#इच्छाएँ जीवन को #निरस और #संकल्प जीवन को #सरस बनातीं है।
इच्छाएँ #घास की तरह स्वयं #पनपती रहतीं हैं। और #संकल्प #अन्न की भाँति #लगाने पर फलिभूत होतीं हैं। अतः इच्छाओं के गुलाम न बनों, संकल्प शक्ति के निर्माता बनों।
तुम स्वयं अपने सुख और दुःख के निर्माता हो। यदि इच्छाओं के वसीभूत हो, तो दुःख को वरण कर रहे हो, एवं यदि संकल्प को वरण कर रहे हो तो शास्वत सुख को।
अतः आज ही संकल्प करना सिखों।
मैं संकल्प सिखाता हूँ।
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इच्छाएँ किसी की पूरी नहीं होती-संकल्प किसी के अधूरे नहीं रहते।
-डॉ मुकेश ओझा
ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार
Monday, December 9, 2019
इच्छाओं का नहीं संकल्प का वरण करें।
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