Tuesday, November 5, 2019

क्रिया योग

क्रिया योग संक्षिप्त परिचय,

क्रिया योग के चार सोपान हैं।

ब्रह्म ग्रन्थी
विष्णु ग्रन्थी
रूद्र ग्रन्थी
परब्रह्म ग्रन्थी

ब्रह्म ग्रन्थी-
इस सोपान मे
क.तालव्य क्रिया
ख.जिह्वा चालन
ग.मानसिक ध्यान
घ.प्राणायाम.
डं. नाभी क्रिया
च.ज्योति मुद्रा
छ.महा मुद्रा है । इस मे खेचरी मुद्रा पर विशेष बल दिया जाना चाहिए।
प्राणायाम के साथ ऊँ का जाप करते हुऐ षटचक्र का ध्यान किया जाता हैं।इस मे एक प्राणायाम 44सैकिण्ड का होता है। एक समय 144प्राणायाम किये जाते है।
खेचरी मुद्रा पूर्ण होने पर ब्रह्म ग्रन्थी भेदन होती है।

परिणाम- 
आसन सिद्ध होता है।
2.खेचरी मुद्रा लगने लगती है।
3 चेतना मूलाधार से उठ कर अनाहत मे आ जाती हैं।
4 साधक की कामनाऐ समाप्त हो जाती है।
5 ब्रह्मा जी के दर्शन होते हैं।

विष्णु ग्रन्थी या ह्रदय ग्रन्थी
इस मे प्राणायाम 66 सैकिण्ड का होता है।
मन्त्र द्वादश अक्षर का हैं। एक समय 200प्राणायाम किये जाते है ।प्राणायाम के साथ सिर को घूमाने एक विशेष क्रिया की जाती हैं।
नाभि क्रिया कुम्भक लगा कर की जाती है।ज्योति मुद्रा व म हा मुद्रा भी की जाती है।

परिणाम-
हृदय गति रूकने लग जाती हैं।
2.वासुदेवम् कटुम्भक की भावना हो जाती है।
3- चेतना ह्रदय से उठ कर आज्ञा चक्र पर आ जाती है।
4.साधक को भगवान विष्णु जी के दर्शन होते है।

रूद्र ग्रन्थी
प्राणायाम88 सैकिण्ड का होता है । मन्त्र ओंकार है। इसमेआज्ञा चक्र पर ध्यान लगा कर श्वास लिया जाता है व छोडा जाता है। प्राणायाम करते हुऐ एक ही धारणा करनी चाहिए आज्ञा चक्र से श्वास ले रहा हू व छोड़ रहा हूँ।
शेष क्रिया ह्रदय ग्रन्थी वाली करनी हैं।

परिणाम-
1.श्वास लम्बे समय तक रूकने लगता है।
2 तीसरा नेत्र खुल जाता है।
3 साधक मृत्यु को जान लेता हैं। मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है।
4 चेतना आज्ञा चक्र से दशम द्वार की तरफ चल पडती है।
5 भगवान शिव जी के साक्षात दर्शन होते है।

परब्रह्म ग्रन्थी
इस के दो भाग है।
क. पहले भाग मे प्रतिदिन पहले श्रीविद्या साधना की साधना की जाती है।श्री विद्या साधना जानने के लिऐ जाऐ www.Sarvsidhyoga.com
ख. दूसरे भाग मे प्राणायाम
लंम्बे से लम्बा खिचना है व लंम्बे से लम्बा छोडना है।साधना करते हुऐ संकल्प करे की दशम द्वार से श्वास ले रहा हू और छोड रहा।कुछ समय तो इस प्रकार करे व कुछ समय ध्यान व संकल्प करे की बिन्दु से topसे श्वास ले रहा हू व छोड़ रहा हू। यह क्रिया केवल खेचरी मुद्रा लगा कर ही करनी है ।अन्यथा परिणाम नही आऐगा।

परिणाम-
1 दशम द्वार खुल जाता है।
2.चिदाकाश मे प्रवेश हो जाता हैं
3.केवल कुम्भक की स्थिति आ जाती है।
4.आत्म साक्षात्कार हो जाता है।
5.ब्रह्म साक्षात्कार हो जाता है।
6.साधक मोक्ष पा लेता है।

चार नियम :-

1.प्रथम दिवस से एक घण्टा प्रातः व एक घण्टा साय । दूसरे मास से दो-दो घंटे व तीसरे मास तीन -तीन घण्टे व कम से कम छः वर्ष व अधिक से अधिक बारह वर्षो तक निरन्तर बिना रुके साधना करनी होगी।
2.विद्या को गुप्त रखना होगा।
3.हर पुरुष हर पर औरत को माँ के समान समझे गे।हर औरत पर पुरुष को अपने पुत्र के समान समझे गी।
4.मै गुरू नहीं हूँ ।मैं महा-अवतार बाबा जी का शिष्य हूँ।मैं केवल क्रिया योग का प्रचार कर रहा हूँ।आप केवल महा-अवतार बाबा जी को अपना गुरु मानेगे ।मुझे व अन्य किसी को नहीं।
क्रिया योग महा-अवतार बाबा जी का हैं।

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