Wednesday, December 2, 2020

एकलव्य का अंगूठा कटवाना धनुर्विद्या से वंचित करना या गुरु द्रोण का वरदान? वास्तविकता पढ़िए 👉

एकलव्य का अंगूठा कटवाना धनुर्विद्या से वंचित करना या गुरु द्रोण का वरदान?

वास्तविकता पढ़िए

श्वेत वस्त्र पहने हुए अनाहत तक पहुंचती श्वेत दाढी कंधे पर जनेऊ और मुख पर अदम्य तेज युक्त द्रोण ने अपने श्वान की ओर गंभीर दृष्टि से देखा, "ले चलो जहां ये बाण मिला तुम्हें "

थोडी ही देर पहले वे जब अपने आश्रम में अपने कुछ शिष्यों को युद्धकला के बारे में समझा रहे थे,उनका श्वान अपने मुंह में एक बाण दबाए आ खडा हुआ था। ढाई पल का बाण और फर के स्थान पर रंगबिरंगे पंख, द्रोण के माथे पर लकीरें खिंच गईं।

इसके लिये कम से कम साढे तीन हाथ का धनुष उपयोग होगा' उन्होंने मन मे ही सोचा 'कौन होगा वो? ' उन्होने अश्वत्थामा को साथ चलने का संकेत किया।

उनकी जानकारी में कम ही ऐसे योद्धा थे जो इस भार के धनुष को चला सकते थे हस्तिनापुर के ऐसे सभी योद्धाओं से वे परिचित थे ये बाण उनमें से किसी का नहीं था और गुरूकुल के इस निषिद्ध क्षेत्र में किसी बाहरी योद्धा की उपस्थिति उनके मन मे संदेह उत्पन्न कर रही थी।

दो घडी वन में चलने के पश्चात थोडे से खुले स्थान पर एक वृक्ष के तने पर चिन्ह बनाकर धनुर्विद्या का अभ्यास करता नवयुवक दिखाई दिया उनके अनुभवी नेत्रों ने तुरंत ही पूरे परिसर को ताड लिया वन के बीच नैसर्गिक कम घना करीब स्थान जिसमें आवश्यकतानुसार झाड़ियों को काट कर उत्तर से दक्षिण की और लगभग 200 गज का लंबोतर मैदान बना लिया गया था जिसकी चौडाई 50 हाथ की थी धनुर्विद्या के अभ्यास के लिए उत्तम स्थान, द्रोण के मन में आया। 

पश्चिम की ओर एक समतल शिला पर पूर्व की ओर मुख किये मिट्टी की अनगढ़ प्रतिमा स्थापित थी जिसका पूजन किया गया था, सामने रखी चौकी पर वन में उत्पन्न होने वाले पुष्प और फलादि दिख रहे थे नवयुवक की पीठ थी उनकी ओर, कुछ श्यामल वर्ण, कमर पर वल्कल,पसीने से भीगे ऊपरी शरीर पर कुछ मालाएं,घने, लंबे जटाओं की तरह बिखरे बाल,कसा हुआ शरीर, नग्न पीठ पर दिखाई देती रीढ की हड्डी की मजबूती कठिन परिश्रम का संकेत दे रही थी।

उसी समय नवयुवक ने संधान किया और प्रत्यंचा खींची बिजली की तेजी से पता भी नहीं चला कब बाण प्रत्यंचा तक पहुंचा कोहनी पीछे आई और धनुष पुनः अपने स्थान पर द्रोणाचार्य के अधरों पर एक हल्की सी हंसी की किरण लहरा कर लुप्त हो गई जिसे अश्वत्थामा नहीं देख पाए हस्तिनापुर के राजपरिवार के युद्ध शिक्षा के आचार्य थे वे,गुरू थे युद्धकला के,विश्व के सर्वश्रेष्ठ योद्धाओं में से एक।

पत्तों के चरमराने की ध्वनि सुनकर नवयुवक पलटा,गोल चेहरा,लंबी सुतवां नाक,बडे़ बड़े और काले नेत्र,चौड़ा माथा।माथे पर एक मुकुट की तरह एक ओर पक्षियों के रंगीन पंखों और कौड़ियों से सजा मोटा धागा बंधा था जो केशों को चेहरे के सामने आने से रोक भी रहा था अचानक युवक के नेत्र आश्चर्य से फैले हड़बड़ा कर वो समीप आ कर पृथ्वी पर साष्टांग हो गया।

द्रोण ने सौम्य स्वर में आदेश दिया, उठो पुत्र, कौन हो तुम आचार्य कौन हैं तुम्हारे?

युवक उठा अपने दाहिने हाथ से मुख ढंकते हुए कहा उसने " निषादराज का पुत्र एकलव्य हूं आचार्य, आप ही मेरे आचार्य हैं।"
द्रोण की एक भौंह किंचित् हिली "अर्थात?"

"सात वर्ष पूर्व मेरे पिता मुझे आपके पास धनुर्विद्या सिखाने लाए थे किंतु हस्तिनापुर राजपरिवार के ही कुल को शिक्षा देने की वचन बद्धता के कारण आपने असमर्थता दिखाई थी उसके पश्चात मैने पांच वर्ष तक वन के श्रेष्ठ आचार्यों से शिक्षा ली वहां से सीखकर दो वर्ष पहले एक दिन आपके आश्रम के पास की ही मिट्टी लेकर आपकी प्रतिमा बनाई, आपको दूर से ही देखकर संकल्प लिया और आपको अपना गुरू स्वीकार किया और प्रतिमा यहीं स्थापित कर के आप ही के समक्ष नित्य अभ्यास करता हूँ।"

द्रोण ने एक गहरी सांस ली, कुछ क्षण सोचा और एकलव्य से कहा, "तो परीक्षा दो।"

अश्वत्थामा ये सब देखकर कुछ भी न समझ पा रहे थे केवल मूकदर्शक बने हुए थे पारंपरिक योद्धाओं के समर्पण के ढंग से एक घुटना भूमि पर टिकाकर सिर झुकाते हुए कहा एकलव्य ने "आज्ञा दें"

आचार्य द्रोण ने कहा तुम्हें एक ही स्थान पर सात बाण चलाने हैं "जैसी आज्ञा! " उठ गया एकलव्य।

द्रोण उन दोनों को वहीं रोककर और एकलव्य से खड़िया लेकर आगे बढे और श्वान को अपने साथ आने का संकेत कर दिया करीब सौ कदम आगे जाकर एक मोटे से पेड़ के तने पर निशान बनाया श्वान से कुछ कहा और एक ओर हटते हुए एकलव्य को संधान करने का संकेत किया।

एकलव्य ने बाण निकाला, प्रत्यंचा पर चढा कर प्रक्षेपण कर दिया बाण नहीं पहुंचा चिन्ह तक,एकलव्य ने अचंभित नेत्रों से देखा वो तो श्वान के मुख में दबा है द्रोण का दूसरा संकेत दूसरे बाण का भी वही हुआ सातों बाण अंत में एकसाथ श्वान के मुख में दबे हुए थे।

अश्वत्थामा हतप्रभ अवस्था में थे एकलव्य की अवस्था ऐसी थी जैसे रक्त निचुड़ गया हो द्रोण समीप आ रहे थे उनके नेत्रों में दया,करुणा के भाव स्पष्ट देखे जा सकते थे अश्वत्थामा की ओर देखा उन्होंने "श्वान का मुख बंद हो गया है बाणों से निकाल दो" "अभी कम से कम तीन वर्ष के अभ्यास की और आवश्यकता है तुम्हे पुत्र,हमारा आदेश है अभ्यास बंद नहीं करना।" उन्होने एकलव्य के कंधे पर हाथ रखा।

एकलव्य के नेत्रों से जलप्रवाह हो रहा था उसके मुख से कुछ नहीं निकल पाया।

" एक और आदेश है, ये अभ्यास तुम्हें यहां नहीं विदर्भ देश में जाकर करना होगा किंतु हमारी गुरु दक्षिणा का क्या होगा?"
एकलव्य ने पुनः हाथ से मुख ढंककर भरी हुई वाणी में कहा "कहें आचार्य, प्राण सहित सर्वस्व अर्पण हैं।"

कठोर से भाव ठहर गए द्रोण के नेत्रों में मुख से शब्द निकले जो एकलव्य और अश्वत्थामा के सिर पर बिजली की तरह गिरे "हमें तुम्हारे दाहिने हाथ का अंगूठा चाहिए गुरुदक्षिणा में एकलव्य! "

एकलव्य अवाक् द्रोण की ओर देख रहा था "किंतु पिताजी"अश्वत्थामा ने कुछ कहने का प्रयास किया, हाथ के संकेत से रोक दिया द्रोण ने "निर्णय करो एकलव्य " शांत स्वर था द्रोण का।

एकलव्य ने कमर से कटार निकाली और एक ओर बढ गया एक पौधे से कुछ पत्तियां तोडीं पत्थर पर कुचलकर चटनी जैसी बनाकर एक पत्ते पर रख ली फिर वहीं पड़े पत्ते उठाकर एक दोना बनाया तने पर रखा और तीक्ष्ण कटार से एक ही झटके में अपना अंगूठा काट कर डाल दिया उसमें।
दांत भींच रखे थे उसने मुख पर मरणांतक कष्ट के भाव आकर लुप्त हो गए तुरंत पत्ते पर रखी चटनी पत्ते सहित घाव पर रखकर दबा दी बाएं हांथ से दोना उठाया और द्रोणाचार्य के पास लाकर उनके चरणों में रख दिया और स्वयं भी वहीं शीश रख दिया।

द्रोण ने उठाया उसे कंधे से पकड़ कर और बोले "अब विलंब उचित नहीं विदर्भ की ओर प्रस्थान करो।"

एकलव्य ने नतमस्तक होकर प्रणाम किया आश्रम की ओर लौटते हुए मार्ग में इस पूरे घटनाक्रम से उद्विग्न अश्वत्थामा ने पूछ ही लिया "पिताजी ...."

"हम जानते हैं पुत्र तुम जानना चाहते हो कि ये सब क्यों किया हमने" कहा द्रोण ने "तुम स्वयं एक योद्धा हो, जानते हो प्रत्यंचा चढाने के तीन तरीके होते हैं।
पहला निकृष्ट जिसमें अंगूठे और तर्जनी से पकड़ कर तीर चलाया जाता है सही लक्ष्य भेदन के लिये ये उचित है जैसे आखेट के लिये किंतु युद्ध के लिये नहीं,इससे बाण की गति मंद हो जाती है।
वर्षों तक एकलव्य ने वनवासी धनुर्धरों से सीखा है अतः वो इसी का उपयोग करता है दूसरा मध्यम जिसमें तर्जनी और मध्यमा से संधान किया जाता है और अंगुष्ठ को मोड़ कर तर्जनी पर दबाव बनाया जाता है और श्रेष्ठ जहां अंगूठे का बिलकुल उपयोग नहीं होता श्रेष्ठ धनुर्धर इसी का उपयोग करते हैं।

एकलव्य ने मुझे गुरू स्वीकार किया गुरू और इष्ट भाव से बंधे होते हैं हम स्वयं राजकुल से भिन्न किसी अन्य को न सिखाने के लिये वचनबद्ध हैं।
यदि एकलव्य को बता देते कि अंगूठे का उपयोग न करे तो वचन टूटता,न बताते तो गुरू शिष्य की मर्यादा भंग होती तीन वर्ष के अभ्यास से एकलव्य श्रेष्ठ मार्ग से उत्तम संधान कर सकेगा इससे भिन्न कोई मार्ग नहीं था।

उसका यहां वन से दूर जाकर अभ्यास भी उचित है ताकि एकांगी धनुर्विद्या से बहुआयामी की ओर गतिमान हो सके श्रेष्ठ बनने के लिये स्पर्धा चाहिये जो वन में कैसे मिलेगी? "

अश्वत्थामा ने दुःखी होकर द्रोण की ओर डबडबाई दृष्टि से देखा " किंतु इस दक्षिणा के कारण आप का सम्मान?"

"ज्ञात है अश्वत्थामा,संसार के अंत तक लोग हमें क्रूर और निर्दयी गुरू के रूप में स्मरण करेंगे किंतु गुरू होने के नाते स्वयं के सम्मान और शिष्य की भलाई में से हमने द्वितीय को चुना और इस पर हमें कोई दुःख नहीं है।

गुरू को सदैव स्वयं से अधिक शिष्य प्रिय होता है और एकलव्य की गुरू भक्ति सदा के लिये उदाहरण बन गई है धन्य होते हैं वो गुरू जिन्हें ऐसे शिष्य प्राप्त होते हैं।"
#मनुर्भव

Saturday, November 21, 2020

वाहन क्रय करने का शुभ मुहूर्त

वाहन क्रय करने का मुहूर्त -

नक्षत्र - अश्वनी, पुष्य, अभिजीत,हस्त, रेवती, धनिष्ठा, मृर्गशीर्ष, स्वाती, शततारा, पुनर्वसु, नक्षत्रों मे। 
रिक्ता तिथि(४, ९,१४)और मंगलवार, शनिवार,बुधवार, को छोड़कर शेष तिथि वारों में वाहन से सम्बन्धित सभी कार्य ( क्रय-विक्रय) शुभ कहे गये हैं। 
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(चर संज्ञक नक्षत्र) स्वाती पुनर्वसु श्रवण, धनिष्ठा, शततारका तथा सोमवार में प्रथम वार वाहन चलाना शुभ होता है। 
- डॉ मुकेश ओझा
ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार

Saturday, October 24, 2020

राहुकाल

राहुकाल  दिन में एक मुहूर्त (४८ मिनट) की अवधि होती है जो अशुभ मानी जाती है। यह स्थान और तिथि के साथ अलग अलग होता है, अर्थात अलग अलग स्थान के लिए राहुकाल बदलता रहता है। यह अंतर समयक्षेत्र में अंतर के कारण होता है। मान्यता अनुसार किसी भी पवित्र, शुभ या अच्छे कार्य को इस समय आरंभ नहीं करना चाहिए। राहुकाल प्रायः प्रारंभ होने से दो घंटे तक रहता है। पौराणिक कथाओं और वैदिक शास्त्रों के अनुसार इस समय अवधि में शुभ कार्य आरंभ करने से बचना चाहिए |

राहुकाल सप्ताह के सातों दिन में निश्चित समय पर लगभग ९० मिनट तक रहता है। इसे अशुभ समय के रुप मे देखा जाता है और इसी कारण राहु काल की अवधि में शुभ कर्मो को यथा संभव टालने की सलाह दी जाती है। राहु काल अलग-अलग स्थानों के लिये अलग-अलग होता है। इसका कारण यह है की सूर्य के उदय होने का समय विभिन्न स्थानों के अनुसार अलग होता है। इस सूर्य के उदय के समय व अस्त के समय के काल को निश्चित आठ भागों में बांटने से ज्ञात किया जाता है। सप्ताह के प्रथम दिवस अर्थात सोमवार के प्रथम भाग में कोई राहु काल नहीं होता है। यह सोमवार को दूसरे भाग में, शनिवार को तीसरे भाग, शुक्रवा को चौथे भाग, बुधवार को पांचवे भाग, गुरुवार को छठे भाग, मंगलवार को सातवे तथा रविवार को आठवे भाग में होता है। यह प्रत्येक सप्ताह के लिये निश्चित रहता है।
इस गणना में सूर्योदय के समय को प्रात: ०६:०० ( भा.स्टै.टा) बजे का मानकर एवं अस्त का समय भी सांयकाल ०६:०० बजे का माना जाता है। इस प्रकार मिले १२ घंटों को बराबर आठ भागों में बांटा जाता है। इन बारह भागों में प्रत्येक भाग डेढ घण्टे का होता है। हां इस बात का ध्यान रखा जाता है कि वास्तव में सूर्य के उदय के समय में प्रतिदिन कुछ परिवर्तन होता रहता है और इसी कारण से ये समय कुछ खिसक भी सकता है। अतः इस बारे में एकदम सही गणना करने हेतु सूर्योदय व अस्त के समय को पंचांग से देख आठ भागों में बांट कर समय निकाल लेते हैं जिससे समय निर्धारण में ग़लती होने की संभावना भी नहीं रहती है।
-डॉ मुकेश ओझा
ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार

Sunday, July 5, 2020

चुनाव

बिहार कि राजनिति
 राजनीति को समझने के लिए एक कहानी बताता हूं।
एक कैदी को दण्ड स्वरूप दो विकल्प दिया गया पहला लगातार 10 किलो कच्चा प्याज खाने का।
 दूसरा 1000 कोड़ा खाने का कैदी ने सोचा 1000 कोड़ा खाने पर तो मैं मर ही जाऊंगा क्यों ना 10 किलो प्याज खा लें, और वह प्याज खाने लगा 1 किलो प्याज खाने के बाद, उसको लगा कि अब एक भी प्याज खाया तो मर जाऊंगा, प्याज का तेज उसको सहन नहीं हो रहा था।
 अतः उसने कोड़ा खाने का सजा चुना और उसको कोड़ा मारा गया 200 कोड़ा खाने के बाद उसको लगा अब एक भी कोडा खाया तो मर जाऊंगा। अत: उसने पुनः प्याज खाना स्वीकार किया और यह सिलसिला चलता रहा वह कभी प्याज तो कभी कोडा खाता। परन्तु दोनो मे से कोई भी लगातार नही खाता। जिसके कारण उसका 1000 कोडा या 10 किलो प्याज का सजा जब तक वह मर नही गया तब तक समाप्त नही हुआ।
बन्धुओं अब आते हैं चुनाव पर -
 बिहार चुनाव का भी यही स्थिति है बिहार का जनता कभी राजद को तो कभी जदयू का चयन करती है और यह सिलसिला 30 वर्षों से चल रहा है और बिहार अपनी दुर्दशा को प्राप्त हो रहा है और इन दोनो पार्टियों के कुकर्मों को झेल रहा है। 
👉 बिहार के लोगों को अब कोई तीसरा विकल्प चुनना चाहिए। बिहार के लोग कब तक कोड़ा और प्याज जदयू और राजद राजद और जदयू करेंगे। अब बिहार के लोगों को इन दोनों पार्टियों को उखाड़ फेंकना चाहिए।
और एक समृद्ध बिहार का निर्माण करना चाहिये।
 जय भारत ! जय बिहार!
- डॉ मुकेश ओझा 
ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार

Saturday, July 4, 2020

गुरु पूजन पद्धति

गुरु पूजन पद्धति

|| ॐ श्री गणेशाय: नमः 
| ॐ श्री सरस्वत्यै नमः 
||ॐ श्री गुरुभ्यो नमः    

जय गुरुदेव

ॐश्री गुरुचरणकमलेभ्यो नमः

ध्यानम्🙏
नारायणं पद्मभवं वसिष्ठं शक्तिं च तत्पुत्रपराशरं च।
व्यासं शुकं गौडपदं महान्तं गोविन्दयोगीन्द्रमथास्य शिष्यम्॥

श्री शंकराचार्यमथास्य पद्मपादं च हस्तामलकं च शिष्यम्।
तं त्रोटकं वार्त्तिककारमन्यान् अस्मतगुरून् सन्ततमानतोस्मि॥

श्रुतिस्मृतिपुराणानां आलयं करुणालयं।
नमामि भगवत्पादं शङ्करं लोकशङ्करम्॥

शङ्करं शङ्कराचार्य केशवं बादरायणम्।
सूत्रभाष्यकृतौ वन्दे भगवन्तौ पुनः पुनः॥

|| सदाशिव समारम्भाम् शंकराचार्य मध्यमाम् ।
अस्मद् आचार्य पर्यन्ताम् वंदे गुरु परम्पराम् ||

॥ॐ समस्तजनकल्याणे निरतं करुणामयम् ।
नमामि चिन्मयं देवं सद्गुरुं ब्रह्मविद्वरम् ॥

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुरेव परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥

प्रत्यक्ष / मानस पूजा :- 

१ ॐ लं पृथ्व्यात्मकं गन्धं परिकल्पयामी । 
श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः।🙏
गुरुदेव! मै पृथ्वी रूपी गंध चन्दन आपको अर्पित करता हूँ। 
२- ॐ हम आकाशात्मकं पुष्पम परिकल्पयामी।
श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः।🙏
गुरुदेव! मै आकाश रूप पुष्प आपको अर्पितकर्ता हूँ । 

३- ॐ यम वायवातंकम  धूपम  परिकल्पयामी।
 श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः।🙏
गरुदेव!  मै वायु रूप में धुप आपको अर्पित करता हूँ । 

४- ॐ रम वह्यतमकम  दीपं दर्शयामि । 
श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः।🙏

गुरुदेव! मै अग्निदेव रूप मे दीपक आपको प्रदान करता हूँ।

५- ॐ वम अमृतात्मकम  नैवेद्यम निवेदयामि । 
श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः।🙏

गुरुदेव!  मै  अमृत  के सामान नैवेद्य आपको निवेदन करता हूँ  । 

६- ॐ सोम  सर्वात्मकं सर्वोपचारम  समर्पयामि  । 
श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः।🙏

गुरुदेव! मै सर्वात्मा के रूप में संसार के सभी उपचारो को आपके चरणो में समर्पित करता हूँ। 

इस प्रकार उपरोक्त मंत्रो से गुरुदेव का पूजा करें। 
यदि गुरुदेव पास न हों तो
इस प्रकार उपरोक्त मंत्रो से गुरुदेव का मानस पूजा करें। 
-  डॉ मुकेश ओझा
#ज्योतिष एवं #आध्यात्मिक सलाहकार

Friday, July 3, 2020

आदर्श सरपंच और मुखिया

ये सरपंच भक्ति शर्मा हैं..

अमेरिका से लौटी हैं  अब मध्यप्रदेश में एक ग्राम पंचायत की सरपंच है।  इनके गांव में बहुत सारे खास काम होते हैं, यहां एक सरपंच योजना चलती है.. किसान को मुआवजा मिलता है। हर आदमी का बैंक अकाउंट है और हर खेत का मृदा कार्ड.. कुछ ही वर्षों में इन्होंने अपने गांव की तस्वीर बदल दी है.. पढ़िए इनकी सफलता की कहानी...  
भक्ति शर्मा ने एमए राजनीति शास्त्र से किया है, अभी वकालत की पढ़ाई कर रही हैं। भोपाल जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर बरखेड़ी अब्दुल्ला ग्राम पंचायत है। इस पंचायत में कुल 2700 जनसँख्या है जिसमे 1009 वोटर हैं। ओडीएफ हो चुकी इस पंचायत में आदर्श आंगनबाड़ी से लेकर हर गली में सोलर स्ट्रीट लाइटें हैं।
“सरपंच बनते ही सबसे पहला काम हमने गांव में हर बेटी के जन्म पर 10 पौधे लगाना और उनकी माँ को अपनी दो महीने की तनख्वाह देने का फैसला लेकर किया। पहले साल 12 बेटियां पैदा हुई, माँ अच्छे से अपना खानपान कर सके इसलिए अपनी यानि सरपंच की तनख्वाह ‘सरपंच मानदेय’ के नाम से शुरू की।”

भक्ति ने कहा, “हमारी पहली ऐसी ग्राम पंचायत बनी जहाँ हर किसान को उसका मुआवजा मिला। हर ग्रामीण का राशनकार्ड, बैंक अकाउंट, मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनवाया। इस समय पंचायत का कोई भी बच्चा कुपोषित नहीं है। महीने में दो से तीन बार फ्री में हेल्थ कैम्प लगता है। 
भक्ति ने कहा, “हमारी पहली ऐसी ग्राम पंचायत बनी जहाँ हर किसान को उसका मुआवजा मिला। हर ग्रामीण का राशनकार्ड, बैंक अकाउंट, मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनवाया। पहले साल में 113 लोगों को पेंशन दिलानी शुरू की, इस समय पंचायत का कोई भी बच्चा कुपोषित नहीं है। महीने में दो से तीन बार फ्री में हेल्थ कैम्प लगता है, जिससे पंचायत का हर व्यक्ति स्वस्थ्य रहे।”
ग्राम पंचायत का कोई भी काम भक्ति अपनी मर्जी से नहीं करती हैं। वर्ष 2016-17 में 10 ग्राम सभाएं हो चुकी हैं, पंचों की बैठक समय-समय पर अलग से होती रहती है। जब ये सरपंच बनी थीं तो इस पंचायत में महज नौ शौचालय थे अभी ये पंचायत ओडीएफ यानि खुले में शौच से मुक्त हो चुकी है। भक्ति का कहना है, “हमने पंचायत में कोई भी काम अलग से नहीं किया, सिर्फ सरकारी योजनाओं को सही से लागू करवाया है। पंच बैठक में जो भी निर्धारित करते हैं वही काम होता है। ढ़ाई साल में बहुत ज्यादा विकास तो नहीं करवा पाए हैं क्योंकि जब हम प्रधान बने थे उस समय गांव की सड़कें ही पक्की नहीं थी, इसलिए पहले जरूरी काम किए।”
भक्ति ने अपने प्रयासों से अपनी पंचायत को सरकार की मदद से एक बड़ा सामुदायिक भवन पास करा लिया है। भक्ति का कहना है, “आगामी छह महीने में इस भवन में डिजिटल क्लासेज शुरू हो जायेंगी, जो पूरी तरह से सोलर से चलेंगी। इसमें महिलाओं के लिए सिलाई सेंटर, और चरखा केंद्र खुलेगा। किसानों के लिए समय-समय पर बैठकें होंगी, जिससे वो खेती के आधुनिक तरीके सीख सकें। बच्चों के लिए तमाम तरह की गतिविधी होंगी जिससे उन्हें गांव में शहर जैसी सुविधाएँ मिल सकें।”
पंचायत की हर महिला निडर होकर रात के 12 बजे भी अपनी पंचायत में निकल सके भक्ति शर्मा की ऐसी कोशिश है। भक्ति ने कहा, “पंचायत की हर बैठक में महिलाएं ज्यादा शामिल हों ये मैंने पहली बैठक से ही शुरू किया। मिड डे मील समिति में आठ महिलाएं है। महिलाओं की भागीदारी पंचायत के कामों में ज्यादा से ज्यादा रहे जिससे उनकी जानकारी बढ़े और वो अपने आप को सशक्त महसूस करें।”
पहाड़ी क्षेत्र होने की वजह से ग्राम पंचायत में पानी की बहुत समस्या है। पीने के पानी के लिए तो सबमर्सिबल लगा है लेकिन खेती को समय से पानी मिलना थोड़ा मुश्किल होता है। भक्ति का कहना है, “जिनके पास 10-12 एकड़ जमीन है, हमारी कोशिश है वो हर एक किसान कम से कम एक एकड़ में जैविक खेती जरुर करें। बहुत ज्यादा संख्या में तो नहीं लेकिन किसानों ने जैविक खेती करने की शुरुआत कर दी है।”👏🇮🇳🌾

Tuesday, June 16, 2020

21 जून 2020 सूर्य ग्रहण का फल- स्पर्श- मोक्ष

21 जून 2020

सूर्य ग्रहण काशी मे
स्पर्श - 10बजकर 31मिनट पर

मध्य - 12बजकर 18 मिनट पर

मोक्ष - 2बजकर4 मिनट पर दिन मे।

ग्रहण का सुतक 20 जून 2020 को रात्रि 10बजकर 31 मिनट से लग जाएगा।

#ग्रहण_फल

बारह राशियों के लिये ग्रहण देखने पर क्या फल प्राप्त होगा?

यथा-

मेष- श्रीप्राप्ति

वृष- क्षति

मिथुन - घात

कर्क - हानि

सिंह - लाभ

कन्या - सुख

तुला - माननाश

वृश्चिक - मृत्युतुल्यकष्ट

धनु - स्त्रीपीडा

मकर - सौख्य

कुम्भ - चिंता

मीन - व्यथा
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺

ग्रहण काल मे सभी लोगों को भगवन नाम संकिर्तन करना चाहिये या किसी मंत्र का जप करना चाहिये।

ग्रहणकाल का समय काशी के अनुसार है। आप अपने स्थान का संसोधन कर सकते हैं।

-डाॅ. मुकेश ओझा

ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार


Monday, June 1, 2020

नक्षत्रों का शरीर के अंगों पर स्थान

नक्षत्रों का शरीर के अंगों पर स्थान
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नक्षत्रों को शरीरांगो पर विभाजित करने में विद्वानों में एक से अधिक मत रहे है !

१.शास्त्रीय मत से नक्षत्र पुरुष का विचार : 

शरीर के अंगो पर सभी नक्षत्रों का कोई क्रम नहीं है !
"वामनपुराणानुसार " इनका विभाजन निम्नलिखित है !

क्रम. नक्षत्र - शरीरांग
१. अश्विनी - दोनों घुटने 
२. भरणी - सिर 
३. कृतिका - कटिप्रदेश 
४. रोहिणी - दोनों टांगे 
५. मृगशिरा - दोनों नेत्र 
६. आर्द्रा - बाल 
७. पुनर्वसु - अंगुलियाँ 
८. पुष्य - मुख 
९. आश्लेषा - नख 
१०. मघा - नाक
११. पूर्वा फाल्गुनी - गुप्तांग 
१२. उत्तरा फाल्गुनी- गुप्तांग 
१३. हस्त - दोनों हाथ 
१४. चित्रा - मस्तक 
१५. स्वाति - दांत 
१६. विशाखा - दोनों भुजाएं 
१७. अनुराधा - ह्रदय, वक्षस्थल 
१८. ज्येष्ठा - जिव्हा 
१९. मूल - दोनों पैर 
२०. पूर्वा षाढा - दोनों जांघें 
२१. उत्तरा षाढा - दोनों जांघें 
२२. श्रवण - दोनों कान 
२३. धनिष्ठा - पीठ 
२४. शतभिषा - ठोड़ी के दोनों पार्श्व 
२५. पूर्वा भाद्रपद - बगल 
२६. उत्तरा भाद्रपद - बगल 
२७. रेवती - दोनों कांख 

नोट : - 

i. शरीर में निशान और चोट का निश्चय करने में इसका उपयोग होता है ! क्रूर का बुरे ग्रह कुंडली में जिस नक्षत्र में गये हो उसी अंग पर घाव या निशान पैदा कर देते है !

ii. सूर्य चन्द्रमा के नक्षत्रानुसार उस अंग में चिन्ह आदि जन्मजात होता है या बना देता है ! 

iii. दशा-अन्तर्दशा में भी लग्ने वाली चोट का निर्धारण इसी से किया जाता है ! 

iv. जो नक्षत्र पापयुक्त हो, निर्बल ग्रह से युक्त हो वही अंग पीड़ित, शिथिल या दोषयुक्त होता है ! 

२. जन्म नक्षत्र से नक्षत्र पुरुष विचार : 

जातक के जन्म नक्षत्र से प्रारम्भ करके १,१,३,१,१,४,३,५,१,४,३ नक्षत्रों को सारणी के अनुसार स्थापित कर लें ! जिन नक्षत्रों पर पाप प्रभाव, क्रूर दृष्टि, नीच-शत्रु ग्रह होगा उन्ही नक्षत्रों के अंगो पर चोट व अन्य निशान उस ग्रह की दशा अन्तर्दशा में मिलेंगे ! यह विचार महर्षि पराशर ने बताया है ! 

अंग - नक्षत्र 

मुख - जन्म नक्षत्र 

वाम नेत्र - १

माथा - ३ 

छाती (दायीं) - १ 

गला (दक्षिण भाग) - १ 

दायाँ हाथ - ४ 

दायाँ पैर - ३ 

छाती (बायीं) - ५ 

गला (वाम bhag) - १ 

बांया हाथ - ४ 

दायाँ पैर - ३ 

३. पाराशरीय मत : 

पराशर ने प्रश्न विचार हेतु अलग नक्षत्र पुरुष का वर्णन किया है ! 

क्रम. नक्षत्र - शरीरांग
१. अश्विनी - सर 
२. भरणी - माथा 
३. कृतिका - भौंहें 

४. रोहिणी - आँखें 
५. मृगशिरा - नाक 
६. आर्द्रा - कान 
७. पुनर्वसु - गाल 
८. पुष्य - होंठ 
९. आश्लेषा - ठुड्डी 
१०. मघा - गला 

११. पूर्वा फाल्गुनी - कंधे 
१२. उत्तरा फाल्गुनी- ह्रदय 
१३. हस्त - बगलें 
१४. चित्रा - छाती 
१५. स्वाति - पेट 
१६. विशाखा - नाभि 

१७. अनुराधा - कमर 
१८. ज्येष्ठा - जांघ 
१९. मूल - नितम्ब 
२०. पूर्वा षाढा - लिंग 
२१. उत्तरा षाढा - अंडकोष 

२२. श्रवण - पेडू 
२३. धनिष्ठा - जंघा 
२४. शतभिषा - घुटने 
२५. पूर्वा भाद्रपद - पिंडली 
२६. उत्तरा भाद्रपद - टखने 
२७. रेवती - पैर 

* ज्येष्ठा को जांघों के उपरी हिस्से अर्थात कमर के नीचे के आधे भाग में व धनिष्ठा को शेष जांघें समझे !
-डाॅ.मुकेश ओझा
ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार

Monday, May 11, 2020

इस आपत्ति काल में परमात्मा कोई चमत्कार क्यों नहीं दिखाता?

👉इस आपत्ति काल में परमात्मा कोई चमत्कार क्यों नहीं दिखाता?
👉क्या इस महामारी में ईश्वर को रक्षा करने नहीं आना चाहिए?

👆इस प्रकार के अनेकों प्रश्न आजकल लोग हमसे पूछ रहे हैं । और इस प्रकार के प्रश्न सोशल मीडिया पर भी खुब प्रचारित हो रहा है।
🙏
इस प्रकार के अनेकों प्रश्नों का उत्तर इस श्लोक से प्रारंभ कर देता हूँ।
नाप्राप्तकालो  म्रियेत  विद्ध:  शरशतैरपि। 
कुशाग्रैरपि संविद्ध:प्राप्तकालो न जीवति।।
अर्थात्-  सैकड़ों बाणों से विद्ध व्यक्ति जीवित बच जाता है और कुश चुभने से भी लोग मर जाते हैं। बिना मृत्यु कोई नहीं मरता।
क्या कोई डाॅक्टर शत प्रतिशत दावा कर सकता है कि मैं इस व्यक्ति को कोई रोग नहीं होने दूंगा या इसको अमुक आयु तक जीवित रहने का गारंटी देता हूँ। इस रोगी को मै 100% ठीक कर दूंगा।
नहीं हमें तो ऐसा कोई नहीं मिला आपको मिला हो तो बताएँ। 
अस्तु!
रोग होने पर हम दवा खाते रहते है और डाॅक्टर को दिखाते रहते हैं। कभी कभी एक ही बार दवा खाने पर ठीक हो जाते हैं, तो कभी महीनों, वर्षों तक दवा खाते हैं और डाॅक्टर बदलते हैं तब भी स्वस्थ नहीं होते। 
👉आपने विचार किया ऐसा आखिर क्यों होता है?
परमात्मा मानव ही नहीं अपितु सभी जीव जन्तु वनस्पति और समस्त सजीव निर्जीव का उत्पत्ति कर्ता संरक्षक और नष्ट कर्ता है।
इस समय इस पृथ्वी पर कोरोना नामक महामारी जो आई है इस माहामारी का निर्माता मानव है। यह महामारी नही प्रकृति के साथ खिलवाड का प्रतिफल है।
और यदि प्रकृति के नियमों के विरूद्ध कार्य करना मानव बंद नही किया तो प्रकृति मानवों का रक्षा नही करेगी अपितु मानवों का नाश करेगी।
👉परमात्मा रक्षा करने के लिये तभी आएँगें जब हम परमात्मा के आदेशों का पालन करेगें।
👉 यदि आप नीचे लिखें कार्यों को नहीं करते तो परमात्मा आपकी रक्षा अवश्य कर रहा है।
आप निश्चिन्त हो कर परमात्मा का स्मरण करें।
👉यदि आप निचे लिखें मानव विरोधी कार्यों मे संलिप्त हैं तो आपका विनास आपके कर्मों से स्वतः हो जाएगा।
👉मांसाहार
👉झूठ 
👉चोरी[भ्रष्टाचार(घूसलेना)]
👉नित्य प्रकृति को विभिन्न प्रकार से नष्ट पहुचाना।
👉इन्द्रिय संयम नही रखना 

ध्यान रखें दुष्टों के साथ कुछ अच्छे लोगों को भी कष्ट उठाना पडता है।
जैसे गेहूँ के साथ घून का पीस जाना।
 

Sunday, April 5, 2020

कस्तुरी तिलकम ललाटपटले श्रीकृष्ण स्तुति

कस्तुरी तिलकम ललाटपटले,
वक्षस्थले कौस्तुभम ।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले,
वेणु करे कंकणम ।
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम,
कंठे च मुक्तावलि ।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते,
गोपाल चूडामणी ॥
अर्थ -
'हे श्रीकृष्ण! आपके मस्तक पर कस्तूरी तिलक सुशोभित है। आपके वक्ष पर देदीप्यमान कौस्तुभ मणि विराजित है। आपने नाक में सुंदर मोती पहना हुआ है। आपके हाथ में बांसुरी है और कलाई में आपने कंगन धारण किया हुआ है। हे हरि! आपकी सम्पूर्ण देह पर सुगन्धित चंदन लगा हुआ है और सुंदर कंठ मुक्ताहार से विभूषित है। आप सेवारत गोपियों के मुक्ति प्रदाता हैं। हे ईश्वर! आपकी जय हो। आप सर्वसौंदर्यपूर्ण हैं।'

Monday, March 23, 2020

सोशल मीडिया में व्यक्तिगत जानकारी साझा न करें। क्यों?

प्रिय आत्मन!
बन्धुओं!
सोशल मीडिया पर अपने विचार साझा करें। व्यक्तिगत जानकारी जितना गुप्त रख सके उतना उचित है।
व्यक्तिगत जानकारी व्यक्तिगत रूप से प्राप्त करें या साझा करें।
• इससे बहुत सारी व्यक्तिगत जानकारीयाँ सार्वजनिक हो जातीं है।
• जिस जानकारी को किसी भी प्रकार से तोड़-मरोड़कर पेश किया जा सकता है।
• किसी भी जानकारी का स्वरूप बदलकर वह उकसावे वाली बनाई जा सकती है जिसका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं होता।
• आपकी प्राइवेसी पूर्णत: भंग हो जाती है। जिससे आपको ब्लेकमेल भी किया जा सकता है, या डराया धमकाया जा सकता है।
• फोटो या वीडियो की एडिटिंग करके भ्रम फैला सकते हैं, इस कार्य में मित्रों की व्यक्तिगत टिप्पणीयाँ मदद करतीं हैं।
• सायबर अपराध सोशल मीडिया से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या है। आपकी व्यक्तिगत जानकारी के आधार पर आपके नाम से अपराध किया जा सकता है।
#आपका
मुकेश ओझा 

Sunday, March 22, 2020

लॉक-डाउन के दिनों में अथवा अवकाश के दिनों में समय का सदुपयोग कैसे करें?

#लॉक_डाउन के दिनों में अथवा #अवकाश के दिनों में समय का सदुपयोग कैसे करें?
🌻अपने प्रत्येक कार्य को #साधना का अंग बनाएँ।
🌻घर में आपके साधना का क्रम क्या होना चाहिए?
👉दिन में 5 बार दश-दश के क्रम से प्राणायाम करें।
 👉प्रातः एवं संध्या के समय २५ से ३० मिनट का  भावातीत ध्यान करें।
👉जो मन्त्रों का जप कभी नहीं करते, वे जरूर कुछ देर भगवन्नाम मन्त्र का जप करें। 
👉जो नित्य मन्त्र जप करते हैं वे भी मन्त्र जप का संख्या बढ़ा लें।
👉 मैत्री भावना का अभ्यास करें।
👉यदि सोने का मन करें तो विपस्ना का अभ्यास करते हुए सोएँ।
👉किसी भी कार्य को साक्षी भाव से करने का प्रयास करें ।
#मनुर्भव
-डॉ मुकेश ओझा 
ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार

Saturday, March 7, 2020

परपरागत संस्कृत और समान्य संस्कृत मे अंतर को जाने

 बन्धुओं!
संस्कृत बहुत विस्तृत है। अतः संस्कृत को दो भागों में विभक्त किया गया है।
1- परपरागत संस्कृत और 2- समान्य संस्कृत।
संस्कृत का सामान्य अध्ययन करने के लिए छात्र सामान्य संस्कृत पढ़ते हैं और संस्कृत से बी.ए., एम.ए. करते हैं।
👉
परन्तु यदि संस्कृत का विस्तृत ज्ञान चाहिये तो परंपरागत संस्कृत पढ़ना होता है। परंपरागत संस्कृत में स्नातक को शास्त्री तथा परास्नातक को आचार्य कहते है।
👉
सामान्य संस्कृत पढ़ने वाला अध्यापन के लिए सामान्य संस्कृत के पद पर नियुक्त होता है। 90% शैक्षणिक संस्थानों मे सामान्य संस्कृत का ही अध्ययन अध्यापन होता है।
👉परंपरागत संस्कृत पढ़ने वाला अध्यापन करने के लिए परंपरागत पद पर नियुक्त होता है।मात्र 10% शैक्षणिक संस्थानों में ही परंपरागत संस्कृत का अध्ययन अध्यापन होता है।
परंपरागत संस्कृत लगभग लुप्त होने के कगार पर हैं।
सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्व विद्यालय वाराणसी में सामान्य संस्कृत के छात्र सत्येन्द्र यादव की नियुक्ति परंपरागत पद (अथर्ववेद) पर हो गई जो UGC के नियमों के विरुद्ध है। जिस पर हमने एक लेख लिखा है।
परन्तु कुछ लोगों द्वारा इस विषय को जाती से जोड़ कर समाज में असंतोष फैलाया जा रहा है कि मै जाति के कारण नियुक्ति का विरोध किया हूँ। 
अतः आप सभी पाठकगण स्व बुद्धि का प्रयोग कर देश को समृद्ध करें।
आपका
-डॉ मुकेश ओझा

Tuesday, March 3, 2020

समाज निर्माण में अध्यापकों का योगदान

👉यदि आप अपने छात्रों के #आजीविका के लिए चिंतित नहीं हैं तो आप अच्छे #अध्यापक नहीं हैं।
अध्यापक समाज निर्माता होता है। अतः समाज कैसा है इसका उत्तरदायित्व भी अध्यापकों पर निर्भर करता है।
यदि आज भारत में बेरोजगारी बढ़ रही है तो इसके भी कारण अध्यापक ही हैं। 
उस शिक्षा से क्या लाभ जो शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी आजीविका के लिए सरकार या किसी और पर निर्भर रहना पड़े।
👉 सरकार का कार्य होना चाहिए निःशुल्क, श्रेष्ठ शिक्षा उपलब्ध कराना और अध्यापक का कार्य है श्रेष्ठ छात्रों का निर्माण करना। अध्यापकों का कार्य है ऐसे छात्रों का निर्माण करना जो किसी भी प्रकार से किसी अन्य पर निर्भर न रहे। ऐसे छात्रों का निर्माण करना जो अपने आजीविका के साधन स्वयं निर्मित करें।
और अध्यापकों का एक और महत्वपूर्ण कार्य है, यदि छात्रों के आजीविका में कोई बाधा है तो अध्यापक उस बाधा को स्वयं दूर करें।
मैं परंपरागत संस्कृत (प्रथमा, मध्यमा, शास्त्री, आचार्य किया हुआ) छात्र हूँ। 
👉 मैं आपलोगों को बता दूँ, आजकल संस्कृत कि दो उपाधियाँ (डिग्रीयाँ) विद्यालयों, विश्वविद्यालयों से प्राप्त होतीं हैं।
1- परंपरागत संस्कृत (प्रथमा, मध्यमा, शास्त्री, आचार्य) कि उपाधि।
2- आधुनिक संस्कृत (बी.ए.,एम.ए.) कि उपाधि।
👉
परंपरागत संस्कृत के छात्रों के आजीविका के लिए केवल दो मार्ग निकलते हैं। 1- कर्मकांड करें। या 2- परंपरागत संस्कृत विद्यालयों मे अध्यापन का कार्य करें।
यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि आधुनिक संस्कृत को पढ़ने वाला परंपरागत संस्कृत विद्यालयों मे अध्यापन कर सकता है। और मंदिरों में कर्मकांड भी कर सकता है, परन्तु परंपरागत संस्कृत छात्र किसी भी आधुनिक विद्यालय विश्वविद्यालयों में आवेदन के लिए भी पात्र नहीं।
👉अब परंपरागत विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के अध्यापकों का यह दायित्व है कि वे अपने छात्रों के आजीविका के लिए संघर्ष करें और उनके लिए भी सभी जगहों पर आवेदन के लिए मार्ग प्रशस्त करें।
आपका छात्र जो परंपरा से पढ़कर शास्त्री, आचार्य किया है, वह आजीविका कैसे प्राप्त करेगा इस विषय पर कार्य करें।
परंपरागत संस्कृत के लगभग 18 विषय है। जिनका ह्रास हो रहा है। इन 18 विषयों का विस्तृत चर्चा पुनः करेंगे।
आपका
-डॉ मुकेश ओझा 
ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार 
 🙏🙏

Saturday, February 29, 2020

कुछ प्रश्न स्वयं से

मेरी इच्छा है कि? 
मुझे जो भाषा सबसे ज्यादा पसंद है ।
मुझे इन्हें इकट्ठा करने में मजा आता है।
यदि मेरी कोई तीन इच्छाएँ पूरी होती हो तो वह होंगी।
चित्रकार जो मुझे बहुत पसंद है।
आप किसे एक महत्वपूर्ण खोज मानते हैं।
मेरी पसंदीदा एडवेंचर वाली गतिविधि।
वो लेखक जिन्हें पढ़कर मेरा जीवन बदल गया...
जीवन का वह निश्चय जिसे मैं अभी तक पूरा नहीं कर पाया।
नये वर्ष का वह निश्चय जिसे मैं अभी तक पूरा नहीं कर पाया।

मेरी समस्त इच्छाएँ विसर्जित हो जाएँ।
मै साक्षी हो जाऊँ।
मौन की भाषा
मै साक्षी हो जाऊँ
परमात्मा 
स्वयं का खोज
ध्यान 
🕊. वेद
जिसके लेखक का नाम - परमात्मा है।
🐣. ओशो
🌻. मैथली शरण गुप्त

#साक्षी_भाव
-डॉ मुकेश ओझा

Wednesday, February 19, 2020

प्राचीन शिव मंदिर का वैज्ञानिक और भौगोलिक विश्लेषण

भारत में ऐसे शिव मंदिर हैं जो केदारनाथ से लेकर रामेश्वरम तक एक सीधी रेखा में बनाये गये हैं।
आश्चर्य है कि हमारे पूर्वजों के पास ऐसा कैसा विज्ञान और तकनीक था जिसे हम आज तक समझ ही नहीं पाये?

उत्तराखंड का केदारनाथ, तेलंगाना का कालेश्वरम, आंध्रप्रदेश का कालहस्ती, तमिलनाडू का एकंबरेश्वर, चिदंबरम और अंततः
रामेश्वरम मंदिरों को 79° E 41’54” Longitude के भौगोलिक सीधी रेखा में बनाया गया है।
यह सारे मंदिर प्रकृति के 5 तत्वों में लिंग की अभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसे हम आम भाषा में पंच भूत कहते है।पंच भूत यानी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष।
इन्ही पाँच तत्वों के आधार पर इन पाँच शिव लिंगों को प्रतिष्ठापित किया है।
●जल का प्रतिनिधित्व तिरुवनैकवल मंदिर में है,
●अग्नि का प्रतिनिधित्व तिरुवन्नमलई में है,
●वायु का प्रतिनिधित्व कालहस्ती में है,
●पृथ्वी का प्रतिनिधित्व कांचीपुरम में है
●अतरिक्ष या आकाश का प्रतिनिधित्व चिदंबरम मंदिर में है!

वास्तु-विज्ञान-वेद का अद्भुत समागम को दर्शाते हैं ये पाँच मंदिर।
भौगॊलिक रूप से भी इन मंदिरों में विशेषता पायी जाती है। 
इन पाँच मंदिरों को योग विज्ञान के अनुसार बनाया गया था,और एक दूसरे के साथ एक निश्चित भौगोलिक संरेखण में रखा गया है।
इस के पीछे निश्चित ही कॊई विज्ञान होगा जो मनुष्य के शरीर पर प्रभाव करता होगा।
इन मंदिरों का करीब चार हज़ार वर्ष पूर्व निर्माण किया गया था जब उन स्थानों के अक्षांश और देशांतर को मापने के लिए कोई उपग्रह तकनीक उपलब्ध ही नहीं था।
तो फिर कैसे इतने सटीक रूप से पाँच मंदिरों को प्रतिष्ठापित किया गया था? 
उत्तर भगवान ही जाने।केदारनाथ और रामेश्वरम के बीच 2383 किमी की दूरी है। 
लेकिन ये सारे मंदिर लगभग एक ही समानांतर रेखा में पड़ते हैं।आखिर हज़ारों वर्ष पूर्व किस तकनीक का उपयॊग कर इन मंदिरों को समानांतर रेखा में बनाया गया है यह आज तक रहस्य ही है।
श्रीकालहस्ती मंदिर में टिमटिमाते दीपक से पता चलता है कि वह वायु लिंग है।
तिरूवनिक्का मंदिर के अंदरूनी पठार में जल वसंत से पता चलता है कि यह जल लिंग है।
अन्नामलाई पहाड़ी पर विशाल दीपक से पता चलता है कि
वह अग्नि लिंग है।
कंचिपुरम के रेत के स्वयंभू लिंग से पता चलता है कि वह पृथ्वी लिंग है...
और चिदंबरम की निराकार अवस्था से भगवान के निराकारता यानी आकाश तत्व का पता लगता है।

अब यह आश्चर्य की बात नहीं तो और क्या है कि ब्रह्मांड के पाँच तत्वों का प्रतिनिधित्व करनेवाले पाँच लिंगो को एक समान रेखा में सदियों पूर्व ही प्रतिष्ठापित किया गया है।
हमें हमारे पूर्वजों के ज्ञान और बुद्धिमत्ता पर गर्व होना चाहिए कि उनके पास ऐसा विज्ञान और तकनीक था जिसे आधुनिक विज्ञान भी नहीं भेद पाया है।माना जाता है कि केवल यह पाँच मंदिर ही नहीं अपितु इसी रेखा में अनेक मंदिर होगें जो केदारनाथ से रामेश्वरम तक सीधी रेखा में पड़ते हैं।
इस रेखा को “शिव शक्ति अक्श रेखा” भी कहा जाता है।
संभवतः यह सारे मंदिर कैलाश को ध्यानन में रखते हुए बनाया गया हो जो 81.3119° E में पड़ता है!? 
उत्तर शिवजी ही जाने। 
कमाल की बात है
महाकाल से शिव ज्योतिर्लिंगों के बीच कैसा सम्बन्ध है...
उज्जैन से शेष ज्योतिर्लिंगों की दूरी भी है रोचक-
●उज्जैन से काशी विश्वनाथ- 999 किमी
●उज्जैन से,मल्लिकार्जुन- 999 किमी
●उज्जैन से केदारनाथ- 888 किमी
●उज्जैन से त्रयंबकेश्वर- 555 किमी
●उज्जैन से सोमनाथ- 777 किमी
●उज्जैन से ओंकारेश्वर- 111 किमी
●उज्जैन से भीमाशंकर- 666 किमी
●उज्जैन से घृष्णेश्वर - 555 किमी
●उज्जैन से बैजनाथ- 999 किमी
●उज्जैन से रामेश्वरम- 1999 किमी

उज्जैन पृथ्वी का केंद्र माना जाता है।
इसलिए उज्जैन में सूर्य की गणना और ज्योतिष गणना के लिए मानव निर्मित यंत्र भी बनाये गये हैं करीब 2050 वर्ष पहले।और जब करीब 100 साल पहले पृथ्वी पर काल्पनिक रेखा (कर्क)अंग्रेज वैज्ञानिक द्वारा बनायीं गयी तो उनका मध्य भाग उज्जैन ही निकला।
आज भी वैज्ञानिक उज्जैन ही आते हैं सूर्य और अन्तरिक्ष की जानकारी के लिये।।

Sunday, February 9, 2020

सूर्य की गति

क्या आप जानते हैं?  सूर्य में भी दो तरह की गतियाँ है।
सूर्य का परिक्रमण और सूर्य का अक्ष भ्रमण
सूर्य के गति का वर्णन वेदों में भी वर्णित है- 
ॐ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेश्शयन्नमृतम्मर्त्यञ्च हिरण्येन सवितारथेन देवो याति भुवनानि पश्यन।।

सूर्य अपने अक्ष पर परिभ्रमण करते हुए आकाश गंगा की परिक्रमा करता है।

सूर्य का परिक्रमण
जिस प्रकार पृथ्वी और अन्य ग्रह सूरज की परिक्रमा करते हैं उसी प्रकार सूरज भी आकाश गंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है। सूर्य सौरमण्डल का प्रधान है। यह हमारी मंदाकिनी दुग्धमेखला (आकाश गंगा) के केन्द्र से लगभग 30,000 प्रकाशवर्ष की दूरी पर एक कोने में स्थित है। सूर्य दुग्धमेखला मंदाकिनी के केन्द्र के चारों ओर 251 किलोमीटर प्रति सेकेंड की गति से परिक्रमा कर रहा है। इसका परिक्रमण काल 22 से 25 करोड़ वर्ष है। जिसे ब्रह्माण्ड वर्ष / निहारिका वर्ष कहते हैं।

सूर्य का अक्ष भ्रमण

सूर्य के अक्ष भ्रमण का ज्ञान सौर कलंक से कोई भी कर सकता है । आईए हम सौर कलंक एवं सूर्य के अक्ष भ्रमण को समझते है।

सौर कलंक
सूर्य को दूरदर्शी यंत्र से देखने पर इसकी सतह पर छोटे-बड़े धब्बे दिखलाई पड़ते हैं। इन्हें सौर कलंक कहा जाता है। ये कलंक अपने स्थान से सरकते हुए दिखाई पड़ते हैं। इससे वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि सूर्य पूरब से पश्चिम की ओर अपने अक्ष पर एक परिक्रमा करता है। सूर्य की बाहरी परतें भिन्न भिन्न घुर्णन गति दर्शाती है, भूमध्य रेखा ( मध्य भाग ) पर सतह हर 25.4 दिनों में एक बार घूमती है, ध्रुवो के पास यह 36 दिन हैं। यह अजीब व्यवहार इस तथ्य के कारण है कि सूर्य पृथ्वी के जैसे ठोस नहीं है। इसी तरह का प्रभाव गैस ग्रहों में देखा जाता है। सूर्य का केन्द्र एक ठोस पिण्ड के जैसे घुर्णन करता है।

सूर्य पर कुछ सूर्य धब्बो / सौर कलंक (चलते हुए गैसों के खोल) के क्षेत्र होते है जिनका तापमान अन्य क्षेत्रों से कुछ कम लगभग 3800 डिग्री केल्वीन (1500 ºC) होता है। सूर्य धब्बे काफ़ी बड़े हो सकते हैं, इनका व्यास 50000 किलोमीटर हो सकता है। सूर्य धब्बे सूर्य के चुंबकीय क्षेत्रों में परिवर्तन से बनते हैं। सूर्य के धब्बों का एक पूरा चक्र 22 वर्षों का होता है। पहले 11 वर्षों तक यह धब्बा बढ़ता है और बाद के 11 वर्षों तक यह धब्बा घटता है। जब सूर्य की सतह पर धब्बा दिखलाई देता है, उस समय पृथ्वी पर चुम्बकीय झंझावत उत्पन्न होते हैं। इससे चुम्बकीय सुई की दिशा बदल जाती है, एवं रेडियो, टेलीविजन, बिजली चलित मशीनों में गड़बड़ी उत्पन्न हो जाती है। सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र बहुत मज़बूत है (स्थलीय मानकों के द्वारा) और बहुत जटिल है। इसका हेलीयोस्फियर भी कहते है जो प्लूटो के परे तक फैला हुआ है। सूर्य का निरंतर ऊर्जा उत्पादन सतत एक मात्रा में नहीं होता है, ना ही सूर्य धब्बो की गतिविधि। 17वी शताब्दी के उत्तारार्ध में सूर्य धब्बे अपने न्यूनतम पर थे। इसी समय में यूरोप में ठंड अप्रत्याशित रूप से बढ गयी थी। सौर मंडल के जन्म के बाद से सूर्य ऊर्जा का उत्पादन 40% बढ़ गया है।
-डॉ मुकेश ओझा 
ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार 
8840901948

Saturday, February 8, 2020

गोमेद रत्न धारण करने की विधि और मन्त्र

गोमेद रत्न धारण करने की विधि
 सबसे पहले अंगूठी को दूध, फिर गंगा जल, फिर शहद और फिर शक्कर और गाय के घी के घोल में डाल दें। उसके पश्चात् राहु का स्मरण करते हुए धूप जलाएं। और पुष्प, चंदन,रोली, चढ़ाकर प्रणाम करें।
 और राहु के मन्त्र का १०८या यथाशक्ति जप करके रत्न धारण करें।
राहुल का वैदिक मन्त्र- 

 ॐ कयानश्चित्र आ भुवद्वती सदा वृध: सखा कया शचिंष्ठया वृता।।

राहु का नाम मन्त्र- ॐ राहवे नम:

राहुल का बीज मंत्र- ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:

-डॉ मुकेश ओझा

ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार 

8840901948

Friday, February 7, 2020

समय की शुद्धता और मन की पवित्रता

किसी भी कार्य के लिए उस कार्य के अनुरूप समय का होना अति आवश्यक होता है। यदि समय उस कार्य के प्रकृति के अनुरूप हो तभी वह कार्य अपने फल के पूर्णता को प्रदान करता है। परन्तु यदि समय उस कार्य के प्रकृति के अनुरूप न हो तो कार्य के पूर्ण फल प्राप्त नहीं होतीं।
किसी कार्य के फल प्राप्ति मे एक और विशेष कारण होता है और वह है मन की पवित्रता या संकल्प शक्ति।

Tuesday, January 21, 2020

शिक्षक के गुण

कोई राष्ट्र समृद्ध और समुन्नत तभी हो सकता है जब उस राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति समृद्ध हो।
राष्ट्र सभ्य और आदर्श तभी हो सकता है जब राष्ट्र का प्रत्येक नागरीक सभ्य और आदर्श हो।
राष्ट्र को सभ्य और सुसंस्कृत राष्ट्र के नागरीक बनाते हैं। और राष्ट्र के नागरीकों को सभ्य और सुसंकृत अध्यापक बनाते हैं।
आज हमारे देश के अध्यापक अपना आदर्श भूल गये हैं। जिसके कारण राष्ट्र मे असंतोष दुख भ्रष्टाचार, और हींसा व्याप्त हो गया है। 
आज पुनः अध्यापको कों अपने आदर्शों को अपनाने की आवश्यकता है।
यदि अध्यापको मे अध्यापक का गुण आ जाय तो देश पुनः अपने गौरव को प्राप्त करेगा। देश समुन्नत और समृद्ध होगा।

शिक्षक के गुण
 आचार्य के लिए अधोलिखित निम्न गुणों को अनिवार्य माना गया है-

अहिंसा सुनृता वाणी सत्यं शौचं दया क्षमा
कुलं शीलं दया दानं धर्मः सत्यं कृतज्ञता।
अद्रोह इति येष्वेतदाचार्योस्तान्प्रचक्षते॥
- कामन्दकीय नीतिसार 
अर्थात् हिंसा न करना, सत्य और प्रिय वाणी का प्रयोग करना, प्रत्येक कार्य में सत्यता, मन और कर्म से पवित्राता, दयावान, क्षमाशील, श्रेष्ठ शीलवान, दानशील, धर्मात्मा, कृतज्ञता, अद्रोह यह नैतिक गुण जिसमें विद्यमान हों, वे सभी आचार्य हैं। 

-डॉ मुकेश ओझा
*ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार*

Wednesday, January 15, 2020

श्रेष्ठ पुजन विधि

मानस पूजा :- 

१ ॐ लं    पृथ्व्यात्मकं  गन्धं परिकल्पयामी । 
प्रभु मै   पृथ्वी रूप गंध चन्दन आपको अर्पित करता हूँ । 
२- ॐ हम आकाशात्मकं  पुष्पम परिकल्पयामी  । 
प्रभु  आकाश रूप समस्त पुष्प आपको अर्पितकर्ता हूँ । 

३- ॐ यम वायवातंकम  धूपम  परिकल्पयामी । 
पर्भु मै  वायु रूप में धुप आपको अर्पित करता हूँ । 

४- ॐ रम वह्यतमकम   दर्शयामि । 

प्रभु अग्निदेव के रूप दीपक आपको प्रदान करता हूँ । 

५- ॐ वम अमृतात्मकम  नैवेद्यम निवेदयामि । 

प्रभु  मै  अमृत  के सामान नैवेद्य आपको निवेदन करता हूँ  । 

६- ॐ सोम  सर्वात्मकं सर्वोपचारम  समर्पयामि  ।  

प्रभु  सर्वात्मा के रूप में संसार के सभी उपचारो को आपके चरणो में समर्पित करताहूँ  । 

इस प्रकार उपरोक्त मंत्रो से परमात्मा की  मानस पूजा करें। 

Tuesday, January 7, 2020

नागरिक प्रतिज्ञा पत्र

मैं, विद्यावारिधी मुकेश कुमार ओझा , ईश्वर की शपथ लेता हूं / सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञा करता हूं कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा, मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूंगा, मैं... देश के सच्चे नागरीक के रूप में अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंत:करण से निर्वहन करूंगा तथा मैं भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना, सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार कार्य करूंगा. ’  

  ‘मैं,  ...... ...., ईश्वर की शपथ लेता हूं / सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञा करता हूं कि देश के सच्चे नागरीक के रूप में
अपने देश की लोकतांत्रिक परंपराओं की मर्यादा को बनाए रखेंगे और स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं शांतिपूर्ण रखने मे हर संभव प्रयास करूंगा, देश की गरिमा को अक्षुण रखते हुए, निर्भीक होकर, धर्म, वर्ग, जाति, समुदाय, भाषा अथवा अन्य किसी भी प्रलोभन से प्रभावित हुए बिना भारतीयता का परीचय देते हूये किसी भी जीव जन्तु, वनस्पति, या मानव का अहित नही करूंगा। देश के सच्चे नागरीक के रूप मे कार्य करूंगा।

Saturday, January 4, 2020

अर्द्धनारीश्वर -जीवन का सत्य

जो लोग भी जीवन के परम रहस्य को जानना चाहते हैं, उन्हें शिव के व्यक्तित्व को ठीक से समझना ही पड़ेगा।
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शिवलिंग से ज्यादा महत्वपूर्ण प्रतिमा पृथ्वी पर कभी नहीं खोजी गई। उसमें आपकी आत्मा का पूरा आकार छिपा है। और आपकी आत्मा की ऊर्जा एक वर्तुल में घूम सकती है, यह रहस्य भी छिपा है।
शिवलिंग इस बात को बताता है कि जिस दिन आपकी ऊर्जा आपके ही भीतर घूमती है और आप में ही लीन हो जाती है, उस दिन शक्ति भी नहीं खोती और आनंद भी उपलब्ध होता है। और फिर जितनी ज्यादा शक्ति संगृहीत होती जाती है, उतना ही आनंद बढ़ता जाता है।हमने शंकर की प्रतिमा को, शिव की प्रतिमा को अर्धनारीश्वर बनाया है। शंकर की आधी प्रतिमा पुरुष की और आधी स्त्री की- यह अनूठी घटना है। जो लोग भी जीवन के परम रहस्य में जाना चाहते हैं, उन्हें शिव के व्यक्तित्व को ठीक से समझना ही पड़ेगा। और देवताओं को हमने देवता कहा है, शिव को महादेव कहा है। उनसे ऊंचाई पर हमने किसी को रखा नहीं। उसके कुछ कारण हैं। उनकी कल्पना में हमने सारा जीवन का सार और कुंजियां छिपा दी हैं।अर्धनारीश्वर का अर्थ यह हुआ कि जिस दिन परम घटना शुरू होता है, आपका ही आधा व्यक्तित्व आपकी पत्नी और आपका ही आधा व्यक्तित्व आपका पति हो जाता है। आपकी ही आधी ऊर्जा स्त्रैण और आधी पुरुष हो जाती है। और इन दोनों के भीतर जो रस और जो लीनता पैदा होती है, फिर शक्ति का कहीं कोई विसर्जन नहीं होता।अगर आप बायोलॉजिस्ट से पूछें आज, वे कहते हैं- हर व्यक्ति दोनों है, बाई-सेक्सुअल है। वह आधा पुरुष है, आधा स्त्री है। होना भी चाहिए, क्योंकि आप पैदा एक स्त्री और एक पुरुष के मिलन से हुए हैं। तो आधा पुरूष और आधा स्त्री होना ही चाहिए।
अगर आप सिर्फ मां से पैदा हुए होते, तो स्त्री होते। सिर्फ पिता से पैदा हुए होते, तो पुरुष होते। लेकिन आप में पचास प्रतिशत आपके पिता और पचास प्रतिशत आपकी मां मौजूद है। आप न तो पुरुष हो सकते हैं, न स्त्री हो सकते हैं- आप अर्धनारीश्वर हैं।बायोलॉजी ने तो अब खोजा है, लेकिन हमने अर्धनारीश्वर की प्रतिमा में आज से पचास हजार साल पहले इस धारणा को स्थापित कर दिया। यह हमने खोजी योगी के अनुभव के आधार पर।क्योंकि जब योगी अपने भीतर लीन होता है, तब वह पाता है कि मैं दोनों हूं।और मुझमें दोनों मिल रहे हैं। मेरा पुरुष मेरी प्रकृति में लीन हो रहा है; मेरी प्रकृति मेरे पुरुष से मिल रही है। और उनका आलिंगन अबाध चल रहा है; एक वर्तुल पूरा हो गया है। मनोवैज्ञानिक भी कहते हैं, कि आप आधे पुरुष हैं और आधे स्त्री। आपका चेतन पुरुष है, आपका अचेतन स्त्री है। और अगर आपका चेतन स्त्री का है, तो आपका अचेतन पुरुष है। उन दोनों में एक मिलन चल रहा है।
- डाॅ. मुकेश ओझा
ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार