अहं ब्रह्मास्मि कहने से या विचार करने से कोई ब्रह्म नही हो जाता । ब्रह्म होने को जानने का उपाय है, निर्विचार हो जाना अहं ब्रह्मास्मि दोहराना नहीं है, एक ऐसी शांत, मौन, शून्य अवस्था जहां कोई विचार की तरंग नहीं रह जाती, वहां अनुभव होता है कि मैं परमात्मा हूं। लेकिन उस अनुभव में “मैं” का कोई अनुभव नहीं होता, यह तो भाषा में कहना पड़ता है इसलिए । उस अनुभव में सिर्फ परमात्मा है ऐसा अनुभव होता है। उस “मैं” में और सब भी समाहित होते हैं । उस “मैं” में सब मैं समाहित होते हैं।इसलिए जिन्होंने जाना है उन्होंने ऐसा नहीं कहा है कि मैं परमात्मा हूं और तुम नहीं; जिन्होंने जाना है उन्होंने कहा है कि मैं परमात्मा हूं और तुम भी। बुद्ध ने कहा है : जिस क्षण मैं बुद्ध हुआ उस दिन सारा अस्तित्व मेरे साथ बुद्ध हो गया आदमी ही नहीं पशु पक्षी भी, पशु पक्षी ही नहीं पौधे पत्थर भी। बुद्ध ठीक कहते हैं : जिस क्षण मैं बुद्ध हुआ उस क्षण मैंने जाना अरे, मैं तो हूं ही नहीं, सिर्फ बुद्धत्व है; सिर्फ भगवत्ता है; कण कण में वही व्याप्त है। जो मुझमें है वही बाहर है; जो भीतर, वही बाहर। मगर यह विचार से नहीं होगा।
-डॉ मुकेश ओझा
ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार
Thursday, April 11, 2019
अहं ब्रह्मास्मि का व्याख्या
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