प्रिय आत्मन!
बन्धुओं!
सोशल मीडिया पर अपने विचार साझा करें। व्यक्तिगत जानकारी जितना गुप्त रख सके उतना उचित है।
व्यक्तिगत जानकारी व्यक्तिगत रूप से प्राप्त करें या साझा करें।
• इससे बहुत सारी व्यक्तिगत जानकारीयाँ सार्वजनिक हो जातीं है।
• जिस जानकारी को किसी भी प्रकार से तोड़-मरोड़कर पेश किया जा सकता है।
• किसी भी जानकारी का स्वरूप बदलकर वह उकसावे वाली बनाई जा सकती है जिसका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं होता।
• आपकी प्राइवेसी पूर्णत: भंग हो जाती है। जिससे आपको ब्लेकमेल भी किया जा सकता है, या डराया धमकाया जा सकता है।
• फोटो या वीडियो की एडिटिंग करके भ्रम फैला सकते हैं, इस कार्य में मित्रों की व्यक्तिगत टिप्पणीयाँ मदद करतीं हैं।
• सायबर अपराध सोशल मीडिया से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या है। आपकी व्यक्तिगत जानकारी के आधार पर आपके नाम से अपराध किया जा सकता है।
#आपका
मुकेश ओझा
Monday, March 23, 2020
सोशल मीडिया में व्यक्तिगत जानकारी साझा न करें। क्यों?
Sunday, March 22, 2020
लॉक-डाउन के दिनों में अथवा अवकाश के दिनों में समय का सदुपयोग कैसे करें?
#लॉक_डाउन के दिनों में अथवा #अवकाश के दिनों में समय का सदुपयोग कैसे करें?
🌻अपने प्रत्येक कार्य को #साधना का अंग बनाएँ।
🌻घर में आपके साधना का क्रम क्या होना चाहिए?
👉दिन में 5 बार दश-दश के क्रम से प्राणायाम करें।
👉प्रातः एवं संध्या के समय २५ से ३० मिनट का भावातीत ध्यान करें।
👉जो मन्त्रों का जप कभी नहीं करते, वे जरूर कुछ देर भगवन्नाम मन्त्र का जप करें।
👉जो नित्य मन्त्र जप करते हैं वे भी मन्त्र जप का संख्या बढ़ा लें।
👉 मैत्री भावना का अभ्यास करें।
👉यदि सोने का मन करें तो विपस्ना का अभ्यास करते हुए सोएँ।
👉किसी भी कार्य को साक्षी भाव से करने का प्रयास करें ।
#मनुर्भव
-डॉ मुकेश ओझा
ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार
Saturday, March 7, 2020
परपरागत संस्कृत और समान्य संस्कृत मे अंतर को जाने
बन्धुओं!
संस्कृत बहुत विस्तृत है। अतः संस्कृत को दो भागों में विभक्त किया गया है।
1- परपरागत संस्कृत और 2- समान्य संस्कृत।
संस्कृत का सामान्य अध्ययन करने के लिए छात्र सामान्य संस्कृत पढ़ते हैं और संस्कृत से बी.ए., एम.ए. करते हैं।
👉
परन्तु यदि संस्कृत का विस्तृत ज्ञान चाहिये तो परंपरागत संस्कृत पढ़ना होता है। परंपरागत संस्कृत में स्नातक को शास्त्री तथा परास्नातक को आचार्य कहते है।
👉
सामान्य संस्कृत पढ़ने वाला अध्यापन के लिए सामान्य संस्कृत के पद पर नियुक्त होता है। 90% शैक्षणिक संस्थानों मे सामान्य संस्कृत का ही अध्ययन अध्यापन होता है।
👉परंपरागत संस्कृत पढ़ने वाला अध्यापन करने के लिए परंपरागत पद पर नियुक्त होता है।मात्र 10% शैक्षणिक संस्थानों में ही परंपरागत संस्कृत का अध्ययन अध्यापन होता है।
परंपरागत संस्कृत लगभग लुप्त होने के कगार पर हैं।
सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्व विद्यालय वाराणसी में सामान्य संस्कृत के छात्र सत्येन्द्र यादव की नियुक्ति परंपरागत पद (अथर्ववेद) पर हो गई जो UGC के नियमों के विरुद्ध है। जिस पर हमने एक लेख लिखा है।
परन्तु कुछ लोगों द्वारा इस विषय को जाती से जोड़ कर समाज में असंतोष फैलाया जा रहा है कि मै जाति के कारण नियुक्ति का विरोध किया हूँ।
अतः आप सभी पाठकगण स्व बुद्धि का प्रयोग कर देश को समृद्ध करें।
आपका
-डॉ मुकेश ओझा
Tuesday, March 3, 2020
समाज निर्माण में अध्यापकों का योगदान
👉यदि आप अपने छात्रों के #आजीविका के लिए चिंतित नहीं हैं तो आप अच्छे #अध्यापक नहीं हैं।
अध्यापक समाज निर्माता होता है। अतः समाज कैसा है इसका उत्तरदायित्व भी अध्यापकों पर निर्भर करता है।
यदि आज भारत में बेरोजगारी बढ़ रही है तो इसके भी कारण अध्यापक ही हैं।
उस शिक्षा से क्या लाभ जो शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी आजीविका के लिए सरकार या किसी और पर निर्भर रहना पड़े।
👉 सरकार का कार्य होना चाहिए निःशुल्क, श्रेष्ठ शिक्षा उपलब्ध कराना और अध्यापक का कार्य है श्रेष्ठ छात्रों का निर्माण करना। अध्यापकों का कार्य है ऐसे छात्रों का निर्माण करना जो किसी भी प्रकार से किसी अन्य पर निर्भर न रहे। ऐसे छात्रों का निर्माण करना जो अपने आजीविका के साधन स्वयं निर्मित करें।
और अध्यापकों का एक और महत्वपूर्ण कार्य है, यदि छात्रों के आजीविका में कोई बाधा है तो अध्यापक उस बाधा को स्वयं दूर करें।
मैं परंपरागत संस्कृत (प्रथमा, मध्यमा, शास्त्री, आचार्य किया हुआ) छात्र हूँ।
👉 मैं आपलोगों को बता दूँ, आजकल संस्कृत कि दो उपाधियाँ (डिग्रीयाँ) विद्यालयों, विश्वविद्यालयों से प्राप्त होतीं हैं।
1- परंपरागत संस्कृत (प्रथमा, मध्यमा, शास्त्री, आचार्य) कि उपाधि।
2- आधुनिक संस्कृत (बी.ए.,एम.ए.) कि उपाधि।
👉
परंपरागत संस्कृत के छात्रों के आजीविका के लिए केवल दो मार्ग निकलते हैं। 1- कर्मकांड करें। या 2- परंपरागत संस्कृत विद्यालयों मे अध्यापन का कार्य करें।
यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि आधुनिक संस्कृत को पढ़ने वाला परंपरागत संस्कृत विद्यालयों मे अध्यापन कर सकता है। और मंदिरों में कर्मकांड भी कर सकता है, परन्तु परंपरागत संस्कृत छात्र किसी भी आधुनिक विद्यालय विश्वविद्यालयों में आवेदन के लिए भी पात्र नहीं।
👉अब परंपरागत विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के अध्यापकों का यह दायित्व है कि वे अपने छात्रों के आजीविका के लिए संघर्ष करें और उनके लिए भी सभी जगहों पर आवेदन के लिए मार्ग प्रशस्त करें।
आपका छात्र जो परंपरा से पढ़कर शास्त्री, आचार्य किया है, वह आजीविका कैसे प्राप्त करेगा इस विषय पर कार्य करें।
परंपरागत संस्कृत के लगभग 18 विषय है। जिनका ह्रास हो रहा है। इन 18 विषयों का विस्तृत चर्चा पुनः करेंगे।
आपका
-डॉ मुकेश ओझा
ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार
🙏🙏
Subscribe to:
Posts (Atom)