.
मार्कण्ड

मार्कण्डेयेश

मार्कण्डेयेश्वर

10.92.100.92.61.165.170 ढुण्ढिराज गली, बाजार, सी के 36/10
176. मरुकेश्वर 69.159
नैऋत्यीश्वर नाम से, पुष्पदंतेश्वर के समीप, देवनाथपुरा,

डी 32/102

177. मातृश्वर 18.16 पितृकुण्डा, मातृकुण्ड तट पर, सम्प्रति लुप्त
178. मयूरेश मयूरेश्वर 53.80.53.79 असि घाट, बी 2/175
179. मोक्षद्वारेश्वर 73.46; 94.20; 94.29
ललिता घाट के समीप,

सी के 34/10

180. मोक्षेश/मोक्षेश्वर 10.91; 97.223; 100.94* 61.115 ज्ञानवापी मस्ज़िद के पश्चिम (लुप्त)
181. मृत्य्वीश 97.129 महामृत्युंजय, के 52/39
182. मुचुकुन्देश 97.238
बड़ादेव नाम से, गौदौलिया,

डी 37/40

183. मुखप्रक्षेश्वर 97.188
मंगला गौरी मंदिर के समीप

के 24/34

184. मुक्तेश्वर 97.258
(1) गोवा बाई पोखरा, मंदिर,

बी 27/20; (2) पार्क के समीप, तिलभाण्डेश्वर, बी 17/99

185. मुण्डेश 66.23
(1) शैलपुत्री, वरणा तट, मढ़िया घाट, ए 40/11 ; (2) धूपचण्डी देवी मंदिर, पिछवाड़े, जे 12/134

186. नादेश/नादेश्वर 73.164; 97.80.73.156, 159, 74.104
अकारेश्वर, पीपल के तले पड़ा लिंग

187. नागेश्वर 100.86
(1) भोंसला घाट, सी के 1/21; (2) जल में लिंग, नाग कुण्ड,

जे 23/206

188. नहुषेश 97.239. रामेश्वर मंदिर, पँचक्रोशी मार्ग
189.
नैऋतेश

नैऋतेश्वर

97.249.69.160
पुष्पदंतेश्वर से पश्चिम,

डी 32/107,

मारूकेश्वर नाम से प्रचलित

190. नक्षत्रेश्वर 15.9, 16, 19 आदि केशव, ए 37/51
191.
नकुलीश

नकुलीश्वर

97.217.69.116, 120; 100.63, 91
विश्वनाथ अक्षयवट मंदिर में,

सी के 35/20

192. नलकूबरलिंग 70.58, 60; 97.97-9
मणिकर्णीश्वर के समीप,

पितामहेश्वर में, सी के 7/92

193.
नन्दीश्वर

नन्दीकेश

97.29.10.89; 73.47; 100.39, 93 (1) राजा-नदेश्वर कोठी, मलदहिया, एस 18/240; (2) ज्ञानवापी से पूर्व, वृहदाकार वृषभ
194. नारदेश्वर 97.56-7 नारद प्लाट, तैलंग मठ, डी 25/12
195.
नर्मदेश

नर्मदेश्वर

61.172; 75.11; 92.1, 27, 30; 93.1; 100.31, 50.10.91; 92.24 त्रिलोचन मंदिर से पूर्व, ए 2/19
196.
निकुम्भेश

निकुम्भेश्वर

97.225-6.55.11 विश्वनाथ मंदिर में, पार्वती मंदिर में, सी के 35/19
197.
नीलकण्ठ

नीलकण्ठेश्वर

69.59-60; 77.98.61.197
(1) भेलूपुरा, बी 20/15; (2) ब्रह्मनाल, नीलकण्ठ, मणिकर्णिका मार्ग, सी के 33/23

198. निष्कलंकेश 100.92
ढुण्ढिराज गली, बाजार,

सी के 35/34

199. निष्पापेश्वर 83.82 गौरी कुण्ड के समीप, केदार घाट, तट के समीप
200.
निवासेश

निवासेश्वर

10.89; 63.16-7; 97.167.* 73.61
भूत भैरव, के 63/27

201.
ओंकार

ओंकारनाथ

10.86./ ओंकारेश 33.118; 73.73-6. ओंकारेश्वर 73.147, 155, 162-3;74.106-7

61.189, 167; 73.32, 166-71, 174-6; 74.58, 74, 80, 82, 95, 100, 117-8, 121; 75.24, 60; 76.156; 86.108; 87.2; 94.36; 100.26-7, 44 ओंकारेश्वर, पठानी टोला, टीला,
ए 33/23 अन्य सम्बद्ध लिंगः अकारेश्वर तथा मकारेश्वर, उकारेश्वर तथा बिंदु विलुप्त
202. पंचनादेश्वर 97.191 तैलंग मठ के समीप, विंदु माधव की ओर, के 22/11
203. पंचपाण्डव 97.198
पंच-पांडव, खोवा बाजार,

सी के 28/10

204. पापनाशन 97.204 पोखरे के ऊपरी भाग में, ए 34/34
205. परद्रव्येश्वर 100.91
ढुण्ढिराज गली, बाजार,

सी के 35/34

206. परान्नेश 100.91
ढुण्ढिराज गली, बाजार,

सी के 35/34

207. पराशरेश्वर 65.2, 84
(1) भदैनी, लोलार्क, बी 2/21

(2) कर्णघण्टा तालाब, व्यासेश्वर के दक्षिण, के 60/66, सम्प्रति जल में

208. पर्वतेश/पर्वतेश्वर 10.90; 100.80.61.78 सिंधिया घाट, सी के 7/156
209.
पार्वतीश

पार्वतीश्वर

90.1, 21-5; 91.1; 100.31, 49.33.128; 69.49
त्रिलोचन, आदि महादेव मंदिर,

ए 3/92

210.
पशुपति

पशुपतिश्वर

10.90; 69.110-1, 114; 70.53; 77.14, 16.* 61.106.97.181.* 97.93; 100.49, 84 (1) मलदहिया, सी के 30/40, लोहा मण्डी में; (2) पाशुपतेश्वर गली, नन्दन साहू लेन, सी के 13/66; (3) ललिता घाट, डी 1/68, नेपाल नरेश द्वारा स्थापित
211. पवनेश्वर 13.4 भूतभैरव, के 63/14
212. पिप्लेश्वर 84.64 बिंदुमाधव मंदिर के समीप, पीपल तले
213. पिशाचेश 97.235
पिशाचमोचन, कुण्ड के समीप,

सी 21/40

214.
पितामह

पितामहेश

पितामहेश्वर

97.205.66.6.61.150, 192; 66.5; 69.36, 38; 100.85 किशनलाल याज्ञिक का मकान, शीतला गली, सी के 7/92, (प्रपितामहेश्वर के साथ)
215.
पितीश

पितीश्वर

54.2; 97.235.

53.128

पितरकुण्ड, सी 18/47
216. प्रह्लादेश्वर 97.35 प्रह्लादघाट, ए 10/81
217.
प्रणव/प्रणवेश

प्रणवेश्वर

69.19.73.161, 172.74.108, 119 त्रिलोचन घाट, हिरण्यगर्भेश्वर
218. प्रपितामहालिंग 70.56, 58 किशनलाल याज्ञिक का मकान, शीतला गली सी के 7/92, (प्रपितामहेश्वर नाम से)
219. प्रतिग्रहेश्वर 100.92
ढुण्ढ़िराज गली, बाजार,

सी के 34/35

220.
प्रयाग/प्रयागेश

प्रयागेश्वर

97.17

61.36, 39, 44.

61.203

(1) संगमेश्वर, आदि केशव, चतुर्मख

(2) शूलटंकेश्वर, दशाश्वमेध

ब्रह्मेश्वर के रूप में; (3) मढ़िया और ककरहा घाट के मध्य पुनः स्थापित (4) दशाश्वमेध, बंदी देवी,

डी 17/100

221.
प्रीतिकेश

प्रीतिकेश्वर

97.218; 100.65.

10.89

साक्षी विनायक के पिछवाड़े,

डी 10/8

222. पृथ्वीश्वर 83.74
साक्षी विनायक के पिछवाड़े,

डी 10/8

223. पुलहेश 18.99
पुलस्त्येश्वर के समक्ष,

सी के 10/16, चबूतरे पर

224.
पुलस्तीश्वर

पुलस्त्येश

61.188

18.99

(1) जंगमबाड़ी मठ, द्वार पर,

डी 32/102

(2) जवविनायक, स्वर्गद्वारी, सुरेका भवन, सी के 33/43

225. पुष्पदंतेश्वर 97.246-7
बंगाली टोला, देवनाथपुरा,

डी 35/77

226. राजराजेश 100.90
(1) घुघुराली गली रोड, सी के 39/57; (2) ढुण्ढिराज गली, बाजार, सी के 35/33;

(3) स्वर्गद्वारी, चबूतरे के नीचे,
सी के 10/16

227. रत्नेश/रत्नेश्वर 67.28-32, 164-5, 194-5, 200, 203; 73.33; 86.108; 93.38; 100.25, 45.’ 10.92; 33.165; 66.148; 67.1, 3, 17-8, 36, 43-4, 46, 51, 54, 61, 63, 130, 137, 150, 161, 184-5, 211-7, 221-3; 79.96 वृद्धकाल के मार्ग पर, के 53/40
228. रेवतेश/रेवतेश्वर 97.194.97.190 बिन्दुमाधव घाट की सीढ़ियों पर, लघु शिव मंदिर में
229. रूद्रेश/रूद्रेश्वर 97.89.69.90-1; 97.91
त्रिपुर भैरवी मंदिर के समीप,

डी 5/21

230. षड़ानन 67.220
आदि महादेव मंदिर परिसर,

ए 3/92

231. सागरेश/सागरेश्वर 83.64; 97.41
(1) संकठा मंदिर परिसर में,

सी के 7/159; (2) संकठा मंदिर से पूर्व दिशा में, सप्तर्षि मंदिर के समीप

232. शैलेश/शैलेश्वर 66.142-8, 149; 73.60; 94.37; 97.62; 100.52.33.135; 66.124; 67.7; 69.86; 70.37; 100.25
मढ़िया घाट, वरणा नदी तट पर,

ए 40/11

233. शक्रेश 97.210, 213 इन्द्रेश्वर नाम से प्रचलित, मणिकर्णिका घाट के ऊपरी भाग में
234. शालकटंकट 69.61 मंडुवाडीह बाजार, ककरमत्ता तालाब के पास
235. संगमेश्वर 70.77 (1) असि घाट के समीप; (2) आदि केशव, नीचे की ओर, ए 37/51
236. शंकुकर्ण 69.44 शंकुधारा के सामने, बी 22/196
237. समुद्रेश 97.214
बाँसफाटक मार्ग से दक्षिण,

सी के 37/32

238. संवर्तेश 97.198
पंचपांडव, ज्ञानवापी के समीप,

सी के 28/10

239.
शनैश्चरेश्वर

शनीश्वर

17.127.

10.94

विश्वनाथ मंदिर परिसर,

सी के 35/99

240. संगमेश/संगमेश्वर 61.6; 73.60; 84.2.10.95; 15.9; 97.16; 100.53 (1) असि संगम, असि हरिहर आश्रम, बी 1/169; (2) वरणा संगमः आदि  केशव, नीचे की ओर, ए 37/51
241. शंकुकर्णेश्वर 53.27-8; 97.86
शंकुधारा, कुण्ड के समीप,

बी 22/120

242. शान्तनवलिंग 75.77 शान्तेश्वर, त्रिलोचन घाट की मढ़िया में
243. सरस्वतीश्वर 75.9 हिरण्यगर्भेश्वर के समीप, त्रिलोचन घाट
244. शशिभूषण 69.17 हनुमान घाट, बी 4/44
245. शतकाल 97.172 ठठेरी बाजार, नीचे की ओर, के 17/24
246. सतीश्वर 93.1-2, 30, 33, 37-8; 100.32, 50
वृद्धकाल मार्ग, रत्नेश्वर मंदिर,

के 46/32

247. शौनकेश 97.158 बड़े गणेश के समीप, के 58/103, 1822 तक अस्तित्त्व, तदोपरान्त लुप्त
248. सिद्धयोगीश्वर 14.64 सिद्धेश्वरी मंदिर में, सी के 7/124
249. सिद्धेश्वर 67.176; 97.164; 97.245 सिद्धेश्वरी मंदिर में, सी के 7/124
250. सिद्ध्यष्टकेश्वर 67.173 बड़े गणेश में, के 58/103
251. शिवलिंग 51.65; 53.21; 69.104 सर्वमान्य
252. स्कन्द/स्कन्देश्वर 61.120.33.125; 69.25; 70.29; 97.26 आदि महादेव के समीप, ए 3/92 विलुप्त
253. सोमनाथ 100.81
कर्दमेश्वर के समीप, कंदवा, पँचक्रोशी मार्ग पर

254. सोमेश/सोमेश्वर
97.197.10.95;

83.95

(1) मानमंदिर घाट के समीप,

डी 16/34;

(2) पाण्डेय घाट, डी 25/34, सीढ़ी पर;

(3) वागीश्वरी, जैतपुरा, जे 6/85

255. श्रीकण्ठ 69.65.-6 लक्ष्मीकुण्ड, डी 52/38
256. स्थाणु 69.7
कुरूक्षेत्र तालाब के समीप,

बी 2/247

257. सुकेश/सुकेश्वर 97.142.53.126 काशी गौशाला के समीप, पश्चिमी द्वार, एक कमरे में के 40/20
258. शुक्रेश 16.124, 126, 128; 17.128; 61.135; 73.61; 97.227-30.16.128; 100.58 कालिका गली, डी 8/30
259. सूक्ष्मेश/सूक्ष्मेश्वर 68.69.69.70 धूपचण्डी मंदिर के पीछे, विकटद्विज विनायक समीप, जे 12/134
260. शूलटंक 69.39 दशाश्वमेध घाट, डी 17/111
261. सुमुखेश 55.25-6 त्रिलोचन, पादोदक कूप, ए 3/87
262. शुष्केश्वर 97.253 असि घाट, बी 1/185, काशी आश्रम, शुक्रेश्वर
263. स्वप्नेश्वर 70.93 शिवाला, हनुमान मंदिर, बी 3/150
264. स्वर्गद्वारेश्वर 73.46; 94.29 स्वर्गद्वारी, ब्रह्मनाल, सी के 10/16
265.
स्वर्लीन

स्वर्लीनेश्वर

10.95; 69.24; 73.60.84.31
प्रह्लाद घाट, पंचाग्नि अखाड़ा,

ए 13/30

266. स्वर्णकेश 97.224
ढुण्ढिराज गली, दण्डपाणि में,

सी के 36/10

267. स्वयंभूलिंग 69.124 लक्ष्मीकुण्ड, महालक्ष्मीश्वर के समीप, डी 54/114
268. श्वेतेश 97.198
पंचपांडव मंदिर, ज्ञानवापी,

सी के 28/10

269. तक्षकेश्वर 66.11
औघड़नाथ की तकिया, द्वार के बाहर, के 64/113

270.
तारकेश

तारकेश्वर

53.120; 73.45; 81.41; 97.210; 100.39, 50, 93.10.89; 53.121; 61.119, 121; 69.153-4 (1) ज्ञानवापी, गौरीशंकर की मढ़ी में; (2) विश्वनाथ, गणपत राय खेमका मंदिर, सी के 35/17; (3) मणिकर्णिका घाट; (4) केदार घाट, गंगा तट के समीप
271. त्रिरेश (=प्राणवेश?) 97.236 ओंकारेश्वर, पठानी टोला, टीला, ए 33/23; अन्य सम्बद्ध अक़ारेश्वर व मकारेश्वर। ऊकारेश्वर और बिन्दु विलुप्त
273. तिलपर्णेश्वर 53.122; 100.65
दुर्गा मंदिर द्वारा दुर्गाकुण्ड,

बी 27/1

274. त्रिलोचन 100.27; 69.23; 73.2, 6, 32; 75.5, 11-2, 15, 25-9, 32, 38, 57, 64-8, 71; 76.14, 98, 153, 157, 162, 165-8
त्रिलोचन घाट, ऊपरी भाग,

ए 2/80

275. त्रिपुरान्तक 69.73-4; 97.232; 100.64 सिगरा (शिवगिरि/शिवपुरवा) टीला, डी 59/95
276. त्रिपुरेश 33.138; 69.91 त्रिपुरभैरवी मंदिर, डी 5/24
277.
त्रिसंध्येश

त्रिसंध्येश्वर

10.96; 100.88.61173, 175
(1) लाहौरी टोला, फूटे गणेश,

सी के 1/40

(2) ललिता घाट, डी 1/40

278. त्र्यम्बक 69.79 बड़ादेव, गोदौलिया, त्रिलोकीनाथ, डी 38/21
279. तुंग/तुगेश्वर 97.140.97.138 (1) वेदेश्वर के समीप, आदि केशव, ए 37/51; (2) धन्वन्तरीश्वर नाम से, वृद्धकाल मंदिर में, के 52/39
280. त्वष्ट्रीश 97.189 विश्वकर्मेश्वर रूप में, बृहस्पतीश्वर मंदिर, सी के 7/133
281. उद्दालकेश्वर 70.78; 97.83
(1) लोलार्क कुण्ड, बी 2/20

(2) राजमंदिर, हनुमान मंदिर,

के 20/159

282. उग्र 69.97-8 लोलार्क कुण्ड
283. उग्रेश्वर 97.113
लक्ष्मीकुण्ड, लक्ष्मी के समीप,

डी 52/40

284. उपशान्तशिव 10.96; 73.61; 97.49; 100.56
अग्नीश्वर घाट, पटनी टोला,

सी के 2/4

285. ऊर्ध्ववरेतस् 69.63-4 फुलवरिया-मंडुवाडीह, कुष्मांड विनायक में
286. उर्वशीश 100.63 औसानगंज, गोलाबाग, जे 56/108, पीपल के समीप
287. उटजेश्वर 65.86 गोला दीनानाथ में
288. उतथ्यवामदेवेश 97.202
संकठा घाट, सप्तर्षि मंदिर,

सी के 7/161

289. वागीश्वर 67.168 जैतपुरा, वागीश्वरी मंदिर में, जे 6/33
290. वैद्यनाथ 21.126; 97.236; 100.82 वैजनत्था, कमच्छा, बी 37/1
291. वैद्येश्वर 97.138 कोदई की चौकी, डी 50/20 ए
292. वैरोचनेश्वर 33.140; 61.184; 97.37 सीमा विनायक के समीप, सिद्धेश्वरी, गली में दीवार के समीप
293. वाल्मीकेश्वर 75.82
(1) मलदहिया, बाल्मीकि टीला,

सी के 21/14, जीर्णवस्था में समाप्त; (2) भेलूपुर, नीलकण्ठ, विशाल लिंग, बी 20/15;

(3) त्रिलोचनेश्वर में, ए 3/80 पीछे विशाल लिंग

294.
वामदेव लिंग/

वामदेवेश्वर

100.87.65.12
संकठा घाट, सप्तर्षि मंदिर,

सी के 7/161

295. वराहेश 10.94; 97.196
दशाश्वमेध घाट, राम मंदिर,

डी 17/111, जीर्णावस्था में

296. वरुणेश 10.94; 12.97-8, 100.97.206 (1) सिद्धि विनायक के ऊपरी भाग में, सी के 8/8; (2) करुणेश्वर, ढुण्ढिराज गली, सी के 36/10
297.
वशिष्ठ/वशिष्ठेश

वशिष्ठेश्वर

61.171.10.94; 61.166; 97.34.18.21; 61.170
संकठा घाट, सप्तर्षि मंदिर,

सी के 7/161

298.
व़ासुकीश

वासुकीश्वर

100.79.66.7
(1) आत्मावीरेश्वर के समीप, सिंधिया घाट, सी के 7/155;

(2) नारद घाट, नारदेश्वर के समक्ष, डी 25/11

299. वेदेश्वर 97.14-4 आदि केशव मे, ए 37/51
300. विभाण्डेश 97.256 तिलभाण्डेश्वर मंदिर में, बी 17/99, कुँए में
301.
विधि/विधीश

विधीश्वर

70.46.10.94; 97.243.70.46 अगस्त्येश्वर मंदिर, गोदौलिया के द0पू0 दिशा में, डी 36/11
302. विद्येश/विद्येश्वर 100.85.97.38 नीमवाली ब्रह्मपुरी, सी के ए 2/41
303. विघ्नेश 57.62 विघ्नराज विनायक मंदिर, चित्रकूट तालाब, धूपचण्डी, जे 12/32
304. विजयलिंग 69.61
विश्वनाथ मंदिर में निकुम्भ,

सी के 35/19

305. विजयेश 69.62 मंडुवाडीह, ककरमत्ता, शालकंट विनायक में
306.
विमलेश/

विमलेश्वर

97.73.69.24 नया महादेव मुहल्ला, नीलकण्ठ नाम से, ए 10/47
307. वीरभद्रेश 97.155.55.4; 100.94 (1) मध्यमेश्वर से दक्षिण, शिवाला, के 53/63; (2) ज्ञानवापी मस्ज़िद के उ0पू0, सी के 35/1; सम्प्रति जीर्णावस्था में
308.
वीररामेश्वर

84.69 राम घाट, के 24/10
309.
वीरेश/वीरेश्वर

10.103, 105, 109.112-3; 11.160; 73.34; 82.1; 83.54; 84.77; 86.109; 100.21

10.121; 17.62; 51.106; 61.185; 82.3; 111.23; 84.115; 97.39; 100.46, 85. आत्मावीरेश्वर नाम सी के 7/158
310.
विरूपाक्ष

विशालाक्षीश्वर

69.130; 97.226 विश्वनाथ परिसर में, विशाल लिंग, सी के 35/19
311. विशालाक्षीश 10.93
मीर घाट, विशालाक्षी मंदिर में,

सी के 3/85

312.
विश्वकर्मेश

विश्वकर्मेश्वर

86.10; 100.30.73; 84 86.1-2; 97.69; 100.46 बृहस्पतीश्वर में, सिद्धेश्वरी, सी के 7/133
313. विश्वलिंग 11.130 सिद्ध विनायक (मणिकर्णिका) के पीछे सी के 9/9
314. विश्ववसु 97.243 विश्वसुलिंग नाम से, अगस्त्येश्वर मंदिर में, सी के 36/11
315. विश्वेदेवेश्वर 97.154-5 मध्यमेश्वर से दक्षिण, के 53/63
316.

का अन्य नाम

विश्वेश

विश्वेश्वर

विश्वनाथ

9.52; 13.163; 17.128; 21.113; 33.17; 35.51; 38.107; 42.43; 48.55; 51.101; 53.28; 55.20; 61.145; 69.74; 75.54; 95.41; 96.5-6; 97.225; 100.33, 47, 77, 102, 104.3.86-7, 89, 19; 10.93; 11.119- 121; 21.42, 109- 10, 123, 127; 22.37; 26.130-2; 32.126; 34.36, 66; 49.15; 73.35; 74.46; 97.124; 19.15, 42; 96.97.3.26-7; 5.31; 61.113; 100.97 ज्ञानवापी, विश्वनाथ मंदिर, सी के 35/19, (विश्वनाथ)
317.
वृद्धकालेश

वृद्धकालेश्वर

10.86; 55.9; 61.24.24.72-3, 80-1; 67.180; 73.46; 97.124
मृत्युंजय मंदिर, वृद्धकाल

के 52/39

318.
वृक्षभध्वज

वृषध्वज

70.74; 73.60; 100.56 * 62.85 कपिलेश्वर, कपिलधारा, पँचक्रोशी मार्ग, वरणा पार
319. वृषभेश्वर 66.19; 97.25 वृषेश्वर, गोरखनाथ टीला, मैदागिन, के 58/75
320.
व्याघेश्वर/

व्याघेश/

व्याघेश्वर/

व्याघलिंग

65.8283. * 65.75, 85-6; 100.24, 59. 10.94; 97.165.73.61; 97.169 सप्तसागर, भूतभैरव, के 63/16
321.
व्यासेश/

व्यासेश्वर

10.94; 97.143, 145.53.37; 95.68, 71-4; 97.178
(1) कर्णघण्टा, व्यासकूप,

के 60/67;

(2) विश्वनाथ मंदिर को भीतरी प्रांगण, उत्तर में, सी के 35/19; (3) व्यासनगर (व्यासपुरी), साहूपुरी, रामनगर

322. याज्ञवल्क्येश 97.34
संकठा मंदिर के समीप,

सी के 7/159; सीमा तथा सेना विनायक के मध्य

323. यमेश/यमेश्वर 51.106, 108, 110.51.107, 115 यम घाट, संकठा घाट के समीप, तट पर
324. यमुनेश 10.93; 75.10 त्रिलोचन मंदिर, ए 2/80

-डॉ मुकेश ओझा
।।मनुर्भव।।
नोट :    काशीखण्डोक्त 524 शिवलिंगों की सूची में 200 अज्ञात है, जिसकी सूची परिशिष्ट 4 में दी गई है अर्थात् 324 शिव लिंग अस्तित्व में है।

*साभार – प्रो० राणा पी०बी० सिंह

संस्कृत में " लट् , लिट् , लुट् , लृट् , लेट् , लोट् , लङ् , लिङ् , लुङ् , लृङ् "– ये दस लकार होते हैं।

संस्कृत में " लट् , लिट् , लुट् , लृट् , लेट् , लोट् , लङ् , लिङ् , लुङ् , लृङ् " – ये दस लकार होते हैं।

•• वास्तव में ये दस प्रत्यय हैं जो धातुओं में जोड़े जाते हैं। इन दसों प्रत्ययों के प्रारम्भ में " ल " है

इसलिए इन्हें 'लकार' कहते हैं (ठीक वैसे ही जैसे ॐकार, अकार, इकार, उकार इत्यादि)।

•• इन दस लकारों में से
~~~~ आरम्भ के छः लकारों के अन्त में 'ट्' है-
लट् लिट् लुट् आदि इसलिए ये " टित् " लकार कहे जाते हैं और

~~~~ अन्त के चार लकार " ङित् " कहे जाते हैं क्योंकि उनके अन्त में 'ङ्' है।

•• व्याकरणशास्त्र में जब धातुओं से

पिबति, खादति आदि रूप सिद्ध किये जाते हैं

तब इन " टित् " और " ङित् " शब्दों का बहुत बार प्रयोग किया जाता है।

•• इन लकारों का प्रयोग विभिन्न कालों की क्रिया बताने के लिए किया जाता है।

जैसे –

••••• जब वर्तमान काल की क्रिया बतानी हो तो धातु से " लट् " लकार जोड़ देंगे,

•••••• परोक्ष भूतकाल की क्रिया बतानी हो तो " लिट् " लकार जोड़ेंगे।

(१) लट् लकार ( वर्तमान काल )
~~~~ जैसे :-
श्यामः खेलति । = श्याम खेलता है।

(२) लिट् लकार ( अनद्यतन परोक्ष भूतकाल ) जो अपने साथ न घटित होकर किसी इतिहास का विषय हो ।
~~~~ जैसे :--
रामः रावणं ममार । = राम ने रावण को मारा ।

(३) लुट् लकार ( अनद्यतन भविष्यत् काल ) जो आज का दिन छोड़ कर आगे होने वाला हो ।
~~~~ जैसे :--
सः परश्वः विद्यालयं गन्ता । = वह परसों विद्यालय जायेगा ।

(४) लृट् लकार ( सामान्य भविष्य काल ) जो आने वाले किसी भी समय में होने वाला हो ।
~~~~ जैसे :---
रामः इदं कार्यं करिष्यति । = राम यह कार्य करेगा।

(५) लेट् लकार ( यह लकार केवल वेद में प्रयोग होता है, ईश्वर के लिए, क्योंकि वह किसी काल में बंधा नहीं है। )

(६) लोट् लकार ( ये लकार आज्ञा, अनुमति लेना, प्रशंसा करना, प्रार्थना आदि में प्रयोग होता है । )
~~~~ जैसे :-
• भवान् गच्छतु । = आप जाइए । ;
• सः क्रीडतु । = वह खेले । ;
• त्वं खाद । = तुम खाओ । ;
• किमहं वदानि । = क्या मैं बोलूँ ?

(७) लङ् लकार ( अनद्यतन भूत काल ) आज का दिन छोड़ कर किसी अन्य दिन जो हुआ हो ।
~~~~ जैसे :-
भवान् तस्मिन् दिने भोजनमपचत् । = आपने उस दिन भोजन पकाया था।

(८) लिङ् लकार = इसमें दो प्रकार के लकार होते हैं :--

(क) आशीर्लिङ् ( किसी को आशीर्वाद देना हो । )
~~~~ जैसे :-
• भवान् जीव्यात् । = आप जीओ । ;
• त्वं सुखी भूयात् । = तुम सुखी रहो।

(ख) विधिलिङ् ( किसी को विधि बतानी हो ।)
~~~~ जैसे :-
• भवान् पठेत् । = आपको पढ़ना चाहिए। ;
• अहं गच्छेयम् । = मुझे जाना चाहिए।

(९) लुङ् लकार ( सामान्य भूत काल ) जो कभी भी बीत चुका हो ।
~~~~ जैसे :-
अहं भोजनम् अभक्षत् । = मैंने खाना खाया।

(१०) लृङ् लकार ( ऐसा भूत काल जिसका प्रभाव वर्तमान तक हो) जब किसी क्रिया की असिद्धि हो गई हो ।
~~~~ जैसे :-
यदि त्वम् अपठिष्यत् तर्हि विद्वान् भवितुम् अर्हिष्यत् । = यदि तू पढ़ता तो विद्वान् बनता।

इस बात को स्मरण रखने के लिए कि
•••• धातु से कब किस लकार को जोड़ेंगे, निम्नलिखित श्लोक स्मरण कर लीजिए-

लट् वर्तमाने लेट् वेदे भूते लुङ् लङ् लिटस्‍तथा ।

विध्‍याशिषोर्लिङ् लोटौ च लुट् लृट् लृङ् च भविष्‍यति ॥

अर्थात्

~ लट् लकार वर्तमान काल में,

~ लेट् लकार केवल वेद में,

~ भूतकाल में लुङ् लङ् और लिट्,

~ विधि और आशीर्वाद में लिङ् और लोट् लकार तथा

~ भविष्यत् काल में लुट् लृट् और लृङ् लकारों का प्रयोग किया जाता है।)

******************************
लकारों के नाम याद रखने की विधि-
******************************
" ल् " में प्रत्याहार के क्रम से ( अ इ उ ऋ ए ओ ) जोड़ दें

और क्रमानुसार ( ट् ) जोड़ते जाऐं ।

फिर बाद में ( ङ् ) जोड़ते जाऐं जब तक कि दश लकार पूरे न हो जाएँ ।

जैसे

•• लट् लिट् लुट् लृट् लेट् लोट्

•• लङ् लिङ् लुङ् लृङ् ॥

इनमें लेट् लकार केवल वेद में प्रयुक्त होता है । लोक के लिए नौ लकार शेष रहे ।

अब इन नौ लकारों में लिङ् के दो भेद होते हैं :--
आशीर्लिङ् और विधिलिङ् ।

इस प्रकार लोक में दश के दश लकार हो गए ।

संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्

संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।
देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते।।
अर्थात- हम सब एक साथ चलें; एक साथ बोलें; हमारे मन एक हों। प्राचीन समय में देवताओं का ऐसा आचरण रहा इसी कारण वे वंदनीय हैं।

ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्वि नावधीतमस्तु। मा विद्विषावहै।
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:।।

अर्थ :
हे परमात्मन् ! आप हम दोनों गुरू और शिष्य की साथ- साथ रक्षा करें , हम दोनों का पालन-पोषण करें, हम दोनों साथ-साथ शक्ति प्राप्त करें,हमारी प्राप्त की हुई विद्या तेजप्रद हो, हम परस्पर द्वेष न करें, परस्पर स्नेह करें।

शब्दार्थ :
ॐ = परमात्मा-परमेश्वर-परमब्रम्ह ;
नौ = हम दोनों (गुरू और शिष्य) को ;
सह = साथ-साथ ;
भुनक्तु = पोषित हों ; सह =साथ-साथ ;
वीर्यं = शक्ति को ;
करवावहै = प्राप्त करें ;
नौ = हम दोनों की ;
अवधीतम् =पढी हुई विद्या ;
तेजस्वि = तेजोमयी ; अस्तु = हो ;
मा विद्विषावहै = (हम दोनों) परस्पर द्वेष न करें।

Tuesday, December 24, 2019

उत्तम संतान प्राप्त कैसे हो??

🤔असंख्य असंवेदनशील लोगों को देखकर लगता है, सायद संवेदनशील लोग अब जन्म नहीं लेते।
🤔आजकल वृद्धाश्रमों और ओल्ड-एज होम के बढतीं संख्याओ को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि आजकल के बच्चे कितने निर्दयी असंस्कारी और असंवेदनशील हो गये है कि अपने माता पिता तक को त्याग रहे हैं? 
🤔समाज मे बढते भ्रष्टाचार को देखकर लगता है कि सायद प्रकृति कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार लोगों को जन्म देना बन्द कर दिया है??
🤔समाज मे नित्य प्रति हो रहे बालात्कार और अभद्रता को देखकर लगता है, अब सभ्य लोगों का उत्पति बन्द हो गया है
🤔 प्रतिदिन मांसाहारी लोगों कि संख्या मे वृद्धि और लोगो कि निर्दयता पूर्ण कार्यो को देखकर लगता है, अब इस धरा पर दयावान पुरुष जन्म नहीं लेते।

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👉यह धरणी अपने 

👉गर्भ संस्कार के द्वारा हम श्रेष्ठ मानव निर्मित कर सकते हैं।
जैसे पतञ्ज्ली, प्रहलाद, अभिमन्यु,शुकदेवजी,


Monday, December 23, 2019

26 दिसम्बर 2019 सूर्य ग्रहण का फल

26 दिसम्बर 2019
सूर्य ग्रहण
स्पर्श - 8बजकर21मिनट पर
मध्य - 9बजकर 40 मिनट पर
मोक्ष - 11बजकर14 मिनट पर दिन मे।

ग्रहण का सुतक 25दिसबर 2019 को रात्रि 8बजकर 21 मिनट से लग जाएगा।

#ग्रहण फल
बारह राशियों के लिये ग्रहण देखने पर क्या फल प्राप्त होगा?
यथा-
मेष- माननाश
वृष- मृत्युतुल्यकष्ट
मिथुन - स्त्रीपीडा
कर्क - सौख्य
सिंह - चिंता
कन्या - व्यथा
तुला - श्रीप्राप्ति
वृश्चिक - क्षति
धनु - घात
मकर - हानि
कुम्भ - लाभ
मीन - सुख

ग्रहण काल मे सभी लोगों को भगवन नाम संकिर्तन करना चाहिये या किसी मंत्र का जप करना चाहिये।
ग्रहणकाल का समय काशी के अनुसार है। आप अपने स्थान का संसोधन कर सकते हैं।
-डाॅ. मुकेश ओझा
ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार

Saturday, December 21, 2019

गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र

गजेन्द्र मोक्ष

श्रीमद्भागवतान्तर्गत
गजेन्द्र कृत भगवान का स्तवन

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श्री शुक उवाच – श्री शुकदेव जी ने कहा

एवं व्यवसितो बुद्ध्या समाधाय मनो हृदि ।
जजाप परमं जाप्यं प्राग्जन्मन्यनुशिक्षितम ॥१॥

 

बुद्धि के द्वारा पिछले अध्याय में वर्णित रीति से निश्चय करके तथा मन को हृदय देश में स्थिर करके वह गजराज अपने पूर्व जन्म में सीखकर कण्ठस्थ किये हुए सर्वश्रेष्ठ एवं बार बार दोहराने योग्य निम्नलिखित स्तोत्र का मन ही मन पाठ करने लगा ॥१॥

 

गजेन्द्र उवाच गजराज ने (मन ही मन) कहा –

 

ऊं नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम ।
पुरुषायादिबीजाय परेशायाभिधीमहि ॥१॥

 

जिनके प्रवेश करने पर (जिनकी चेतना को पाकर) ये जड शरीर और मन आदि भी चेतन बन जाते हैं (चेतन की भांति व्यवहार करने लगते हैं), ‘ओम’ शब्द के द्वारा लक्षित तथा सम्पूर्ण शरीर में प्रकृति एवं पुरुष रूप से प्रविष्ट हुए उन सर्व समर्थ परमेश्वर को हम मन ही मन नमन करते हैं ॥२॥

यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं य इदं स्वयं ।
योस्मात्परस्माच्च परस्तं प्रपद्ये स्वयम्भुवम ॥३॥

 

जिनके सहारे यह विश्व टिका है, जिनसे यह निकला है , जिन्होने इसकी रचना की है और जो स्वयं ही इसके रूप में प्रकट हैं – फिर भी जो इस दृश्य जगत से एवं इसकी कारणभूता प्रकृति से सर्वथा परे (विलक्षण ) एवं श्रेष्ठ हैं – उन अपने आप – बिना किसी कारण के – बने हुए भगवान की मैं शरण लेता हूं ॥३॥

 

यः स्वात्मनीदं निजमाययार्पितं
क्कचिद्विभातं क्क च तत्तिरोहितम ।

 

अविद्धदृक साक्ष्युभयं तदीक्षते
स आत्ममूलोवतु मां परात्परः ॥४॥

 

अपने संकल्प शक्ति के द्वार अपने ही स्वरूप में रचे हुए और इसीलिये सृष्टिकाल में प्रकट और प्रलयकाल में उसी प्रकार अप्रकट रहने वाले इस शास्त्र प्रसिद्ध कार्य कारण रूप जगत को जो अकुण्ठित दृष्टि होने के कारण साक्षी रूप से देखते रहते हैं उनसे लिप्त नही होते, वे चक्षु आदि प्रकाशकों के भी परम प्रकाशक प्रभु मेरी रक्षा करें ॥४॥

कालेन पंचत्वमितेषु कृत्स्नशो
लोकेषु पालेषु च सर्व हेतुषु ।

 

तमस्तदाsssसीद गहनं गभीरं
यस्तस्य पारेsभिविराजते विभुः ॥५॥

 

समय के प्रवाह से सम्पूर्ण लोकों के एवं ब्रह्मादि लोकपालों के पंचभूत में प्रवेश कर जाने पर तथा पंचभूतों से लेकर महत्वपर्यंत सम्पूर्ण कारणों के उनकी परमकरुणारूप प्रकृति में लीन हो जाने पर उस समय दुर्ज्ञेय तथा अपार अंधकाररूप प्रकृति ही बच रही थी। उस अंधकार के परे अपने परम धाम में जो सर्वव्यापक भगवान सब ओर प्रकाशित रहते हैं वे प्रभु मेरी रक्षा करें ॥५॥

 

न यस्य देवा ऋषयः पदं विदु-
र्जन्तुः पुनः कोsर्हति गन्तुमीरितुम ।

 

यथा नटस्याकृतिभिर्विचेष्टतो
दुरत्ययानुक्रमणः स मावतु ॥६॥

 

भिन्न भिन्न रूपों में नाट्य करने वाले अभिनेता के वास्तविक स्वरूप को जिस प्रकार साधारण दर्शक नही जान पाते , उसी प्रकार सत्त्व प्रधान देवता तथा ऋषि भी जिनके स्वरूप को नही जानते , फिर दूसरा साधारण जीव तो कौन जान अथवा वर्णन कर सकता है – वे दुर्गम चरित्र वाले प्रभु मेरी रक्षा करें ॥६॥

 

दिदृक्षवो यस्य पदं सुमंगलम
विमुक्त संगा मुनयः सुसाधवः ।

 

चरन्त्यलोकव्रतमव्रणं वने
भूतत्मभूता सुहृदः स मे गतिः ॥७॥

 

आसक्ति से सर्वदा छूटे हुए , सम्पूर्ण प्राणियों में आत्मबुद्धि रखने वाले , सबके अकारण हितू एवं अतिशय साधु स्वभाव मुनिगण जिनके परम मंगलमय स्वरूप का साक्षात्कार करने की इच्छा से वन में रह कर अखण्ड ब्रह्मचार्य आदि अलौकिक व्रतों का पालन करते हैं , वे प्रभु ही मेरी गति हैं ॥७॥

 

न विद्यते यस्य न जन्म कर्म वा
न नाम रूपे गुणदोष एव वा ।

 

तथापि लोकाप्ययाम्भवाय यः
स्वमायया तान्युलाकमृच्छति ॥८॥

 

जिनका हमारी तरह कर्मवश ना तो जन्म होता है और न जिनके द्वारा अहंकार प्रेरित कर्म ही होते हैं, जिनके निर्गुण स्वरूप का न तो कोई नाम है न रूप ही, फिर भी समयानुसार जगत की सृष्टि एवं प्रलय (संहार) के लिये स्वेच्छा से जन्म आदि को स्वीकार करते हैं ॥८॥

 

तस्मै नमः परेशाय ब्राह्मणेsनन्तशक्तये ।
अरूपायोरुरूपाय नम आश्चर्य कर्मणे ॥९॥

 

उन अन्नतशक्ति संपन्न परं ब्रह्म परमेश्वर को नमस्कार है । उन प्राकृत आकाररहित एवं अनेको आकारवाले अद्भुतकर्मा भगवान को बारंबार नमस्कार है ॥९॥

नम आत्म प्रदीपाय साक्षिणे परमात्मने ।
नमो गिरां विदूराय मनसश्चेतसामपि ॥१०॥

 

स्वयं प्रकाश एवं सबके साक्षी परमात्मा को नमस्कार है । उन प्रभु को जो नम, वाणी एवं चित्तवृत्तियों से भी सर्वथा परे हैं, बार बार नमस्कार है ॥१०॥

 

सत्त्वेन प्रतिलभ्याय नैष्कर्म्येण विपश्चिता ।
नमः केवल्यनाथाय निर्वाणसुखसंविदे ॥११॥

 

विवेकी पुरुष के द्वारा सत्त्वगुणविशिष्ट निवृत्तिधर्म के आचरण से प्राप्त होने योग्य, मोक्ष सुख की अनुभूति रूप प्रभु को नमस्कार है ॥११॥

 

नमः शान्ताय घोराय मूढाय गुण धर्मिणे ।
निर्विशेषाय साम्याय नमो ज्ञानघनाय च ॥१२॥

 

सत्त्वगुण को स्वीकार करके शान्त , रजोगुण को स्वीकर करके घोर एवं तमोगुण को स्वीकार करके मूढ से प्रतीत होने वाले, भेद रहित, अतएव सदा समभाव से स्थित ज्ञानघन प्रभु को नमस्कार है ॥१२॥

 

क्षेत्रज्ञाय नमस्तुभ्यं सर्वाध्यक्षाय साक्षिणे ।
पुरुषायात्ममूलय मूलप्रकृतये नमः ॥१३॥

शरीर इन्द्रीय आदि के समुदाय रूप सम्पूर्ण पिण्डों के ज्ञाता, सबके स्वामी एवं साक्षी रूप आपको नमस्कार है । सबके अन्तर्यामी , प्रकृति के भी परम कारण, किन्तु स्वयं कारण रहित प्रभु को नमस्कार है ॥१३॥

सर्वेन्द्रियगुणद्रष्ट्रे सर्वप्रत्ययहेतवे ।
असताच्छाययोक्ताय सदाभासय ते नमः ॥१४॥

 

सम्पूर्ण इन्द्रियों एवं उनके विषयों के ज्ञाता, समस्त प्रतीतियों के कारण रूप, सम्पूर्ण जड-प्रपंच एवं सबकी मूलभूता अविद्या के द्वारा सूचित होने वाले तथा सम्पूर्ण विषयों में अविद्यारूप से भासने वाले आपको नमस्कार है ॥१४॥

 

नमो नमस्ते खिल कारणाय
निष्कारणायद्भुत कारणाय ।

 

सर्वागमान्मायमहार्णवाय
नमोपवर्गाय परायणाय ॥१५॥

 

सबके कारण किंतु स्वयं कारण रहित तथा कारण होने पर भी परिणाम रहित होने के कारण, अन्य कारणों से विलक्षण कारण आपको बारम्बार नमस्कार है । सम्पूर्ण वेदों एवं शास्त्रों के परम तात्पर्य , मोक्षरूप एवं श्रेष्ठ पुरुषों की परम गति भगवान को नमस्कार है ॥१५॥ ॥

 

गुणारणिच्छन्न चिदूष्मपाय
तत्क्षोभविस्फूर्जित मान्साय ।

 

नैष्कर्म्यभावेन विवर्जितागम-
स्वयंप्रकाशाय नमस्करोमि ॥१६॥

 

जो त्रिगुणरूप काष्ठों में छिपे हुए ज्ञानरूप अग्नि हैं, उक्त गुणों में हलचल होने पर जिनके मन में सृष्टि रचने की बाह्य वृत्ति जागृत हो उठती है तथा आत्म तत्त्व की भावना के द्वारा विधि निषेध रूप शास्त्र से ऊपर उठे हुए ज्ञानी महात्माओं में जो स्वयं प्रकाशित हो रहे हैं उन प्रभु को मैं नमस्कार करता हूँ ॥१।६॥

 

मादृक्प्रपन्नपशुपाशविमोक्षणाय
मुक्ताय भूरिकरुणाय नमोsलयाय ।

 

स्वांशेन सर्वतनुभृन्मनसि प्रतीत-
प्रत्यग्दृशे भगवते बृहते नमस्ते ॥१७॥

 

मुझ जैसे शरणागत पशुतुल्य (अविद्याग्रस्त) जीवों की अविद्यारूप फाँसी को सदा के लिये पूर्णरूप से काट देने वाले अत्याधिक दयालू एवं दया करने में कभी आलस्य ना करने वाले नित्यमुक्त प्रभु को नमस्कार है । अपने अंश से संपूर्ण जीवों के मन में अन्तर्यामी रूप से प्रकट रहने वाले सर्व नियन्ता अनन्त परमात्मा आप को नमस्कार है ॥१७॥

 

आत्मात्मजाप्तगृहवित्तजनेषु सक्तै-
र्दुष्प्रापणाय गुणसंगविवर्जिताय ।

 

मुक्तात्मभिः स्वहृदये परिभाविताय
ज्ञानात्मने भगवते नम ईश्वराय ॥१८॥

 

शरीर, पुत्र, मित्र, घर, संपंत्ती एवं कुटुंबियों में आसक्त लोगों के द्वारा कठिनता से प्राप्त होने वाले तथा मुक्त पुरुषों के द्वारा अपने हृदय में निरन्तर चिन्तित ज्ञानस्वरूप , सर्वसमर्थ भगवान को नमस्कार है ॥१८॥

 

यं धर्मकामार्थविमुक्तिकामा
भजन्त इष्टां गतिमाप्नुवन्ति ।

 

किं त्वाशिषो रात्यपि देहमव्ययं
करोतु मेदभ्रदयो विमोक्षणम ॥१९॥

 

जिन्हे धर्म, अभिलाषित भोग, धन तथा मोक्ष की कामना से भजने वाले लोग अपनी मनचाही गति पा लेते हैं अपितु जो उन्हे अन्य प्रकार के अयाचित भोग एवं अविनाशी पार्षद शरीर भी देते हैं वे अतिशय दयालु प्रभु मुझे इस विपत्ती से सदा के लिये उबार लें ॥१९॥

 

एकान्तिनो यस्य न कंचनार्थ
वांछन्ति ये वै भगवत्प्रपन्नाः ।

 

अत्यद्भुतं तच्चरितं सुमंगलं
गायन्त आनन्न्द समुद्रमग्नाः ॥२०॥

 

जिनके अनन्य भक्त -जो वस्तुतः एकमात्र उन भगवान के ही शरण है-धर्म , अर्थ आदि किसी भी पदार्थ को नही चाह्ते, अपितु उन्ही के परम मंगलमय एवं अत्यन्त विलक्षण चरित्रों का गान करते हुए आनन्द के समुद्र में गोते लगाते रहते हैं ॥२०॥

 

तमक्षरं ब्रह्म परं परेश-
मव्यक्तमाध्यात्मिकयोगगम्यम ।

 

अतीन्द्रियं सूक्षममिवातिदूर-
मनन्तमाद्यं परिपूर्णमीडे ॥२१॥

 

उन अविनाशी, सर्वव्यापक, सर्वश्रेष्ठ, ब्रह्मादि के भी नियामक, अभक्तों के लिये प्रकट होने पर भी भक्तियोग द्वारा प्राप्त करने योग्य, अत्यन्त निकट होने पर भी माया के आवरण के कारण अत्यन्त दूर प्रतीत होने वाले , इन्द्रियों के द्वारा अगम्य तथा अत्यन्त दुर्विज्ञेय, अन्तरहित किंतु सबके आदिकारण एवं सब ओर से परिपूर्ण उन भगवान की मैं स्तुति करता हूँ ॥२१॥

 

यस्य ब्रह्मादयो देवा वेदा लोकाश्चराचराः ।
नामरूपविभेदेन फल्ग्व्या च कलया कृताः ॥२२॥

 

ब्रह्मादि समस्त देवता, चारों वेद तथा संपूर्ण चराचर जीव नाम और आकृति भेद से जिनके अत्यन्त क्षुद्र अंश के द्वारा रचे गये हैं ॥२२॥

 

यथार्चिषोग्नेः सवितुर्गभस्तयो
निर्यान्ति संयान्त्यसकृत स्वरोचिषः ।

 

तथा यतोयं गुणसंप्रवाहो
बुद्धिर्मनः खानि शरीरसर्गाः ॥२३॥

 

जिस प्रकार प्रज्ज्वलित अग्नि से लपटें तथा सूर्य से किरणें बार बार निकलती है और पुनः अपने कारण मे लीन हो जाती है उसी प्रकार बुद्धि, मन, इन्द्रियाँ और नाना योनियों के शरीर – यह गुणमय प्रपंच जिन स्वयंप्रकाश परमात्मा से प्रकट होता है और पुनः उन्ही में लीन हो जात है ॥२३॥

 

स वै न देवासुरमर्त्यतिर्यंग
न स्त्री न षण्डो न पुमान न जन्तुः ।

 

नायं गुणः कर्म न सन्न चासन
निषेधशेषो जयतादशेषः ॥२४॥

वे भगवान न तो देवता हैं न असुर, न मनुष्य हैं न तिर्यक (मनुष्य से नीची – पशु , पक्षी आदि किसी) योनि के प्राणी है । न वे स्त्री हैं न पुरुष और नपुंसक ही हैं । न वे ऐसे कोई जीव हैं, जिनका इन तीनों ही श्रेणियों में समावेश हो सके । न वे गुण हैं न कर्म, न कार्य हैं न तो कारण ही । सबका निषेध हो जाने पर जो कुछ बच रहता है, वही उनका स्वरूप है और वे ही सब कुछ है । ऐसे भगवान मेरे उद्धार के लिये आविर्भूत हों ॥२४॥

 

जिजीविषे नाहमिहामुया कि-
मन्तर्बहिश्चावृतयेभयोन्या ।

 

इच्छामि कालेन न यस्य विप्लव-
स्तस्यात्मलोकावरणस्य मोक्षम ॥२५॥

 

मैं इस ग्राह के चंगुल से छूट कर जीवित नही रहना चाहता; क्योंकि भीतर और बाहर – सब ओर से अज्ञान से ढके हुए इस हाथी के शरीर से मुझे क्या लेना है । मैं तो आत्मा के प्रकाश को ढक देने वाले उस अज्ञान की निवृत्ति चाहता हूँ, जिसका कालक्रम से अपने आप नाश नही होता , अपितु भगवान की दया से अथवा ज्ञान के उदय से होता है ॥२५॥

 

सोsहं विश्वसृजं विश्वमविश्वं विश्ववेदसम ।
विश्वात्मानमजं ब्रह्म प्रणतोस्मि परं पदम ॥२६॥

 

इस प्रकार मोक्ष का अभिलाषी मैं विश्व के रचियता, स्वयं विश्व के रूप में प्रकट तथा विश्व से सर्वथा परे, विश्व को खिलौना बनाकर खेलने वाले, विश्व में आत्मरूप से व्याप्त , अजन्मा, सर्वव्यापक एवं प्राप्त्य वस्तुओं में सर्वश्रेष्ठ श्री भगवान को केवल प्रणाम ही करता हूं, उनकी शरण में हूँ ॥२६॥

 

योगरन्धित कर्माणो हृदि योगविभाविते ।
योगिनो यं प्रपश्यन्ति योगेशं तं नतोsस्म्यहम ॥२७॥

 

जिन्होने भगवद्भक्ति रूप योग के द्वारा कर्मों को जला डाला है, वे योगी लोग उसी योग के द्वारा शुद्ध किये हुए अपने हृदय में जिन्हे प्रकट हुआ देखते हैं उन योगेश्वर भगवान को मैं नमस्कार करता हूँ ॥२७॥

 

नमो नमस्तुभ्यमसह्यवेग-
शक्तित्रयायाखिलधीगुणाय ।

 

प्रपन्नपालाय दुरन्तशक्तये
कदिन्द्रियाणामनवाप्यवर्त्मने ॥२८॥

 

जिनकी त्रिगुणात्मक (सत्त्व-रज-तमरूप ) शक्तियों का रागरूप वेग असह्य है, जो सम्पूर्ण इन्द्रियों के विषयरूप में प्रतीत हो रहे हैं, तथापि जिनकी इन्द्रियाँ विषयों में ही रची पची रहती हैं-ऐसे लोगों को जिनका मार्ग भी मिलना असंभव है, उन शरणागतरक्षक एवं अपारशक्तिशाली आपको बार बार नमस्कार है ॥२८॥

 

नायं वेद स्वमात्मानं यच्छ्क्त्याहंधिया हतम ।
तं दुरत्ययमाहात्म्यं भगवन्तमितोsस्म्यहम ॥२९॥

 

जिनकी अविद्या नामक शक्ति के कार्यरूप अहंकार से ढंके हुए अपने स्वरूप को यह जीव जान नही पाता, उन अपार महिमा वाले भगवान की मैं शरण आया हूँ ॥२९॥

 

श्री शुकदेव उवाच – श्री शुकदेवजी ने कहा –

 

एवं गजेन्द्रमुपवर्णितनिर्विशेषं
ब्रह्मादयो विविधलिंगभिदाभिमानाः ।

 

नैते यदोपससृपुर्निखिलात्मकत्वात
तत्राखिलामर्मयो हरिराविरासीत ॥३०॥

 

जिसने पूर्वोक्त प्रकार से भगवान के भेदरहित निराकार स्वरूप का वर्णन किया था , उस गजराज के समीप जब ब्रह्मा आदि कोई भी देवता नही आये, जो भिन्न भिन्न प्रकार के विशिष्ट विग्रहों को ही अपना स्वरूप मानते हैं, तब सक्षात श्री हरि- जो सबके आत्मा होने के कारण सर्वदेवस्वरूप हैं-वहाँ प्रकट हो गये ॥३०॥

 

तं तद्वदार्त्तमुपलभ्य जगन्निवासः
स्तोत्रं निशम्य दिविजैः सह संस्तुवद्भि : ।

 

छन्दोमयेन गरुडेन समुह्यमान –
श्चक्रायुधोsभ्यगमदाशु यतो गजेन्द्रः ॥३१॥

 

उपर्युक्त गजराज को उस प्रकार दुःखी देख कर तथा उसके द्वारा पढी हुई स्तुति को सुन कर सुदर्शनचक्रधारी जगदाधार भगवान इच्छानुरूप वेग वाले गरुड जी की पीठ पर सवार होकर स्तवन करते हुए देवताओं के साथ तत्काल उस स्थान अपर पहुँच गये जहाँ वह हाथी था ।

 

सोsन्तस्सरस्युरुबलेन गृहीत आर्त्तो
दृष्ट्वा गरुत्मति हरि ख उपात्तचक्रम ।

 

उत्क्षिप्य साम्बुजकरं गिरमाह कृच्छा –
न्नारायण्खिलगुरो भगवान नम्स्ते ॥३२॥

 

सरोवर के भीतर महाबली ग्राह के द्वारा पकडे जाकर दुःखी हुए उस हाथी ने आकाश में गरुड की पीठ पर सवार चक्र उठाये हुए भगवान श्री हरि को देखकर अपनी सूँड को -जिसमें उसने (पूजा के लिये) कमल का एक फूल ले रक्खा था-ऊपर उठाया और बडी ही कठिनाई से “सर्वपूज्य भगवान नारायण आपको प्रणाम है” यह वाक्य कहा ॥३२॥

 

तं वीक्ष्य पीडितमजः सहसावतीर्य
सग्राहमाशु सरसः कृपयोज्जहार ।

 

ग्राहाद विपाटितमुखादरिणा गजेन्द्रं
सम्पश्यतां हरिरमूमुचदुस्त्रियाणाम ॥३३॥

उसे पीडित देख कर अजन्मा श्री हरि एकाएक गरुड को छोडकर नीचे झील पर उतर आये । वे दया से प्रेरित हो ग्राहसहित उस गजराज को तत्काल झील से बाहर निकाल लाये और देवताओं के देखते देखते चक्र से मुँह चीर कर उसके चंगुल से हाथी को उबार लिया ॥३३॥