Thursday, December 13, 2018

मन्त्र जप करने का नियम

#साधना में महत्वपूर्ण स्थान मन्त्र का होता है, परन्तु यदि मन्त्र को एकाकार होकर ध्यान पूर्वक न पढ़ा जाय तो मन्त्र अपने फल को प्रदान नहीं करता। और साधक का साधना अधूरा ही रह जाता है।
कभी कभी जन मानस से यह भी प्रश्न उठता रहा है कि हमने पुजा कराया मन्त्रों का जप करवाया परन्तु उससे कोई लाभ नहीं। इस प्रकार के प्रश्नों का एक उत्तर है मन्त्र को नियम से नही छपा गया।

#मन्त्र को #जप करने का #नियम -
मनो मध्ये स्थितो मन्त्रो , मन्त्र मध्ये स्थितं मनः।
मनो मन्त्र समायुक्तं,एतद्धि जप  लक्षणम्॥

जैसे जल और शर्करा दोनो मिलकर एकाकार हो जाते हैं इसी प्रकार मन्त्रऔर मन दोनो की एकता को जप कहते हैं। जिस प्रकार जल मे विलीन शक्कर जलाकारा  हो जाती है इसी प्रकार मन्त्र चिन्तन मे लीन मन मन्त्राकार हो जाय  मन्त्र के अतिरिक्त उसकी स्वतन्त्र सत्ता शेष न रहे यह मन्त्र जप का वास्तविक स्वरूप है ।
इसीलिये सन्त  कहते हैं -
माला तो कर मे फिरै जीभ  फिरै मुख माहिं।
मनवा तो  चहुँ दिशि फिरे यह तो सुमिरन नाहिं॥

और एकाकार हुए बिना मन्त्र जपने पर कबीर दास भी एक दोहा कहें हैं-
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
-#डॉ_मुकेश_ओझा
#ज्योतिष_एवं_आध्यात्मिक_सलाहकार

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