Monday, November 4, 2019

सत्य के खोज का नव आर्य सत्य

सत्य के खोज का नव आर्य सत्य
मनुष्य  अज्ञान के बंधन में है।-पहला आर्य सत्य।
इस बंधन के कारण किसी किसी को मर्मान्तक वेदना होती है-दूसरा आर्य सत्य।
बहुत थोड़े लोग इस बंधन (समस्या) को जड़ से मिटाना चाहते हैं-तीसरा आर्य सत्य।
सच्चा सद्गुरु बन्धन से मुक्ति चाहने वालों को अपनी ओर खींचता है,लॉ ऑफ अट्रैक्शन के अनुसार।-चौथा आर्य सत्य।
इनमें से भी थोड़ी चेतनाएं ही निरहंकार होकर समर्पण करती हैं।-पांचवां आर्यसत्य।
यह समर्पण पूरे अस्तित्व की आत्मा के प्रति समर्पण में बदल जाता है।-छठवां आर्यसत्य।
ऐसी प्रबुद्ध चेतनाएं अपनी आभा तरंग से दूसरी बद्ध चेतनाओं को आकर्षित करती हैं।-सातवां आर्य सत्य।
शेष चेतनाएं इन सत्य के प्रति पैशन रखने वाली चेतनाओं के मार्ग में कांटे बोने का अनिवार्य कार्य करती हैं।-आठवां आर्यसत्य।
जितने अधिक कांटे बोए जाते हैं,उतनी शीघ्रता से मुमुक्षु चेतनाओं को सत्य का साक्षात्कार होता है।-नवां आर्यसत्य।

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