Saturday, November 2, 2019

मंदिर में दर्शन करने के नियम

मंदिर में दर्शन करने के नियम
मंदिर में दर्शन कैसे करें? 

हम लोग मंदिर में परमात्मा के दर्शन करने जाते हैं,।
दर्शन करने के बाद मंदिर परिसर मे कहीं भी कुछ समय जरूर बैठना चाहिए।
 इस का कारण क्या है ?

वास्तव में मंदिर परिसर मे बैठ कर के एक श्लोक बोलना चाहिए और प्रार्थना करना चाहि। 

इस श्लोक को याद करें ।और आने वाली पीढ़ी को भी इसे याद कराऐं 
श्लोक इस प्रकार है

*अनायासेन मरणम ,बिना दैन्येन जीवनम* ।
*देहान्ते तव सानिध्यम ,देहिमे परमेश्वरम*।। 

कुछ लोग हजारों किलोमीटर की यात्रा कर दर्शन करने जाते हैं। और भगवान् के विग्रह के समक्ष नेत्र बंद करके बुदबुदाना आरम्भ कर देते हैं। ये उचित नहीं है।

जब हम मंदिर में दर्शन करने जाएं तो *खुली आंखों से देव विग्रह का दर्शन करें। देव विग्रह के स्वरूप का ,श्री चरणों, का मुखारविंद का ,श्रंगार का संपूर्ण आनंद लें । आंखों में भर लें इस दिव्य स्वरूप को। 

दर्शन करें और दर्शन करने के बाद जब बाहर आकर बैठें तब नेत्र बंद करके ,जो दर्शन किए हैं, उस स्वरूप का ध्यान करें ।

*मंदिर में दर्शन के समय नेत्र नहीं बंद करना चाहिए*
मंदिर मे दर्शन करने के बाद मंदिर परिसर मे थोड़ी देर जरूर बैठना चाहिए।और बैठकर इधर-उधर की बातें ना कर *मंदिर में स्थित देव विग्रह का ध्यान करें। 

*यदि देव विग्रह का स्वरूप ध्यान में नहीं आए तो दोबारा मंदिर में जाएं ।और पूरे ध्यान से एक एक वस्तु को श्रद्धापूर्वक निहारते हुए दर्शन करें*। 

यह श्लोक प्रार्थना है याचना नहीं है। याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है, घर ,व्यापार ,नौकरी ,पुत्र पुत्री, दुकान ,सांसारिक सुख या अन्य बातों के लिए जो मांग की जाती है, वह प्रभु से याचना है। 

 प्रार्थना का विशेष अर्थ होता है ।
*प्र* अर्थात विशिष्ट, श्रेष्ठ
*अर्थना* अर्थात निवेदन

*श्रेष्ठ निवेदन* को प्रार्थना कहते हैं। 

परमात्मा से प्रार्थना करें ,और प्रार्थना मे यह श्लोक बोलें। और श्लोक के अर्थ को समझें। 

*"अनायासेना मरणम"* अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो, बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े ,कष्ट उठाकर मृत्यु नहीं चाहिए ।चलते चलते ही श्री जी की शरण पा जाएं।

" *बिना दैन्येन जीवनम* " 
अर्थात परवशता का जीवन न हो। किसी के सहारे न रहना पड़े ,।जैसे लकवा हो जाता है। नेत्र ज्योति चली जाती है ,और व्यक्ति दूसरों पर आश्रित हो जाता है। वैसे परवश, बेबस न हों। परमात्मा की कृपा के बिना किसी के आश्रित हुऐ जीवन बसर हो सके।

" *देहान्ते तव सानिध्यम* " 
अर्थात जब मृत्यु हो तब परमात्मा सन्मुख खड़े हो। जब प्राण तन से निकले ,भगवान् आप सामने खड़े हों। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए । दर्शन करते हुए उनके प्राण निकले। यह प्रार्थना करें ।

गाड़ी ,घर ,लड़का, लड़की सुन्दर धनवान पति, सर्वगुण सम्पन्न सुन्दर पत्नी ,धन यह मांगना नहीं ।यह तो परमात्मा आपके कर्म पात्रता के हिसाब से स्वयं आपको दे देते हैं ।

तो दर्शन करने के बाद मंदिर परिसर मे बैठकर यह प्रार्थना अवश्य करें ...
आपका शुभेच्छा
-डॉ मुकेश ओझा
ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार

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