बन्धुओं!
संस्कृत बहुत विस्तृत है। अतः संस्कृत को दो भागों में विभक्त किया गया है।
1- परपरागत संस्कृत और 2- समान्य संस्कृत।
संस्कृत का सामान्य अध्ययन करने के लिए छात्र सामान्य संस्कृत पढ़ते हैं और संस्कृत से बी.ए., एम.ए. करते हैं।
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परन्तु यदि संस्कृत का विस्तृत ज्ञान चाहिये तो परंपरागत संस्कृत पढ़ना होता है। परंपरागत संस्कृत में स्नातक को शास्त्री तथा परास्नातक को आचार्य कहते है।
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सामान्य संस्कृत पढ़ने वाला अध्यापन के लिए सामान्य संस्कृत के पद पर नियुक्त होता है। 90% शैक्षणिक संस्थानों मे सामान्य संस्कृत का ही अध्ययन अध्यापन होता है।
👉परंपरागत संस्कृत पढ़ने वाला अध्यापन करने के लिए परंपरागत पद पर नियुक्त होता है।मात्र 10% शैक्षणिक संस्थानों में ही परंपरागत संस्कृत का अध्ययन अध्यापन होता है।
परंपरागत संस्कृत लगभग लुप्त होने के कगार पर हैं।
सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्व विद्यालय वाराणसी में सामान्य संस्कृत के छात्र सत्येन्द्र यादव की नियुक्ति परंपरागत पद (अथर्ववेद) पर हो गई जो UGC के नियमों के विरुद्ध है। जिस पर हमने एक लेख लिखा है।
परन्तु कुछ लोगों द्वारा इस विषय को जाती से जोड़ कर समाज में असंतोष फैलाया जा रहा है कि मै जाति के कारण नियुक्ति का विरोध किया हूँ।
अतः आप सभी पाठकगण स्व बुद्धि का प्रयोग कर देश को समृद्ध करें।
आपका
-डॉ मुकेश ओझा
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