ब्रह्मांड की जीवनी शक्ति 'श्री'
श्री शब्द का अर्थ एवं महत्व........🌻🌹🌻
संस्कृत व्याकरण के मुताबिक 'श्री' शब्द के तीन अर्थ होते हैं: शोभा, लक्ष्मी और कांति। तीनों ही प्रसंग और संदर्भ के मुताबिक अलग-अलग अर्थों में इस्तेमाल होते हैं। श्री शब्द का सबसे पहले ऋग्वेद में उल्लेख मिलता है। तमाम किताबों में लिखा गया है कि 'श्री' शक्ति है। जिस व्यक्ति में विकास करने की और खोज की शक्ति होती है, वह श्री युक्त माना जाता है। ईश्वर, महापुरुषों, वैज्ञानिकों, तत्ववेत्ताओं, धन्नासेठों, शब्द शिल्पियों और ऋषि-मुनियों के नाम के आगे 'श्री' शब्द का अमूमन इस्तेमाल करने की परंपरा रही है। राम को जब श्रीराम कहा जाता है, तब राम शब्द में ईश्वरत्व का बोध होता है। इसी तरह श्रीकृष्ण, श्रीलक्ष्मी और श्रीविष्णु तथा श्रीअरविंद के नाम में 'श्री' शब्द उनके व्यक्तित्व, कार्य, महानता और अलौकिकता को प्रकट करता है। मौजूदा वक्त में अपने बड़ों के नाम के आगे 'श्री' लगाना एक सामान्य शिष्टाचार है।असल में तो 'श्री' पूरे ब्रह्मांड की प्राण-शक्ति है। ईश्वर ने सृष्टि रचना इसलिए की, क्योंकि ईश्वर श्री से ओतप्रोत है। परमात्मा को वेद में अनंत श्री वाला कहा गया है। मनुष्य अनंत-धर्मा नहीं है, इसलिए वह असंख्य श्री वाला तो नहीं हो सकता है, लेकिन पुरुषार्थ से ऐश्वर्य हासिल कर श्रीमान बन सकता है। सम्पूर्ण सृष्टि परमात्मा का हि विस्तार है । अतः सृष्टि मे सबकुछ श्री युक्त है। दुनिया मे निर्माण, संसाधन, शक्ति, बल, तेज और सेवा आदि जितने भी कार्य हैं, सभी में श्री की उपस्थिति रहती है। सूर्य ,चंद्रमा, धरती की गति, समयचक्र, प्राण-शक्ति और आत्मशक्ति में श्री का वजूद है। प्रलय और सृष्टि, दोनों श्री की वजह से होते हैं। श्री ऐसी अद्भुत शक्ति है जिसे सुर, असुर, मानव, किन्नर और सम्राट अपने तप बल से हासिल कर सकते हैं। परमात्मा में जो श्री-शक्ति है, वही सृष्टि मे सर्वत्र व्याप्त है। इसलिए जब-जब राक्षसों को हराने में देवता असफल साबित हुए, उन्होंने श्री को हासिल किया और जब जाकर वे दानवों को हरा पाए। आज भी दुनिया में श्री हासिल करने की होड़ लगी हुई है, परंतु उसका इस्तेमाल सृजन और विध्वंस, दोनों में किया जा रहा है। विध्वंस में श्री का इस्तेमाल समाज के पतन का द्योतक है। हमारे समाज में स्त्रियों के सम्मान का कम होना भी इसी बात का प्रतीक है कि श्री की उपेक्षा हो रही है। ध्यान रहे कि स्त्री की जितनी शक्तियां हैं, वे सभी श्री से ओत-प्रोत हैं। इसलिए जिस घर में स्त्री का सम्मान, आदर, सेवा और स्वागत किया जाता है, वह घर लक्ष्मीयुक्त और शोभायुक्त बन जाता है। समाज में आज चारों तरफ जो कलह, झगड़ा-फसाद, हिंसा और नफरत का माहौल है, वह 'श्री' का उचित सम्मान और सही इस्तेमाल न होने की वजह से है। देश व समाज में जो उत्पात हो रहे है, उसकी वजह भी श्री का ठीक वितरण न होना है। इसलिए हर स्तर पर पवित्रता की जरूरत है। धन भी श्री की शक्ति है। यदि पवित्रता, मेहनत और सच्चाई से यह नहीं हासिल किया जाएगा, तो व्यक्ति शारीरिक, मानसिक और आत्मिक रूप से दूषित होगा ही, परिवार, समाज और देश का विकास भी हर स्तर पर रुकेगा। यदि हमारे सभी अंग, इंदियां, मन, बुद्धि और आत्मा स्वच्छ हैं, तो श्री हमारे विकास को उच्चतम शीर्ष प्रदान करेगी। इसलिए संध्यावंदन करते वक्त परमात्मा से सभी इंदियों और अंगों को स्वस्थ रखने और शक्ति देने की हम प्रार्थना करते हैं। हमारी विचार-शक्ति को पवित्रता, कांति और गहराई श्री की कृपा से ही संभव है। इसलिए हमारे कर्म, व्यवहार, चिंतन और साधना में सावधानी रहनी चाहिए। जो इन बातों का ध्यान रखता है, वह दुनिया में महापुरुष के रूप में पूजा जाता है। परमात्मा में श्री, ऐश्वर्य, धर्म, ज्ञान, यश और वैराग्य है, इसलिए वह सृष्टि की सर्वशक्तिमान सत्ता है। इस सत्ता को जो सम्मान और आदर देता है, वह भी दुनिया का आदर पाता है
-डॉ मुकेश ओझा
ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार
Monday, October 28, 2019
श्री शब्द का अर्थ एवं महत्व
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