Thursday, August 10, 2017

12 अगस्त रात मे दिन जैसा प्रकाश नही होगा परन्तु यह मौका आसमान में टूटते तारों की आतिशबाज़ी देखने का है

12 अगस्त रात मे दिन जैसा प्रकाश नही होगा परन्तु यह मौका आसमान में टूटते तारों की आतिशबाज़ी देखने का है
11एवं 12 तारीख के रात को हम इस मौसम के श्रेष्ठ और रंगीन उल्कापात - पेर्सेइड मेटेओर शावर का आनंद ले सकते हैं।
खगोल वैज्ञानिक गणनाओं के आधार पर 11-12 अगस्त 2017 और 12-13 अगस्त 2017 की मध्यरात्रि से भोर तक पेर्सेइड उल्कापात के विहंगम दृश्य का अवलोकन किया जा सकता है।
आसमानी आतिशबाज़ी की यह घटना 12-13 अगस्त की मध्यरात्रि से भोर तक अपने चरम पर होगी।
उल्कापात एक खगोलीय घटना है जिसमें रात्रि आकाश में कई उल्काएं एक बिंदु से निकलती नज़र आती हैं।
ये उल्काएं या मेटिअरॉइट (सामान्य भाषा में टूटते तारे) धूमकेतु या पुच्छल तारों के पीछे घिसटते धूल के कण, पत्थर आदि होते हैं जो पृथ्वी के वातावरण में बहुत तीव्र गति से प्रवेश करते हैं और हमें आसमानी आतिशबाज़ी का नज़ारा दिखाई देता है।
अधिकांश उल्काएँ आकार में धूल के कण से भी छोटी होती हैं जो विघटित हो जाती हैं और सामान्यतः पृथ्वी की सतह से नहीं टकरातीं।
यदि उल्कापात के दौरान उल्काओं का कुछ अंश वायुमंडल में जलने से बच जाता है और पृथ्वी तक पहुँचता है तो उसे उल्कापिंड या मेटिअरॉइट कहते हैं।
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस वर्ष पेर्सेइड उल्कापात में 150 उल्का प्रति घंटे नज़र आयेंगी जो सामान्य से अधिक हैं परन्तु उल्काओं की यह बढ़ी संख्या चन्द्रमा की चमक में छुप जाएगी।
खगोलविद उम्मीद जता रहे हैं कि पेर्सेइड उल्कापात की चमक चन्द्रमा की रोशनी से अधिक नहीं दबेगी और फिर देखने वालों का उत्साह इसकी चमक को बरकरार रखेगा।
पेर्सेइड उल्कापात की समाप्ति पर प्रातः काल पूर्व की ओर चमकीला ग्रह शुक्र को भी देखा जा सकता है, जो कि सूर्य और चन्द्रमा के बाद तीसरा सबसे चमकदार ग्रह है।
तो आइये पेर्सेइड उल्कापात की दुर्लभ घटना का अवलोकन कर आनन्दित हो।

डॉ. मुकेश ओझा
(लेखक महर्षि वैदिक विश्व विद्यालय के ज्योतिष प्रवक्ता हैं।
एवं मोमेन्टम समूह वाराणसी के मार्गदर्शक हैं।)
स्रोत : बी बी सी हिंदी

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