👉यदि आप अपने छात्रों के #आजीविका के लिए चिंतित नहीं हैं तो आप अच्छे #अध्यापक नहीं हैं।
अध्यापक समाज निर्माता होता है। अतः समाज कैसा है इसका उत्तरदायित्व भी अध्यापकों पर निर्भर करता है।
यदि आज भारत में बेरोजगारी बढ़ रही है तो इसके भी कारण अध्यापक ही हैं।
उस शिक्षा से क्या लाभ जो शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी आजीविका के लिए सरकार या किसी और पर निर्भर रहना पड़े।
👉 सरकार का कार्य होना चाहिए निःशुल्क, श्रेष्ठ शिक्षा उपलब्ध कराना और अध्यापक का कार्य है श्रेष्ठ छात्रों का निर्माण करना। अध्यापकों का कार्य है ऐसे छात्रों का निर्माण करना जो किसी भी प्रकार से किसी अन्य पर निर्भर न रहे। ऐसे छात्रों का निर्माण करना जो अपने आजीविका के साधन स्वयं निर्मित करें।
और अध्यापकों का एक और महत्वपूर्ण कार्य है, यदि छात्रों के आजीविका में कोई बाधा है तो अध्यापक उस बाधा को स्वयं दूर करें।
मैं परंपरागत संस्कृत (प्रथमा, मध्यमा, शास्त्री, आचार्य किया हुआ) छात्र हूँ।
👉 मैं आपलोगों को बता दूँ, आजकल संस्कृत कि दो उपाधियाँ (डिग्रीयाँ) विद्यालयों, विश्वविद्यालयों से प्राप्त होतीं हैं।
1- परंपरागत संस्कृत (प्रथमा, मध्यमा, शास्त्री, आचार्य) कि उपाधि।
2- आधुनिक संस्कृत (बी.ए.,एम.ए.) कि उपाधि।
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परंपरागत संस्कृत के छात्रों के आजीविका के लिए केवल दो मार्ग निकलते हैं। 1- कर्मकांड करें। या 2- परंपरागत संस्कृत विद्यालयों मे अध्यापन का कार्य करें।
यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि आधुनिक संस्कृत को पढ़ने वाला परंपरागत संस्कृत विद्यालयों मे अध्यापन कर सकता है। और मंदिरों में कर्मकांड भी कर सकता है, परन्तु परंपरागत संस्कृत छात्र किसी भी आधुनिक विद्यालय विश्वविद्यालयों में आवेदन के लिए भी पात्र नहीं।
👉अब परंपरागत विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के अध्यापकों का यह दायित्व है कि वे अपने छात्रों के आजीविका के लिए संघर्ष करें और उनके लिए भी सभी जगहों पर आवेदन के लिए मार्ग प्रशस्त करें।
आपका छात्र जो परंपरा से पढ़कर शास्त्री, आचार्य किया है, वह आजीविका कैसे प्राप्त करेगा इस विषय पर कार्य करें।
परंपरागत संस्कृत के लगभग 18 विषय है। जिनका ह्रास हो रहा है। इन 18 विषयों का विस्तृत चर्चा पुनः करेंगे।
आपका
-डॉ मुकेश ओझा
ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार
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