संगीत में सात स्वरों का वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक विश्लेषण
₹₹₹₹₹₹₹₹₹₹₹₹₹₹₹%%%₹₹₹₹₹₹₹₹₹₹₹₹
सात स्वर - सा रे ग म प ध नि ।।
संगीत आत्मा की सात्विक खुराक है। ब्रह्म के परम पवित्र प्रणव नाद ओंकार (ऊँ) की उत्पत्ति सृष्टि के साथ मानी गई है। भारतीय संगीत के सात स्वर न केवल हमारी शारीरिक तंत्रिकाओं को प्रभावित करते हैं , बल्कि पाशविक वृतियों का दमन भी करते हैं और हमारे अन्दर अध्यात्मिक एवं सात्विक विचारों का संचार भी करते है। भारत के योगियों ने सात स्वरों की उत्पति मानव शरीर के सात यौगिक चक्रों से मानी है। जब स्वरों को गाना बजाया जाता है तो स्वरों में जो आन्दोलन अलग-अलग निश्िचत संख्या में होता है उनके कंपन का प्रभाव मानव शरीर के यौगिक चक्रों पर पड़ता है इसी स्वर उपासना से मनुष्य आहत नाद से अनाहत नाद की ओर अग्रसर होता है। योगियों की भाषा में संगीत नाद योग है। सात यौगिक चक्र मानव शरीर के सात स्थानों में सर्प की भांति कुंडली मारे हुए है। सात यौगिक स्थानों से विकसित शक्तियों को योगी एकत्र करके जैसे जैसे उर्ध्वगामी करते हैं वैसे वैसे शक्ति मनुष्य के नीचे के केन्द्रों से ऊपर के केन्द्रों में चढ़ती जाती है। अंततः सप्तचक्र भेदन होने पर शिव शक्ति अर्थात आध्यात्मिक शक्ति मेल हो जाता है जिन सप्त चक्रों से सप्त स्वरों की उत्पत्ति मानी है वह है, या स्वर की उत्पत्ति मूलाधार चक्र से मानी गई है अर्थात् सा का केन्द्र मूलाधार है।
मूलाधार चक्र का हमारे शरीर में गुदा स्थान है। जब सा की आन्दोलन अर्थात कंपन बढ़ता है तो ऋषभ (रे) स्वर की उत्पति होती है। जिसका केन्द्र स्वाधिष्ठान चक्र माना गया है। रे से रस की उत्पति होने लगती है। स्वाधिष्ठान का स्थान शरीर में जननेन्द्रिय के ठीक ऊपर और जधन अस्थि पर स्थिर है। गंधार स्वर की उत्पति मणिपुर चक्र से होती है। गंधार स्वर से ही अग्नि तत्व की जागृति होती है मूल नाद ब्रह्म की उत्पति मणिपुर चक्र से ही होती है। मणिपुर चक्र का स्थान शरीर में नाभि में होता है। मध्यम (म) स्वर का उत्पत्ति स्थान अनाहत चक्र कहा गया है। जिसका स्थान वक्षस्थल के मध्य में रीढ़ की हड्डी के अन्दर है। अनाहत चक्र शरीर को दो भागों में बांटता है। मध्यम स्वर एक लय बनाता है यह लय मंकार कहलाती है। जिसके कारण अनाहत नाद की अनुभूति होने लगती है। पंचम स्वर का उद्गम विशुद्धि चक्र से होता है। जिसका स्थान गले में (थायराइज के पास) है। प अर्थात प्राण, विशुद्धि चक्र में 16 छोटे-छोटे पंपल होते है। जो प्राण वायु को नियंत्रित करते हैं। गायन संगीत में रियाज की आवश्यकता होती है। रियाज से ये पंपल संस्कारित होते हैं और पंचम स्वर की उत्पति और निशुद्धि चक्र की जागृति करते हैं। पंचम स्वर की उत्पति होने के बाद मनुष्य ध्यान की ओर बढ़ जाता है, उसी ध्यान में जब वह लीन हो जाता है तो आज्ञा चक्र से धेवत (ध) स्वर की उत्पति होती है और व्यक्ति अन्तर्मुखी हो जाता है। आज्ञाचक्र का स्थान दोनों भोंहों के बीच में है। जहां पर तिलक लगाया जाता है। यहां पर भगवान शिव (रूद्र ग्रंथि)का वास कहा जाता है। इसी धैवत के ध्यान से अर्थात आज्ञा चक्र की जागृति से सूरदास जैसे महान कवि व संगीतज्ञ हुए हैं। सातवां स्वर निषाद है जिसकी उत्पति सहस्जार चक्र से हुई है। सहस्त्राट चक्र का स्थान सिर के ऊपरी भाग जहां पर चोटी रखी जाती हैं। इस स्थान को कृपाल कहा जाता है। निषाद की उपासना से व्यक्ति निरलिप्तत्ता की अवस्था में पहुचता है। तभी कहा भी गया है, ÷निरलिप्त समाधिनाः' अर्थात् जो व्यक्ति संसारिक भोगों को छोड कर समाधि की अवस्था में पहुच जाता है। इस अवस्था में पहुंचने के ताल सहायक होता है जब ताल में कंपन पैदा होता है तो मूलाधार चक्र जागृत होता है और यही विशिष्ट कंपन सभी चक्रों को जागृत करके मनुष्य निरलिप्त अवस्था अर्थात मोक्ष मार्ग की ओर बढ जाता है ।।
-डॉ मुकेश ओझा
ज्योतिष एवं आध्यात्मिक सलाहकार
💐🌷🌼🌻💐🌷🌼🌻
मनुर्भव
No comments:
Post a Comment