Tuesday, August 29, 2017

भवान्यष्टकम् अर्थ सहित

।। भवान्यष्टकम् ।।

न  तातो  न  माता  न  बन्धुर्न दाता
न  पुत्रों  न  पुत्री  न  भृत्यो  न  भर्ता।
न  जाया  न  विद्या  न  वृत्तिर्ममैव
गतिस्त्वं  गतिस्त्वं  त्वमेका  भवानी।।

अर्थात:

हे भवानी ! पिता, माता, भाई, दाता, पुत्र, पुत्री, नौकर, स्वामी, स्त्री, विद्या, वृत्ति --इनमें से कुछ भी मेरा नहीं है।
हे देवी ! तुम्ही एकमात्र मेरी गति हो।

भवाब्धावपारे        महादु:खभीरु:
पपात   प्रकामी   प्रलोभी   प्रमत्त:।
कुसंसारपाशप्रबद्धः           सदाहं
गतिस्त्वं  गतिस्त्वं  त्वमेका  भवानी ।।

अर्थात:

मैं विशाल भवसागरमें, महादुःखों से कायर हो चुका हु। मैं कामी, लोभी, और प्रमत्त बनकर अनिच्छनीय ऐसे संसार के बंधनों में सदा सदा बंधा पड़ा हुँ।
हे भवानी ! अब तुम्ही एकमात्र मेरी गति हो।।

न  जानामि  दानं   न    च   ध्यानयोगं
न  जानामि  तन्त्रं   न   च  स्तोत्रमन्त्रम्।
न  जानामि  पूजां   न   च    न्यासयोगं
गतिस्त्वं   गतिस्त्वं  त्वमेका    भवानी।।

अर्थात:

मैं दान देना नही जानता, ध्यानयोग की मुझे जानकारी नही। पूजा और मंत्र का भी मुझे ज्ञान नही है, और न्यासादि कर्मकांड से तो मैं बिलकुल अनजान हूँ ।
हे भवानी ! अब तुम्ही एकमात्र मेरी शरण हो।।

न  जानामि  पुण्यं  न  जानामि  तीर्थं
न  जानामि  मुक्तिं  लयं  वा  कदाचित्।
न  जानामि  भक्तिं  व्रतं   वापि    मातः
गतिस्त्वं   गतिस्त्वं   त्वमेका      भवानी ।।

अर्थात:

मैं पुण्य जानता नहीं, ना ही तीर्थ, लय या मुक्ति का तो मुझे बान है।
हे माता! भक्ति या व्रत भी मै नही जानता। हे भवानी! अब तो तुम्ही केवल मेरी शरण हो।।

कुकर्मी   कुसंगी   कुबुद्धिः   कुदासः
कुलाचारहीनः           कदाचारलीनः ।
कुदृष्टिः   कुवाक्यप्रबन्धः      सदाहं
गतिस्त्वं  गतिस्त्वं   त्वमेका  भवानी।।

अर्थात:

मैं खराब कर्म वाला, खराब संगत में रहने वाला, खराब आदतों का गुलाम, कुल की शोभा बढ़े ऐसे मेरे आचरण भी नही है, दुराचारों में व्यस्त, खराब दृष्टि वाला, अयोग्य शब्द बोलने में माहिर हूँ मै।
हे भवानी! अब तो तुम्ही एकमात्र मेरी शरण हो।।

प्रजेशं     रमेशं      महेशं     सुरेशं
दिनेशं   निशीथेश्वरं  वा   कदाचित।
न   जानामि  चान्यत्  सदाहं शरण्ये
गतिस्त्वं  गतिस्त्वं  त्वमेका   भवानी।।

अर्थात:

मैं ब्रह्मा, विष्णु, शिव, इन्द्र, सूर्य, चंद्रमा या अन्य कोई देवताओं को तो मै जानता भी नही हूँ ।
सदा सदा शरण देने वाली हे भवानी!
तुम्ही मेरी एकमात्र गति हो ।।

विवादे   विषादे   प्रमादे   प्रवासे
जले  चानले  पर्वते       शत्रुमध्ये।
अरण्ये  शरण्ये  सदा  मां    प्रपाहि
गतिस्त्वं   गतिस्त्वं  त्वमेका भवानी।।

अर्थात:

हे शरण में आनेवाले की रक्षा करनेवाली !
विवाद, विषाद, प्रमाद, प्रवास, जल, अग्नि, पर्वत, शत्रु, जंगल के बीच ( आपत्ति के बीच ) सदा  मेरी रक्षा करना।
हे भवानी! तुम्ही एकमात्र मेरी गति हो।।

अनाथो  दरिद्रो     जरारोगयुक्तो
महाक्षीणदीनः   सदाजाऽयवक्त्रः।
विपत्तौ  प्रविष्टः   प्रणष्टः   सदाहं
गतिस्त्वं  गतिस्त्वं। त्वमेका  भवानी।।

अर्थात:

हे देवी!  मैं सदा सदा के लिए अनाथ, दरिद्र, वृद्धावस्था से क्षीण, रोगी, अति दुर्बल, दीन, जड़, आपदाओं में फँसा हुआ, खत्म हो चुका हूँ।
हे भवानी! तुम्ही एकमात्र मेरी शरण हो।।

इति श्रीमच्छंऽकराचार्यविरचितं भवान्यष्टकं संपूर्णं।

।। गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी ।।
हे माँ ! मै मंदबुद्धि जड तेरे शरण के योग्य हूँ ।।
शरणम् मम।।

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